कोई दुख नया नहीं है
सच मानो, कुछ भी नहीं है नया
कोई टीस, कोई व्यथा, कोई दाह
कुछ भी, कुछ भी तो नहीं हुआ।
फिर भी न जाने क्यों
उठती–सी लगती है
अंतर से एक आह
जाने क्यों लगता है
थोड़ी देर और यदि ऐसे ही
पूछते रहोगे तुम
छलक पड़ेगा मेरी आँखों से अनायास
प्रश्न ही तुम्हारा यह
मेरी अश्रुधारा में।
प्रतिस्राव होगा वह रिसते संवेदन का
उत्तर न होगा वह।