Here is an old classic poem by Rashtra Kavi Mathilisharan Gupt, praising the great and ancient motherland India.
विजय भेरी: देश प्रेम कविता
भारत फिर भी हो सफल साधना तेरी।
आत्मा का अक्षय भाव जगाया तू ने,
इस भाँति मृत्यु भय मार भगाया तू ने।
है पुनर्जन्म का पता लगाया तू ने,
किस ज्ञेय तत्त्व का गीत न गाया तू ने।
चिरकाल चित्त से रही चेतना चेरी।
भारत फिर भी हो सफल साधना तेरी।
तू ने अनेक में एक भाव उपजाया,
सीमा में रहकर भी असीम को पाया।
उस परा प्रकृति से पुरुष मिलाप कराया,
पाकर यों परमानन्द मनाई माया।
पाती है तुझ में प्रकृति पूर्णता मेरी।
भारत फिर भी हो सफल साधना तेरी।
शक, हूण, यवन इत्यादि कहाँ है अब वे,
आये जो तुझ में कौन कहे, कब कब वे।
तू मिला न उनमें, मिले तुझी में सब वे,
रख सके तुझे, दे गए आप को जब वे।
अपनाया सब को पीठ न तूने फेरी।
भारत फिर भी हो सफल साधना तेरी।
गिरि, मंदिर, उपवन, विपिन, तपोवन तुझ में,
द्रुम, गुल्म, लता, फल, फूल, धान्य धन तुझ में
निर्झर, नद, नदियाँ, सिंधु, सुशोभन तुझ में,
स्वर्णातप, सित चंद्रिका, श्याम घम तुझ में
तेरी धरती में धातु–रत्न की ढेरी,
भारत फिर भी हो सफल साधना तेरी।
∼ मैथिलीशरण गुप्त (राष्ट्रकवि)
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त (३ अगस्त १८८६ – १२ दिसम्बर १९६४) हिन्दी के प्रसिद्ध कवि थे। हिन्दी साहित्य के इतिहास में वे खड़ी बोली के प्रथम महत्त्वपूर्ण कवि हैं। उन्हें साहित्य जगत में ‘दद्दा’ नाम से सम्बोधित किया जाता था। उनकी कृति भारत-भारती (1912) भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के समय में काफी प्रभावशाली सिद्ध हुई थी और और इसी कारण महात्मा गांधी ने उन्हें ‘राष्ट्रकवि‘ की पदवी भी दी थी। उनकी जयन्ती ३ अगस्त को हर वर्ष ‘कवि दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। सन १९५४ में भारत सरकार ने उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया।