तुलसी मेरी माता है।
बरगद को दादा कहने से,
मन पुलकित हो जाता है।
बगिया में जो आम लगा है,
उससे पुश्तैनी नाता है।
कहो बुआ खट्टी इमली को,
मजा तब बहुत आता है।
घर में लगा बबूल पुराना,
वह रिश्ते का चाचा है।
“मैं हूँ बेटे मामा तेरा,”
यह कटहल चिल्लाता है।
आंगन में अमरूद लगा है,
मंद मंद मुस्कराता है।
उसे बड़ा भाई कह दो तो,
ढेरों फल टपकाता है।
यह खजूर कितना ऊंचा है,
नहीं काम कुछ आता है।
पर उसको मौसा कह दो ,
मीठे खजूर खिलवाता है।
अब देखो यह गोल मुसंबी,
इसका पेड़ लजाता है।
पर इसका मीठा खट्टा फल,
दादी सा मुस्काता है।
जिन लोगों का इन पेड़ों से,
घर रिश्ता हो जाता है।
पेड़ बचाने की मुहीम में,
वही सफलता पाता है।
~ प्रभुदयाल श्रीवास्तव
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