जीव जंतुओं की ही भांति,
वृक्षों में जीवन होता है।
कटने पर डाली रोती है,
छटने पर पत्ता रोता है।
जैसे हम बातें करते हैं,
लता वृक्ष भी बतयाते हैं,
जैसे हम भोजन करते हैं,
सभी पेड़ खाना खाते हैं।
जैसे चोट हमें दुख देती,
पेड़ों को भी दुख होता है।
जैसे श्वांस रोज हम लेते ,
लता वृक्ष भी वैसा करते।
किंतु सोखकर दूषित वायु,
प्राण वायु हर रॊज उगलते।
उसी प्राण वायु पर निर्भर,
हम सबका जीवन होता है।
जैसे हमें घाव होने पर,
लहू फूटकर बाहर आता।
वैसे ही कटने छटने पर,
पेड़ों को दुख दर्द सताता।
इतना दुख इस पर भी उनमें,
भाव समर्पण का होता है।
हिंदु मुस्लिम सिख ईसाई,
पेड़ सभी को अपनाते हैं।
सबको सदा एक सी छाया,
सभी एक से फल पाते हैं।
वृक्षों में ना जाति धर्म का,
भेद लघु गुरू का होता है।
पेड़ रहेंगे तो धरती पर,
पर्यावरण सुरक्षित होगा।
पर्यावरण बचाने से ही,
जन जीवन संरक्षित होगा।
इनसे हवा दवा बन जाती,
इनसे जल अमृत होता है।
पर सेवा होती है कैसी,
हम वृक्षों से सीख न लेते।
हमसे कभी न कुछ मांगा है,
वृक्ष सदा देतॆ ही देते।
सेवा त्याग तपस्या हर क्षण,
पेड़ सदा शिक्षा देता है।
~ प्रभुदयाल श्रीवास्तव
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