मन–भुवन में फिर अंधेरा हो गया
पर्वतों का तन
घटाओं ने छुआ,
घाटियों का ब्याह
फिर जल से हुआ;
याद आये फिर तुम्हारे नैन,
देह मछरी, मन मछेरा हो गया
प्राण–वन में
चन्दनी ज्वाला जली,
प्यास हिरनों की
पलाशों ने छली;
याद आये फिर तुम्हाते होंठ,
भाल सूरज का बसेरा हो गया
दूर मंदिर में
जगी फिर रागिनी,
गंध की बहने लगी
मंदाकिनी;
याद आये फिर तुम्हारे पांव,
प्रार्थना हर गीत मेरा हो गया