Sanskrit Poem on Importance of Yoga योगस्य महत्त्वम्

योग पर आधारित हिंदी कविता संग्रह

योग क्या है?

संस्कृत धातु ‘युज‘ से निकला है, जिसका मतलब है व्यक्तिगत चेतना या आत्मा का सार्वभौमिक चेतना या रूह से मिलन। योग, भारतीय ज्ञान की पांच हजार वर्ष पुरानी शैली है। हालांकि कई लोग योग को केवल शारीरिक व्यायाम ही मानते हैं, जहाँ लोग शरीर को मोडते, मरोड़ते, खींचते हैं और श्वास लेने के जटिल तरीके अपनाते हैं। यह वास्तव में केवल मनुष्य के मन और आत्मा की अनंत क्षमता का खुलासा करने वाले इस गहन विज्ञान के सबसे सतही पहलू हैं, योग का अर्थ इन सब से कहीं विशाल है। योग विज्ञान में जीवन शैली का पूर्ण सार आत्मसात किया गया है।

गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर कहते हैं, “योग सिर्फ व्यायाम और आसन नहीं है। यह भावनात्मक एकीकरण और रहस्यवादी तत्व का स्पर्श लिए हुए एक आध्यात्मिक ऊंचाई है, जो आपको सभी कल्पनाओं से परे की कुछ एक झलक देता है“।

रूपांतरण का सलीका है योग [योग कविता 1]

अरूप का नायब तोहफा है योग,
तरो-ताजा हवा का, झोंका है योग।

साँसों में बसी हैं, कायनात जिसकी,
उसी के नूर का, सरोपा है योग।

सन्नाटे का साज, बजता यह अहर्निश,
साँसों के सुरों का, सफहा है योग।

किस कदर गूँजती है, रूह की सदाकत,
वेदों के माधुर्य का झरोखा है योग।

उमगती अलमस्ती कोई अन्तर्तम से,
मन से चेतना तक इजाफा है योग।

स्व का स्पंदन है, अगाध पारावार,
तन-मन का नियति से नाता है योग।

त्याग नहीं बोध है, अशुभ का निवारण,
रूपान्तरण का सहज सलीका है योग।

अतीन्द्रिय बोध से संवरते हैं हम,
श्वास-दर-श्वास का सरोधा है योग।

कोलाहल डूब गया, शान्ति के स्वरों में,
बूँद का सागर से सौदा है योग।

प्राणों में बजती है, चेतना की वंशी,
अगम्य से मिलन का मौका है योग।

ज्योतिमेय ऊर्जा से चलता जीवन,
अमृत-सा-मीठा शरीफा है योग।

~ गिरिराज सुधा

योगदान [योग कविता 2]

भारतीय योग संस्थान का अनुपम योगदान।
नित करें योगासन प्राणायाम ध्यान।
बनी रहे सदा चेहरे पर मुस्कान।।
बढाइए योग से जागरूकता, ज्ञान।
मत भूलिए करना अपना सम्मान।।
हे माटी के पुतले क्यों करते हो अभिमान।
एकाग्रता आन्तरिक चेतना को बढ़ाती।
योग की शक्ति हमें जीना सिखाती।।
जब जीवन में समर्पण, श्रद्धा है आती।
जीवन की धारा सार्थक बन जाती।।
ध्यान की अतल गहराई करती है उत्थान।
छोड़ दो पीछे जीवन की सकल बुराई।
निःस्वार्थ सेवा की खिलाओ अमराई।।
जिसने भी जीवन में प्रेम नदी बहाई।
खुशियां ही खुशियां आंगन में लहराईं।।
योग ही है जीवन-समस्या का समाधान।
भारतीय योग संस्थान का अनुपम योगदान।।

~ रेखा सिंघल

योग की शरण में आ [योग कविता 3]

बुद्धि प्रदाता बल वर्धक, योग का अभ्यास कर लो।
स्वास्थ्य का आनन्द लूटो, रोग सारे नाश कर लो।।
योग बल से बढके जग में, और कोई बल नहीं।
ले सहारा योग का निज मन को निज दास कर लो।।
स्वस्थ तन हो, स्वस्थ मन हो, तो न क्यों आनंद हो।
हर तरह से स्वस्थ रह कर, मन की पूरी आस कर लो।।
पद्धति प्राचीन है यह, मेरे भारत देश की।
अपने ऋषियों के वचन पर, थोड़ा तो विश्वास कर लो।।
वृद्ध को भी तरुण कर दे, योग में वह शक्ति है।
योग की इस तरु छाया में, बैठ कर विश्राम कर लो।।
ऋद्धि-सिद्धि भक्ति-मुक्ति, योग से ही पाओगे।
स्वीकार कर एक बार वह, प्रभु की अरदास कर लो।।
भारतीय योग संस्थान ने, बताया बिगुल योग का।
अपने दिल में अंकित तुम यह बात खास कर लो।।

~ हंस

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