ज़िन्दगी की शाम – राजीव कृष्ण सक्सेना

कह नहीं सकता
समस्याएँ बढ़ी हैं,
और या कुछ
घटा है सम्मान।

बढ़ रही हैं नित निरंतर,
सभी सुविधाएं,
कमी कुछ भी नहीं है,
प्रचुर है धन धान।

और दिनचर्या वही है,
संतुलित पर हो रहा है
रात्रि का भोजन,
प्रात का जलपान।

घटा है उल्लास,
मन का हास,
कुछ बाकी नहीं
आधे अधूरे काम।

और वय कुछ शेष,
बैरागी हृदय चुपचाप तकता,
अनमना, कुछ क्षीण होती
जिंदगी की शाम।

∼ राजीव कृष्ण सक्सेना

About Rajiv Krishna Saxena

प्रो. राजीव कृष्ण सक्सेना - जन्म 24 जनवरी 1951 को दिल्ली मे। शिक्षा - दिल्ली विश्वविद्यालय एवं अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली में। एक वैज्ञानिक होने पर भी प्रोफ़ेसर सक्सेना को हिंदी सहित्य से विशेष प्रेम है। उन्होंने श्रीमद भगवतगीता का हिंदी में मात्राबद्ध पद्यानुवाद किया जो ''गीता काव्य माधुरी'' के नाम से पुस्तक महल दिल्ली के द्वारा प्रकाशित हुआ है। प्रोफ़ेसर सक्सेना की कुछ अन्य कविताएँ विभिन्न पत्रिकाओं मे छप चुकी हैं। उनकी कविताएँ लेख एवम गीता काव्य माधुरी के अंश उनके website www.geeta-kavita.com पर पढ़े जा सकते हैं।

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