वन्दे मातरम् - बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय

वन्दे मातरम्: बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय

वन्दे मातरम् भारत का संविधान सम्मत राष्ट्रगीत है।

बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय द्वारा संस्कृत बाँग्ला मिश्रित भाषा में रचित इस गीत का प्रकाशन सन् 1882 में उनके उपन्यास आनन्द मठ में अन्तर्निहित गीत के रूप में हुआ था। इस उपन्यास में यह गीत भवानन्द नाम के सन्यासी द्वारा गाया गया है। इसकी धुन यदुनाथ भट्टाचार्य ने बनायी थी।

संस्कृत मूल गीत

वन्दे मातरम्।
सुजलाम् सुफलाम् मलय़जशीतलाम्,
शस्यश्यामलाम् मातरम्।
वन्दे मातरम् ॥१॥

शुभ्रज्योत्स्ना पुलकितयामिनीम्,
फुल्लकुसुमित द्रुमदलशोभिनीम्,
सुहासिनीम् सुमधुरभाषिणीम्,
सुखदाम् वरदाम् मातरम्।
वन्दे मातरम् ॥२॥

कोटि-कोटि कण्ठ कल-कल निनाद कराले,
कोटि-कोटि भुजैर्धृत खरकरवाले,
के बॉले माँ तुमि अबले,
बहुबलधारिणीं नमामि तारिणीम्,
रिपुदलवारिणीं मातरम्।
वन्दे मातरम् ॥३॥

तुमि विद्या तुमि धर्म,
तुमि हृदि तुमि मर्म,
त्वम् हि प्राणाः शरीरे,
बाहुते तुमि माँ शक्ति,
हृदय़े तुमि माँ भक्ति,
तोमारेई प्रतिमा गड़ि मन्दिरे-मन्दिरे।
वन्दे मातरम् ॥४॥

त्वम् हि दुर्गा दशप्रहरणधारिणी,
कमला कमलदलविहारिणी,
वाणी विद्यादायिनी, नमामि त्वाम्,
नमामि कमलाम् अमलाम् अतुलाम्,
सुजलां सुफलां मातरम्।
वन्दे मातरम् ॥५॥

श्यामलाम् सरलाम् सुस्मिताम् भूषिताम्,
धरणीम् भरणीम् मातरम्।
वन्दे मातरम् ॥६॥

(बाँग्ला मूल गीत)

সুজলাং সুফলাং মলয়জশীতলাম্
শস্যশ্যামলাং মাতরম্॥

শুভ্রজ্যোত্স্না পুলকিতযামিনীম্
পুল্লকুসুমিত দ্রুমদলশোভিনীম্
সুহাসিনীং সুমধুর ভাষিণীম্
সুখদাং বরদাং মাতরম্॥

কোটি কোটি কণ্ঠ কলকলনিনাদ করালে
কোটি কোটি ভুজৈর্ধৃতখরকরবালে
কে বলে মা তুমি অবলে
বহুবলধারিণীং নমামি তারিণীম্
রিপুদলবারিণীং মাতরম্॥

তুমি বিদ্যা তুমি ধর্ম, তুমি হৃদি তুমি মর্ম
ত্বং হি প্রাণ শরীরে
বাহুতে তুমি মা শক্তি
হৃদয়ে তুমি মা ভক্তি
তোমারৈ প্রতিমা গড়ি মন্দিরে মন্দিরে॥

ত্বং হি দুর্গা দশপ্রহরণধারিণী
কমলা কমলদল বিহারিণী
বাণী বিদ্যাদায়িনী ত্বাম্
নমামি কমলাং অমলাং অতুলাম্
সুজলাং সুফলাং মাতরম্॥

শ্যামলাং সরলাং সুস্মিতাং ভূষিতাম্
ধরণীং ভরণীং মাতরম্॥

बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय

हिन्दी-अनुवाद इस प्रकार है:

मैं आपके सामने नतमस्तक होता हूँ। ओ माता!
पानी से सींची, फलों से भरी,
दक्षिण की वायु के साथ शान्त,
कटाई की फसलों के साथ गहरी,
माता!

उसकी रातें चाँदनी की गरिमा में प्रफुल्लित हो रही हैं,
उसकी जमीन खिलते फूलों वाले वृक्षों से बहुत सुन्दर ढकी हुई है,
हँसी की मिठास, वाणी की मिठास,
माता! वरदान देने वाली, आनन्द देने वाली।

Check Also

Guru Nanak Jayanti Recipes: Gurpurab Recipes

Love Never Dies: Guru Nanak Devotional Poetry

‘Guru Nanak Dev Ji’ was born on 15 April 1469 at Rāi Bhoi Kī Talvaṇḍī, …