दलाई लामा के अनमोल विचार: चौदहवें दलाई लामा तेनजिन ग्यात्सो (6 जुलाई, 1935 – वर्तमान) तिब्बत के राष्ट्राध्यक्ष और आध्यात्मिक गुरू हैं। उनका जन्म उत्तर-पूर्वी तिब्बत के ताकस्तेर क्षेत्र में रहने वाले येओमान परिवार में हुआ था। दो वर्ष की अवस्था में बालक ल्हामो धोण्डुप की पहचान १३ वें दलाई लामा थुबटेन ग्यात्सो के अवतार के रूप में की गई। दलाई लामा एक मंगोलियाई पदवी है जिसका मतलब होता है ज्ञान का महासागर और दलाई लामा के वंशज करूणा, अवलोकेतेश्वर के बुद्ध के गुणों के साक्षात रूप माने जाते हैं। बोधिसत्व ऐसे ज्ञानी लोग होते हैं जिन्होंने अपने निर्वाण को टाल दिया हो और मानवता की रक्षा के लिए पुनर्जन्म लेने का निर्णय लिया हो। उन्हें सम्मान से परमपावन की कहा जाता है।
दलाई लामा के अनमोल विचार विद्यार्थियों के लिए
- सभी प्रमुख धार्मिक परम्पराएं मूल रूप से एक ही संदेश देती हैं – प्रेम, दया और क्षमा – महत्वपूर्ण बात यह है कि ये हमारे दैनिक जीवन का हिस्सा होनी चाहियें।
- जब कभी संभव हो दयालु बने रहिये। यह हमेशा संभव है।
- प्रसन्नता पहले से निर्मित कोई चीज नहीं है… ये आप ही के कर्मों से आती है।
- यदि आप दूसरों की मदद कर सकते हैं, तो अवश्य करें; यदि नहीं कर सकते हैं तो कम से कम उन्हें नुकसान नही पहुचाइए।
- यदि आपकी कोई विशेष निष्ठा या धर्म है, तो अच्छा है। लेकिन आप उसके बिना भी जी सकते हैं।
- यदि आप दूसरों को प्रसन्न देखना चाहते हैं तो करुणा का भाव रखें। यदि आप स्वयम प्रसन्न रहना चाहते हैं तो भी करुणा का भाव रखें।
- सहिष्णुता के अभ्यास में, आपका शत्रु ही आपका सबसे अच्छा शिक्षक होता है।
- यह ज़रूरी है कि हम अपना दृष्टिकोण और ह्रदय जितना सभव हो अच्छा करें। इसी से हमारे और अन्य लोगों के जीवन में, अल्पकाल और दीर्घकाल दोनों में ही खुशियाँ आयंगी।
- प्रेम और करुणा आवश्यकताएं हैं, विलासिता नहीं। उनके बिना मानवता जीवित नहीं रह सकती।
- मेरा धर्म बहुत सरल है। मेरा धर्म दयालुता है।
- पुराने मित्र छूटते हैं, नए मित्र बनते हैं। यह दिनों की तरह ही है। एक पुराना दिन बीतता है, एक नया दिन आता है। महत्त्वपूर्ण यह है कि हम उसे सार्थक बनाएं: एक सार्थक मित्र या एक सार्थक दिन।
- कभी-कभी लोग कुछ कह कर अपनी एक प्रभावशाली छाप बना देते हैं, और कभी-कभी लोग चुप रहकर अपनी एक प्रभावशाली छाप बना देते हैं।
- अपनी क्षमताओं को जान कर और उनमे यकीन करके ही हम एक बेहतर विश्व का नित्मान कर सकते हैं।
- मंदिरों की आवश्यकता नहीं है, ना ही जटिल तत्त्वज्ञान की। मेरा मस्तिष्क और मेरा हृदय मेरे मंदिर हैं; मेरा दर्शन दयालुता है।
- हम बाहरी दुनिया में कभी शांति नहीं पा सकते हैं, जब तक की हम अन्दर से शांत ना हों।
- हमारे जीवन का उद्देश्य प्रसन्न रहना है।