कार्ल हेनरिख मार्क्स (1818 – 1883) जर्मन दार्शनिक, अर्थशास्त्री और वैज्ञानिक समाजवाद का प्रणेता। 5 मई 1818 को त्रेवेस (प्रशा) एक यहूदी परिवार में उत्पन्न हुआ। 1824 में उसके परिवार ने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया। 17 वर्ष की अवस्था में मार्क्स ने कानून का अध्ययन करने के लिए बॉन विश्वविद्यालय में प्रवेश किया। तत्पश्चात् उसने बर्लिन और जेना विश्व-विद्यालयों में साहित्य, इतिहास और दर्शन का अध्ययन किया। इसी काल में वह हीगेल के दर्शन से बहुत प्रभावित हुआ। 1839-41 में उसने दिमॉक्रितस और एपीक्यूरस के प्राकृतिक दर्शन पर शोघ-प्रबंध लिखकर डाक्टरेट प्राप्त की।
हर किसी से उसकी क्षमता के अनुसार, हर किसी को उसकी ज़रुरत के अनुसार।
इतिहास खुद को दोहराता है, पहले एक त्रासदी की तरह, दुसरे एक मज़ाक की तरह।
कोई भी जो इतिहास की कुछ जानकारी रखता है वो ये जानता है कि महान सामाजिक बदलाव बिना महिलाओं के उत्थान के असंभव हैं। सामाजिक प्रगति महिलाओं की सामजिक स्थिति, जिसमे बुरी दिखने वाली महिलाएं भी शामिल हैं; को देखकर मापी जा सकती है।
लोकतंत्र समाजवाद का रास्ता है।
पूँजी मृत श्रम है, जो पिशाच की तरह केवल जीवित श्रमिकों का खून चूस कर जिंदा रहता है और जितना अधिक ये जिंदा रहता है उतना ही अधिक श्रमिकों को चूसता है।
दुनिया के मजदूरों एकजुट हो जाओ; तुम्हारे पास खोने को कुछ भी नहीं है, सिवाय अपनी जंजीरों के।
धर्म लोगों का अफीम है।
धर्म मानव मस्तिष्क जो न समझ सके उससे निपटने की नपुंसकता है।
शाशक वर्ग को कम्युनिस्ट क्रांति के डर से कांपने दो। मजदूरों के पास अपनी जंजीरों के आलावा और कुछ भी खोने को नहीं है। उनके पास जीतने को एक दुनिया है। सभी देश के कामगारों एकजुट हो जाओ।
सामाजिक प्रगति समाज में महिलाओं को मिले स्थान से मापी जा सकती है।
साम्यवाद के सिद्धांत का एक वाक्य में अभिव्यक्त किया जा सकता है। सभी निजी संपत्ति को ख़त्म किया जाये।
नौकरशाह के लिए दुनिया महज एक हेर-फेर करने की वस्तु है।
इतिहास कुछ भी नहीं करता। उसके पास आपार धन नहीं होता, वो लड़ाईयां नहीं लड़ता। वो तो मनुष्य हैं, वास्तविक, जीवित, जो ये सब करते हैं।
शांति का अर्थ साम्यवाद के विरोध का नहीं होना है।
अगर कोई चीज निश्चित है तो ये कि मैं खुद एक मार्क्सवादी नहीं हूँ।