- ज़रुरत तब तक अंधी होती है जब तक उसे होश न आ जाये। आज़ादी ज़रुरत की चेतना होती है।
- मानसिक पीड़ा का एकमात्र मारक शारीरिक पीड़ा है।
- इसलिए पूंजीवादी उत्पादन टेक्नोलोजी विकसित करता है, और तरह-तरह की प्रक्रियाओं को सम्पूर्ण समाज में मिला देता है; पर ऐसा वो सिर्फ संपत्ति के मूल स्रोतों – मिटटी और मजदूर को सोख कर कर करता है।
- पूंजीवादी समाज में पूँजी स्वतंत्र और व्यक्तिगत है, जबकि जीवित व्यक्ति आश्रित है और उसकी कोई वैयक्तिकता नहीं है।
- बहुत सारी उपयोगी चीजों के उत्पादन का परिणाम बहुत सारे बेकार लोग होते हैं।
- अमीर गरीब के लिए कुछ भी कर सकते हैं लेकिन उनके ऊपर से हट नहीं सकते।
- अनुभव सबसे खुशहाल लोगों की प्रशंशा करता है, वे जिन्होंने सबसे अधिक लोगों को खुश किया।
- लोगों की ख़ुशी के लिए पहली आवश्यकता धर्म का अंत है।
- बिना किसी शक के मशीनों ने समृद्ध आलसियों की संख्या बहुत अधिक बढ़ा दी है।
- यह बिल्कुल असंभव है कि प्रकृति के नियमों से ऊपर उठा जाए। जो ऐतिहासिक परिस्थितियों में बदल सकता है वह महज वो रूप है जिसमे ये नियम खुद को क्रियान्वित करते हैं।
- पूँजी मजदूर की सेहत या उसके जीवन की लम्बाई के प्रति लापरवाह है, जब तक की उसके ऊपर समाज का दबाव ना हो।
- धर्म दीन प्राणियों का विलाप है, बेरहम दुनिया का ह्रदय है और निष्प्राण परिस्थितियों का प्राण है। यह लोगों का अफीम है।
- समाज व्यक्तियों से नहीं बना होता है बल्कि खुद को अंतर संबंधों के योग के रूप में दर्शाता है, वो सम्बन्ध जिनके बीच में व्यक्ति खड़ा होता है।
- हमें ये नहीं कहना चाहिए कि एक आदमी के एक घंटे की कीमत दूसरे आदमी के एक घंटे के बराबर है, बल्कि ये कहें कि एक घंटे के दौरान एक आदमी उतना ही मूल्यवान है जितना कि एक घंटे के दौरान कोई और आदमी। समय सबकुछ है, इंसान कुछ भी नहीं: वह अधिक से अधिक समय का शव है।
- पिछले सभी समाजों का इतिहास वर्ग संघर्ष का इतिहास रहा है।
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