भारत का राष्ट्र-गान आप ही की देन है। रविन्द्रनाथ टैगोर की बाल्यकाल से कविताएं और कहानियाँ लिखने में रुचि थी। रवीन्द्रनाथ टैगोर को प्रकृति से अगाध प्रेम था।
एक बांग्ला कवि, कहानीकार, गीतकार, संगीतकार, नाटककार, निबंधकार और चित्रकार थे। भारतीय संस्कृति के सर्वश्रेष्ठ रूप से पश्चिमी देशों का परिचय और पश्चिमी देशों की संस्कृति से भारत का परिचय कराने में टैगोर की बड़ी भूमिका रही तथा आमतौर पर उन्हें आधुनिक भारत का असाधारण सृजनशील कलाकार माना जाता है।
रविन्द्रनाथ टैगोर के अनमोल विचार विद्यार्थियों और बच्चों के लिए
- तर्कों की झड़ी, तर्कों की धूलि और अन्धबुद्धि ये सब आकुल व्याकुल होकर लौट जाती है, किन्तु विश्वास तो अपने अन्दर ही निवास करता है, उसे किसी प्रकार का भय नहीं है।
- सिर्फ खड़े होकर पानी को ताकते रहने से आप समुंद्र को पार नहीं कर सकते।
- स्वर्ण कहता है – मुझे न तो आग में तपाने से दुःख होता है, न काटने पीटने से और न कसौटी पर कसने से। मेरे लिए तो जो महान दुःख का कारण है, वह है घुंघची के साथ मुझे तौलना।
- बीज के ह्रदय में प्रतीक्षा करता हुआ विश्वास जीवन में एक महान आश्चर्य का वादा करता है, जिसे वह उसी समय सिद्ध नहीं कर सकता।
- हमेशा तर्क करने वाला दिमाग धार वाला वह चाकू है जो प्रयोग करने वाले के हाथ से ही खून निकाल देता है।
- सच्ची आध्यात्मिकता, जिसकी शिक्षा हमारे पवित्र ग्रंथों में दी हुई है, वह शक्ति है, जो अन्दर और बाहर के पारस्परिक शांतिपूर्ण संतुलन से निर्मित होती है।
- मन जहाँ डर से परे है और सिर जहाँ ऊँचा है, ज्ञान जहाँ मुक्त है और जहाँ दुनिया को संकीर्ण घरेलु दीवारों से छोटे-छोटे टुकड़ों में बांटा नहीं गया है, जहाँ शब्द सच की गहराइयों से निकलते हैं, जहाँ थकी हुई प्रयासरत बाहें त्रुटि हीनता की तलाश में हैं, जहाँ कारण की स्पष्ट धारा है, जो सुनसान रेतीले मृत आदत के वीराने में अपना रास्ता खो नहीं चुकी है, जहाँ मन हमेशा व्यापक होते विचार और सक्रियता में तुम्हारे जरिये आगे चलता है, और आज़ादी के स्वर्ग में पहुँच जाता है। ओ पिता! मेरे देश को जागृत बनाओं।
- आश्रय के एवज में आश्रितों से यदि काम ही लिया गया, तो वह नौकरी से भी बदतर है। उससे आश्रयदान का महत्त्व ही जाता रहता है।
- जो आत्मा शरीर में रहती है, वही ईश्वर है और चेतना रूप से विवेक के द्वारा सब शरीरों का काम चलाती है। लोग उस अन्तर्देव को भूल जाते हैं और दौड़-दौड़ कर तीर्थों में जाते हैं।
- देश का जो आत्माभिमान हमारी शक्ति को आगे बढ़ाता है, वह प्रशंसनीय है। पर जो आत्माभिमान हमें पीछे खींचता है, वह सिर्फ खूंटे से बांधता है, यह धिक्कारनीय है।