पौराणिक काल का कम्बोज देश कल का कम्पूचिया और आज का कम्बोडिया है जहां सदियों के कालखण्ड में 27 राजाओं ने राज किया। कोई हिन्दू रहा, कोई बौद्ध। यही वजह है कि पूरे देश में दोनों धर्मों के देवी-देवताओं की मूर्तियां बिखरी पड़ी हैं। भगवान बुद्ध तो हर जगह हैं ही, लेकिन शायद ही कोई ऐसी खास जगह हो, जहां ब्रह्मा, विष्णु, महेश में से कोई न हो।
कम्बोडिया देश की मीकांग नदी के किनारे सिमरिप शहर में स्थित विश्व का सबसे बड़ा हिन्दू मंदिर परिसर अन्कोर पार्क है, जो सैकड़ों वर्ग मील में फैला हुआ है। इस परिसर के अन्दर स्थित विष्णु मंदिर आज भी संसार का सबसे बड़ा हिन्दू मंदिर अन्कोरवाट है। कम्बोडिया के लिए सम्मान के प्रतीक इस मंदिर को 1983 से कम्बोडिया के राष्ट्रध्वज में भी स्थान दिया गया है। यह मंदिर मेरु पर्वत का भी प्रतीक है।
विश्व के लोकप्रिय पर्यटन स्थानों में से एक होने के साथ ही यह मंदिर यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थलों में से एक है। पर्यटक यहां केवल मंदिर की संरचना का अनुपम सौन्दर्य देखने ही नहीं आते बल्कि यहां का सूर्योदय और सूर्यास्त देखने भी आते हैं। विश्व विरासत में शामिल अन्कोर पार्क मंदिर-समूह को अन्कोर के राजा सूर्यवर्मन द्वितीय ने बारहवीं सदी में बनवाया था। चैदहवीं सदी में बौद्ध धर्म का प्रभाव बढ़ने पर शासकों ने इसे बौद्ध स्वरुप दे दिया। बाद की सदियों में यह गुमनामी के अंधेरे में खो गया। एक फ्रान्सिसी पुरातत्त्वविद ने इसे खोज निकाला। आज यह मन्दिर जिस रुप में है, उसमें भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण का बहुत योगदान है। सन् 1986 से 93 तक एएसआई ने यहां संरक्षण का काम किया था।
अन्कोर वाट की दीवारें रामायण और महाभारत की कहानियां कहती हैं क्योंकि सीता हरण, हनुमान का अशोक वाटिका में प्रवेश, अंगद प्रसंग, राम-रावण युद्ध, महाभारत जैसे अनेक दृश्य बेहद बारीकी से उकेरे गए हैं। अन्कोर वाट के आसपास कई प्राचीन मन्दिर और उनके भग्नावशेष मौजूद हैं। इस क्षेत्र को अन्कोर पार्क कहा जाता है। अतीत की इस अनूठी विरासत को देखने हर साल दुनिया भर से दस लाख से ज्यादा लोग आते हैं।
अन्कोरवाट मंदिर का वास्तु विश्लेषण करने पर यह तो तय है कि इस मंदिर का निर्माण वास्तु के सिद्धातों के अनुसार तो नहीं किया गया परंतु लगभग 900 वर्ष पूर्व उस समय के विद्वानों ने जिस प्रकार से इसकी प्लाॅनिंग की वह सहज भाव से बहुत कुछ वास्तुनुकूल हो गया परंतु कुछ वास्तुदोष रहे जिस कारण यह मंदिर कुछ सदियों तक लुप्त रहा। प्रारम्भ में यह हिन्दू मंदिर था, बाद में बौद्ध मंदिर में परिवर्तित हो गया। आईए अन्कोरवाट मंदिर का वास्तु विश्लेषण करके इसका कारण जानते हैं।
अन्कोर पार्क के अन्दर स्थित अन्कोरवाट विष्णु मंदिर की रक्षा एक चतुर्दिक खाई करती है, जिसकी चैड़ाई लगभग 700 फीट है जो कि बहुत चैड़ी है। मंदिर के चारों ओर स्थित यह खाई दूर से झील के समान दृष्टिगोचर होती है। मंदिर के पश्चिम की ओर इस खाई को पार करने के लिए एक पुल बना हुआ है। इस पुल पर जाने के लिए सीढि़यां चढ़नी पड़ती हैं। इस कारण यहां से वाहन नहीं आ-जा सकते। पुल के पार मंदिर में प्रवेश के लिए एक विशाल द्वार निर्मित है जो लगभग 1000 फुट चौड़ा है। मंदिर में आने के लिए पूर्व दिशा से भी एक रास्ता है। जो खाई को मिट्टी से पाटकर बनाया गया है जिसके ऊपर से वाहन भी अन्दर आते-जाते हैं। पश्चिम दिशा स्थित मुख्य प्रवेशद्वार से लगभग पौन किलोमीटर चलने के बाद मुख्य मंदिर स्थित है। पानी से भरी खाई और मुख्य मंदिर की बाहरी चार दीवारी के बीच चारों ओर खुली जगह है।
इस खुले भाग में इतने घने पेड़-पौधे हैं कि जंगल का आभास होता है। पानी से भरी खाई और मंदिर की चार दीवारी के बीच जो खुली जगह है, इसकी उत्तर दिशा अन्य दिशाओं की तुलना में नीची है। अन्कोर वाट मंदिर की उत्तर दिशा में खाई से लगभग एक-डेढ किलोमीटर दूर सिमरिप नदी बह रही है इस कारण मंदिर के बाहर की जमीन का ढ़लान भी उत्तर दिशा की ओर ही है। वास्तुशास्त्र के अनुसार उत्तर दिशा की नीचाई प्रसिद्धि दिलाने में सहायक होती है। मन्दिर की चार दीवारी के बाहर खुले भाग की दक्षिण दिशा में एक मठ है। इस मठ में रहने वाले बौद्ध भिक्षु ही अन्कोरवाट मंदिर में पूजा अर्चना एवं देख-रेख करते हैं और उत्तर दिशा में खाने-पीने और गिफ्ट आईटम के कुछ स्टाल बने हुए हैं। यह तो हुआ अन्कोरवाट मन्दिर की चार दीवार के बाहर का वास्तु विश्लेषण।