अन्कोरवाट विष्णु मंदिर एक विशाल ऊंचे चबूतरे पर स्थित है। चबूतरे के चारों ओर लगभग 3 फीट ऊंची पैराफीट वाल है। इस चबूतरे पर ऊपर चढ़ने के लिए चारों दिशाओं में मध्य में चौड़ी सीढि़यां हैं। इसी के साथ चबूतरे के चारों कोनों की दोनों दिशाओं में कम चौड़ी सीढि़यां बनी हुई हैं। इस प्रकार चबूतरे पर चढ़ने के लिए 4 चौड़ी और 8 कम चौड़ी कुल 12 सीढि़यां बनी हुई हैं। चबूतरा पार करने के बाद मंदिर की बाहरी कम्पाऊण्ड वाल का निर्माण लगभग 10 फीट चौड़े गलियारे के आकार में किया गया है। यह गलियारा बाहरी चबूतरे से कुछ फीट ऊंचा है। इस गलियारे में प्रवेश करने के लिए भी चबूतरे के समान 4 चौड़े और 8 कम चौड़े प्रवेश द्वार बने हुए हैं। इसके कुछ फीट अंदर जाने पर एक ओर गलियारा आता है। इन दोनों गलियारों के बीच में नैऋत्य कोण एवं वायव्य कोण में मंदिर बने हैं जबकि बाकी दो ईशान कोण और आग्नेय कोण में कोई निर्माण कार्य नहीं है।
दोनों जगह बने यह मंदिर कम्पाऊण्ड वाल और मुख्य मंदिर की दीवार से हटकर बने हैंं। इस प्रकार यह निर्माण पूर्णतः वास्तुनुकूल है इसी के साथ इन दोनों मंदिरों के निर्माण से अन्कोरवाट मंदिर की पश्चिम दिशा भारी होकर वास्तुनुकूल हो गई है। दोनों गलियारों को पार करने के बाद मध्य में स्थित मुख्य मंदिर तक जाने के लिए एक ओर गलियारा पार करना पड़ता है, यह गलियारा पुनः पहले के दोनों गलियारों से भी थोड़ा ऊंचाई लिए हुए है। ठोस जमीन पर स्थित मंदिर जो लगभग 50-60 फीट की ऊंचाई पर है वहां तक जाने के लिए मंदिर तक खड़ी सीढि़यां बनी हैं। इस प्रकार बाहरी खुले भाग के बाद चबूतरें पर चढ़कर ज्यों-ज्यों मन्दिर के अंदर की ओर जाते हैं तो देखने में आता है कि जमीन को ऊंचा करने के साथ-साथ मंदिर का निर्माण भी ऊंचाई लेकर किया गया है।
इस प्रकार अन्कोरवाट मन्दिर के मध्य में स्थित मन्दिर का मुख्य एवं अन्य शिखर मिस्र एवं मेक्सिको के स्टेप पिरामिडों की तरह सीढ़ी पर उठते गए हैं। इसका मुख्य शिखर लगभग 64 मीटर ऊंचा है। इसके अतिरिक्त अन्य सभी आठों शिखर 54 मीटर ऊंचे हैं। इन आठों शिखर की सीढि़यां भी मुख्य शिखर की तरह ही खड़ी बनी हैं। इस प्रकार मंदिर की जमीन कछुएं की पीठ की तरह मध्य में ऊंची और चारों दिशाओं में क्रमशः नीची होती गई है।
वास्तुशास्त्र के अनुसार ऐसी भूमि को कूर्म पृष्ठ भूमि कहते हैं, जिसमें भूमि मध्य में ऊंची तथा चारों ओर नीची होती है। ऐसी भूमि पर भवन बनाकर रहने वालों के घर में हमेशा उत्साह का वातावरण रहता है। उस घर में सुख-समृद्धि का वास रहता है।
इस प्रकार अन्कोरवाट विष्णु मंदिर की भौगोलिक स्थिति और बनावट पूर्णतः वास्तुनुकूल है, किन्तु यहां दो महत्त्वपूर्ण वास्तुदोष भी हैं जो मंदिर की चार दीवारी के बाहर खुले भाग में हैं।
पहला वास्तुदोष अन्कोरवाट मन्दिर के चबूतरे की पश्चिम दिशा में लगभग 200 मीटर दूरी पर दो बड़े तालाब है। एक पश्चिम वायव्य कोण एवं दूसरा पश्चिम नैऋत्य कोण में बना है। सूर्योदय देखने के लिए पर्यटक प्रातः 5 बजे से वायव्य कोण के तालाब के किनारे आकर बैठने लगते हैं। यह दोनों ही तालाब वास्तु विपरीत स्थान पर बने हैं। इस वास्तुदोष को दूर करने के लिए इन दोनों तालाबों को मिट्टी डालकर भर देना चाहिए और एक नया बड़े आकार का तालाब केवल ईशान कोण में बनाना चाहिए। जैसा कि भारत स्थित तिरुपति बालाजी मन्दिर, पद्मनाथ स्वामी मन्दिर तिरुअनन्तपुरम् इत्यादि स्थानों पर है।
मंदिर में आने के लिए पूर्व दिशा के मध्य में लोगों एवं वाहनों के आने-जाने के लिए खाई को मिट्टी से पाटकर जो रास्ता बनाया गया है यह अन्कोरवाट का दूसरा वास्तुदोष है। इस वास्तुदोष को दूर करने के लिए इस जगह की मिट्टी खोदकर खाई बना देनी चाहिए ताकि खाई चारों ओर समान रुप में हो जाए। पर्यटकों एवं वाहनों के आने-जाने के लिए खाई के ऊपर पूल बना देना चाहिए। इन दोनों वास्तुदोषों को दूर करने के जो समाधान बताए हैं उससे इसके पुरातत्त्व स्वरुप में भी कोई अन्तर नहीं आएगा।
अन्कोरवाट मंदिर में पर्यटक तो खूब आते हैं, किन्तु उपरोक्त वास्तुदोषों के कारण पर्यटको में इस मंदिर के प्रति वह आस्था और श्रद्धा नजर नहीं आती जो हमें भारत के प्रसिद्ध मंदिरों में देखने को मिलती है। यदि इन दोनों वास्तुदोषों को दूर कर दिया जाए तो यह तय है, कि न केवल अन्कोर वाट मंदिर के प्रति लोगों में न केवल आस्था एवं श्रद्धा उत्पन्न होगी बल्कि पर्यटकों की संख्या में भारी इजाफा हो जाएगा।