माता आशापुरा मंदिर, कच्छ, गुजरात

माता आशापुरा मंदिर, कच्छ, गुजरात

गुजरात की धरती पर मंदिरों और धामों का खासा महत्व है। प्रधानमंत्री मोदी ने भी गुजरात के उन्हीं मंदिरों में से एक मंदिर के सोमवार को दर्शन किए। मोदी ने सोमवार को गुजरात के कच्छ इलाके से राज्य में अपने चुनावी अभियान की शुरुआत इसी मंदिर से की। मोदी सबसे पहले कच्छ के आशापुरा मंदिर पहुंचे और भगवान का आशीर्वाद लिया। प्रधानमंत्री ने मंदिर में करीब 20 मिनट तक पूजा-अर्चना भी की।

राजस्थान में पोखरण, मादेरा, और नाडोल मे आशापुरा माता के मंदिर हैं। ये मंदिर गुजरात की राजनीति में इन धामों का कितना महत्व है, इसे इस उदाहरण से भी समझा जा सकता है कि नरेंद्र मोदी जब तक मुख्यमंत्री रहे, वो हर चुनाव में खोडलधाम माता के सामने मत्था टेकने जाते थे। हालांकि, इस बार पटेलों की नाराजगी के बावजूद मोदी वहां नहीं गए। वहीं दूसरी तरफ राहुल गांधी द्वारकाधीश मंदिर से लेकर गांधीनगर के अक्षरधाम मंदिर तक जा चुके हैं।

आशापुरा मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है यहां की देवी आशापुरा मां को कच्छ की कुलदेवी माना जाता है और बड़ी तादाद में इलाके के लोगों की उनमें आस्था है। आशापुरा माता की मूर्ति की एक खास बात यह है कि उनकी 7 जोड़ी आंखें हैं। आशापुरा माता को कई समुदायों द्वारा कुलदेवी के रूप में माना जाता है, और मुख्यत: नवानगर, राजकोट, मोरवी, गोंडल बारिया राज्य के शासक वंश चौहान, जडेजा राजपूत, कच्छ, की कुलदेवी है। गुजरात में आशापुरा माता का मुख्य मंदिर कच्छ में माता भुज से 95 किलोमीटर दूर पर स्थित है। वहां पर कच्छ के गोसर और पोलादिया समुदाय के लोग भी आशापुरा माता को अपनी कुलदेवता मानते हैं।

14वीं शताब्दी में निर्मित आशापुरा माता मंदिर जडेजा राजपूतों की प्रमुख कुलदेवी आशापुरा माता को समर्पित है, इस का निर्माण जडेजा साम्राज्य के शासनकाल के दौरान किया गया था। आशापुरा देवी मां को अन्नपूर्णा देवी का अवतार कहा जाता है इसीलिए आशापुरा देवी मां के प्रति श्रद्धालुओं की गहरी आस्था है। मान्यता अनुसार आशापुरा देवी मां हर मुराद अवश्य पूरी करती हैं। यहीं नहीं गुजरात में कई अन्य समुदाय भी आशापुरा देवी को अपनी कुलदेवी के तौर पर पूजते हैं।

मंदिर के भीतर 6 फीट ऊंची लाल रंग की आशापुरा माता की प्रतिमा स्थापित है। साल भर श्रद्धालु माता के दर्शन के लिए मंदिर में जुटते हैं। नवरात्रि के दौरान इस मंदिर में खूब चहल-पहल देखने को मिलती है। आशापुरा देवी मां का उल्लेख पुराणों औऱ रूद्रयमल तंत्र में भी मिलता है। इस मंदिर में पूजा की शुरूआत कब हुई, इसका कोई ठोस प्रमाण तो नहीं मिलता है लेकिन 9वीं शताब्दी ईस्वी में सिंह प्रांत के राजपूत सम्मा वंश के शासनकाल के दौरान आशापुरा देवी की पूजा होती थी। इसके बाद कई और समुदायों ने भी आशापुरा देवी की पूजा करना शुरू कर दी।

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