श्री सिद्ध बाबा सोढल मेला, सोढल मंदिर, जालंधर

बाबा सोढल मेला, सोढल मंदिर, जालंधर, पंजाब: Baba Sodal Mandir

श्री सिद्ध बाबा सोढल मेला: पंजाब को गुरुओं, पीरों की धरती व मेलों का प्रदेश कहा जाता है जिनमें जालंधर में लगने वाला श्री सिद्ध बाबा सोढल मेला अपना विशेष स्थान रखता है। भादों मास की अनंत चौदस को हर साल इस मेले का आयोजन सोढल मंदिर के आसपास होता है। मेला तीन-चार दिन पहले ही शुरू हो जाता है और दो-तीन बाद भी जारी रहता है।

उत्तर भारत के विभिन्न हिस्सों से लाखों की संख्या में भक्तजन मेले के दौरान बाबा सोढल के दर पर माथा टेकते हैं और मन्नतें मांगते हैं। जिन भक्तजनों की मुराद पूरी हो जाती है वे बाजों के साथ सोढल बाबा के दर पर माथा टेकने परिवार सहित नाच-गाकर जाते हैं। यह मंदिर सिद्ध स्थान के रूप में काफी प्रसिद्ध है और इसका इतिहास करीब 200 साल पुराना है। चड्ढा बिरादरी के लोग इसे अपने जठेरों का स्थान मानते हैं।

Name: बाबा सोढल मंदिर (Baba Sodal Mandir)
Location: Shiv Nagar, Industrial Area, Jalandhar, Punjab 144004 India
Devoted To: Baba Sodal – Chandha Clan of the Khatri Caste
Also Known for: श्री सिद्ध बाबा सोढल मेला (Baba Sodal Mela) – In month of September
Facebook: facebook[dot]com/p/BABA-SODAL-MELA-100064629191962/
Phone: 079731 58847

बाबा सोढल का इतिहास:

माना जाता है कि आज जिस स्थान पर बाबा सोढल का मंदिर और सरोवर बना हुआ है पहले यहां एक तालाब और संत की कुटिया ही होती थी। संत शिव जी के अनन्य भक्त थे और लोग उनके पास अपनी समस्याएं लेकर आया करते थे। चड्ढा परिवार की एक बहू जो अक्सर बुझी-बुझी सी रहती थी, एक बार संत जी के पास आई। संत ने जब उसकी उदासी का कारण पूछा तो उसने जवाब दिया कि कोई संतान न होने के कारण वह दुखी जीवन व्यतीत कर रही है।

संत जी ने उस समय तो उसे दिलासा दे दिया और बाद में भोले भंडारी से उसे संतान देने हेतु प्रार्थना की। माना जाता है कि भोले भंडारी की कृपा से नाग देवता ने उस महिला की कोख से बच्चे के रूप में जन्म लिया। जब बालक करीब चार साल का था तो उसकी माता उसे साथ लेकर उसी तालाब पर कपड़े धोने आई। बालक शरारती था और भूख का बहाना लगाकर माता को घर लौटने की जिद कर रहा था। मां चूंकि काम छोडऩे को तैयार नहीं थी इसलिए उसने बच्चे को खूब डांट दिया। माता के देखते ही देखते बच्चा तालाब में समा गया और आंखों से ओझल हो गया। एकमात्र पुत्र का हश्र देख माता विलाप करने लगी। जिसके बाद बाबा सोढल नाग रूप में उसी स्थान से तालाब से बाहर आए और कहा कि जो कोई भी सच्चे मन से मनोकामना मांगेगा उसकी इच्छा अवश्य पूर्ण होगी। ऐसा कहकर नाग देवता के रूप में बाबा सोढल पुन: तालाब में समा गए। यह बाबा सोढल के प्रति लोगों की अथाह श्रद्धा व विश्वास ही है कि हर साल बाबा सोढल मेले का स्वरूप बढ़ता ही जा रहा है। मेला क्षेत्र कई किलोमीटर में फैल चुका है और हर साल श्रद्धालुओं की संख्या पहले ही अपेक्षा बढ़ती जा रही है। भक्तजन भेंट के रूप में बाबा सोढल को मट्ठी और रोट का प्रसाद चढ़ाते हैं और सरोवर पर जाकर पवित्र जल का छिड़काव लेते हैं और उसे चरणामृत की तरह पीते हैं।

बाबा सोढल मेला, जानिए परंपरा अनुसार कैसे होता है पूजन
बाबा सोढल मेला, जानिए परंपरा अनुसार कैसे होता है पूजन

परंपरा अनुसार कैसे होता है पूजन:

बाबा सोढल का जन्म जालंधर शहर में चड्ढा परिवार में हुआ था। सोढल बाबा के साथ कई कहानियां जुड़ी हुई हैं। कहते हैं कि जब सोढल बाबा बहुत छोटे थे, वह अपनी माता के साथ एक तालाब पर गए। माता कपड़े धोने में व्यस्त थीं और बाबा जी पास ही में खेल रहे थे। तालाब के नजदीक आने को लेकर माता ने बाबा को कई बार टोका और नाराज भी हुईं। बाबा जी के न मानने पर माता ने गुस्से में उन्हें कोसा और कहा जा गर्क जा। इस गुस्से के पीछे माता का प्यार छिपा था। बाबा सोढल ने माता के कहे अनुसार तालाब में छलांग लगा दी। माता के अपने पुत्र द्वारा तालाब में छलांग लगाने पर विलाप शुरू कर दिया। थोड़ी देर बाद बाबा जी पवित्र नाग देवता के रूप में प्रकट हुए।

उन्होंने चड्ढा और आनंद बिरादरी के परिवारों को उनके पुनर्जन्म को स्वीकार करते हुए मट्ठी जिसे टोपा कहा जाता है चढ़ाने का निर्देश दिया। इस टोपे का सेवन केवल चड्ढा और आनंद परिवार के सदस्य ही कर सकते हैं। इस प्रसाद का सेवन परिवार में जन्मी बेटी तो कर सकती है मगर दामाद व उसके बच्चों के लिए यह वर्जित है।

सोढल मेले वाले दिन श्रद्धालु पवित्र तालाब से अपने प्रत्येक पुत्र के नाम की मिट्टी 14 बार निकालते हैं। श्रद्धालु अपने-अपने घरों में पवित्र खेत्री बीजते हैं, जो हर परिवार की खुशहाली और समृद्धि का प्रतीक मानी जाती है। मेले वाले दिन इसे बाबा जी के श्रीचरणों में अर्पित करके माथा टेकते हैं।

Check Also

चेन्नाकेशव मंदिर, बेलूर, हासन जिला, कर्नाटक

चेन्नाकेशव मंदिर, बेलूर, हासन जिला, कर्नाटक: 103 साल में हुआ था तैयार

चेन्नाकेशव मंदिर Chennakeshava Temple, also referred to as Keshava, Kesava or Vijayanarayana Temple of Belur, …