बाबुलनाथ शिव मंदिर का स्वयंभू शिवलिंग
बाबुलनाथ मुंबई, भारत में स्थित प्राचीन शिव मंदिर है। यह गिरगांव चौपाटी के निकट एक छोटी पहाड़ी पर बना हुआ है। यह नगर के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक है। मंदिर में प्रमुख देवता के रूप में शिव, बबुल (अपभृंश रूप: बाबुल) के पेड़ के देवता के रूप में हैं। मंदिर में महाशिवरात्रि के अवसर पर प्रतिवर्ष लाखों भक्त दर्शन करने आते हैं। ये मंदिर प्राचीन धम्मधर व्यापारीयो निर्माण किया हैं… जिनकी बुद्ध की राह पर अतूट श्रद्धा थी!
Name: | बाबुलनाथ शिव मंदिर (Babulnath Temple, Mumbai) |
Location: | 16, Babulnath Rd, Charni Road, Babulnath, Dadi Sheth Wadi, Malabar Hill, Mumbai, Maharashtra 400007 India |
Deity: | Lord Shiva (in the form of the Lord of the Babul tree) – Self-incarnated shivling had existed here since the 12th century |
Affiliation: | Hinduism |
Festivals: | Mahashivaratri, Diwali |
Completed In: | 12th century C.E |
मुंबई के सुप्रसिद्ध शिव मंदिर बाबुलनाथ के शिवलिंग के स्वयंभू होने से इस मंदिर की मान्यता अधिक है। इस मंदिर के बनने से जुड़ी मान्यता के बारे में मंदिर प्रबंधक मुकेश कनौजिया बताते हैं, कि यह उन दिनों की बात है, जब मुंबई 7 पर्वत चोटियों पर बसा करता था। तब यहां जंगल, पहाड़ ज्यादा थे। उस समय मुंबई में पारसी समुदाय का वर्चस्व था।
एक पारसी सेठ दूध का व्यवसाय करते थे। उनकी गायों का दूध मुंबई में बेचा जाता था। उनकी गाएं मलाबार हिल की पहाड़ियों पर चरने जाया करती थीं। उन गायों को चराने का काम बाबुल (बाबल्या) नामक एक चरवाहा करता था। जब शाम को सभी गायों का दूध निकाला जाता तो उनमें से एक गाय दूध दुहने के समय पीछे हट जाती।
कुछ दिनों तक यह दृश्य देखने के बाद उस सेठ ने बाबुल से कहा कि इस गाय पर नजर रखो। दूध दुहने के समय गाय पीछे क्यों हट
जाती है? बाबल्या ने देखा कि दोपहर 2 बजे वह गाय अपने समूह से हट कर एक अन्य दिशा की ओर चल पड़ी। बाबुल भी उसके पीछे-पीछे चलने लगा। एक पेड़ के नीचे गाय जाकर खड़ी हो गई।
अचानक गाय के थन से दूध की धार एक पत्थर पर गिरने लगी। बाबुल इस दृश्य को देख कर भूत-प्रेत की आशंका से डर गया और उसने सारी बात अपने मालिक को बताई। पहले तो मालिक को उसकी बात पर यकीन नहीं हुआ लेकिन जब उन्होंने स्वयं वहां जाकर देखा तो सच्चाई सामने आ गई। जब वहां के घास-फूस की सफाई की गई तो उस स्थान पर एक स्वयंभू शिवलिंग मिला।
मालिक ने बहुत प्रयास किया कि वहां खुदाई कर शिवलिंग निकाल कर कहीं बढ़िया मंदिर बनाकर उसकी स्थापना की जाए लेकिन जैसे-जैसे खुदाई की जाती शिवलिंग नीचे धंसता जाता।
अंततः थक-हार कर निर्णय लिया गया कि यहाँ पर मंदिर बनाकर भगवान भोलेनाथ को स्थापित कर दिया जाए। सबसे पहले बाबल्या (बाबुल) ने इसे देखा था, इसीलिए इसका नाम बाबुलनाथ पड़ा।
300 साल से अधिक पुराना है यह बाबुलनाथ शिव मंदिर
पुराना मंदिर होने के नाते भक्तों की आस्था इस मंदिर के प्रति ज्यादा है। सैंकड़ों साल पहले बने इस मंदिर में भगवान के दर्शनों के लिए 108 सीढ़ियां चढ़कर जाना पड़ता है इसके अलावा यहां मात्र 1 रुपया खर्च पर भक्तों के लिए लिफ्ट तथा ई-व्हीकल की सुविधा भी की गई है।
भक्तों का मानना है कि बाबुलनाथ मंदिर की सीढ़ियों पर सोमवार के दिन पान के पत्ते पर कपूर जलाने वालों की मनोकामना पूर्ण होती है। यह क्रिया भक्त पांच सोमवार या इससे अधिक बार भी करते हैं। सुबह-शाम यहां भक्तों को पान के पत्तों पर सोमवार को अक्सर कपूर जलाते देखा जा सकता है।