बुद्ध पूर्णिमा पर करें इस स्थान के दर्शन, यहीं हुई थी महात्मा बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति
बोधगया भारत के प्रमुख धार्मिक स्थलों में एक है। दुनिया के कोने-कोने से लोग महाबोधि मंदिर के दर्शन करने आते हैं। इसी स्थान पर महात्मा बुद्ध को पीपल के वृक्ष के नीचे तपस्या करते हुए ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। श्रद्धालु इस पवित्र पेड़ के दर्शन करके शांति का अनुभव करते हैं। इस स्थान को बौद्ध धर्म का तीर्थ स्थान कहा जाता है। यूनेस्कों द्वारा इस शहर को विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया है। माना जाता है कि राजा सिद्धार्थ गौतम ने देखैा कि इस संसार में बहुत पाप बढ़ गया है, लोग दुखों से ग्रसित हैं अौर वे उसे समाप्त करना चाहते थे। वे फाल्गु नदी के किनारे पहुंचे जो बिहार के गया शहर से होकर बहती है। वहीं उन्होंने पीपल के वृक्ष के नीचे बैठकर तपस्या कर ज्ञान की प्राप्ति की। इसी पीपल के वृक्ष को बोध वृक्ष का नाम दिया गया।
बौद्ध ग्रंथों के अनुसार सम्राट अशोक ने भगवान बुद्ध की याद में उक्त स्थल पर ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में छोटे से बौद्ध स्तूप का निर्माण करवाया था। मंदिर परिसर में आज भी अशोक कालीन अशोका रेलिंग हैं। मुस्लिम शासक बख्तियार खिलजी ने नालंदा व विक्रमशिला विश्वविद्यालयों के साथ-साथ और महाबोधि मंदिर को भी क्षति पहुंचाई थी। इसके बाद मंदिर मिट्टी की टीले में दब कर रह गया था। बर्मा (वर्तमान म्यांमार) के राजा मिंडुमिन ने 1874 में महाबोधि मंदिर का पहली बार जीर्णोद्धार करवाया था। उसके बाद सन 1880 में बंगाल के गवर्नर एंशले इडेन के आदेश पर कनिघंम और बेगलर ने काम को आगे बढ़ाया।
बोधगया में भगवान बुद्ध की 80 फुट ऊंची प्रतिमा है। इसका अनावरण एवं लोकार्पण 18 नवंबर 1989 को 14वें पवित्र दलाई लामा की उपस्थति में किया गया था। यह महान बुद्ध की पहली प्रतिमा थी जिसे आधुनिक भारत के इतिहास में बनाया गया था| यहां सुबह 7 बजे से 12 बजे तक तथा दोपहर 2 बजे से शाम 6 बजे तक दर्शन किया जा सकता है। बोधगया के आसपास कई और बौद्ध व सनातन स्थल हैं। निरंजना नदी के पूर्वी तट पर जहां सुजाता स्तूप व सुजाता मंदिर स्थित हैं, वहीं महाबोधि मंदिर से सटे आदि शंकराचार्य मठ और जगन्नाथ मंदिर, मुहाने नदी के तट पर ढुंगेश्वरी पहाड़ी श्रृंखला में प्रागबोधि गुफा दर्शनीय स्थल हैं।