श्री चामुंडा नंदीकेश्वर मंदिर हिमाचल प्रदेश में स्थित लगभग 2000 मंदिरों में से एक धर्मस्थल तथा शक्ति धाम होने के साथ ही ऐसी नैसर्गिक प्राकृतिक सुंदरता से ओत-प्रोत मंदिर है जिसके आसपास के कुदरती नजारों को शब्दों में बयां करना कठिन है। धौलाधार पर्वतमाला की गोद में कांगड़ा घाटी की पहाड़़ी ढलानों पर झर-झर बहते अनेकों प्राकृतिक चश्मों में घिरी पवित्र बाण गंगा के किनारे यह धाम स्थित है।
शिव तथा शक्ति के प्रभावशाली तेज से स्थापित यह मंदिर मूल रूप से जालंधर शक्तिपीठ के रूप में भी माना जाता है। मान्यतानुसार यहां स्थापित आदिशक्ति मां की चामुंडा स्वरूपी मूर्त अति प्रभावशाली है। यह जमीन से प्रकट हुई थी तथा यह पिंडी के ऊपर विराजमान है। श्री मार्कंडेय पुराण में वर्णित है कि देवासुर संग्राम में महाकाली के रुद्र स्वरूपी देवी कौशिकी ने सर्वकल्याणकारी मां जगदम्बा के आदेश पर महाबली असुर सम्राट शुंभ तथा निशुंभ के अति बलशाली सेनापतियों चंड तथा मुंड का वध किया तथा देवी महाकाली के उस रूप को चामुंडा का नाम दिया।
वर्तमान मंदिर के ऊपर स्थित बर्फ की चादर से ढकी पर्वतमाला पर मां चामुंडा का (प्राचीन) आदि निवास स्थान है। यहां आज भी श्री ‘चामुंडा हिमानी’ का अति पूजनीय प्राचीन मंदिर विद्यमान है। इस मंदिर को श्री माता वैष्णो देवी जी के कटड़ा धाम की तर्ज पर धार्मिक पर्यटन हेतु विकसित करने के प्रयास किए जा रहे हैं। ऐतिहासिक कथानुसार मुगल काल में कांगड़ा के अजेय समझे जाने वाले नगरकोट दुर्ग को मुगलों द्वारा सन् 1620 ई. में हस्तगत कर लिया गया।
कांगड़ा नरेश को विशाल मुगल सेना से मुकाबले के बाद चाहे हार को मजबूर होना पड़ा परंतु उसने युद्ध हार कर भी मन नहीं हारा और महाराणा प्रताप की भांति मुगल सेना के विरुद्ध छापामार युद्ध जारी रखा। उन दिनों दुर्गम पहाड़ों पर 9400 फुट की ऊंचाई पर स्थापित दुर्ग, जिसे किला चंद्रभान के नाम से जाना जाता है, के अवशेष आज भी हैं। विदित हो कि राजा द्वारा स्थापित उस दुर्ग में लगातार देवी चामुंडा की पूजा, अर्चना होती तथा भेंटें गाई जातीं जोकि उनके साहस का मूल आधार थीं। अत: मुगल सम्राट जहांगीर ने उनसे समझौते के तहत उन्हें कांगड़ा का बड़ा भाग वापस दे दिया।
एक अन्य किंवदन्ती है कि प्राचीन काल में श्रच्चिका नाम की एक ब्राह्मण पुत्री थी जो बाल विधवा होने का सामाजिक अभिशाप झेल रही थी। उसका अधिकतर समय वर्तमान श्री माता चामुंडा मंदिर के साथ बहती बाण गंगा के किनारे स्थापित किए गए शिवलिंग की भक्ति-ध्यान पूजा तथा व्रत आदि में ही गुजरता था।
वह एक अति सुंदर रूप वाली आकर्षक कन्या थी जिसके सौंदर्य पर एक असुर आसक्त था और उसे अपने वश में करने का प्रयास करता रहता परन्तु उस बाल विधवा का ध्यान तो मात्र भगवान् शिव चरणों पर ही केन्द्रित था। एक बार उस दैत्य ने जब उसे जबरन पकडऩा चाहा तो उसने प्रतिरोध कर शिवलिंग के पास पड़े त्रिशूल से उसका सिर काट डाला। उस कन्या की भक्ति तथा कर्मठता से प्रसन्न हो भगवान् शिव ने उसे अपने दर्शन दिए तथा वर मांगने को कहा तो उसने शिव से मात्र यही आग्रह किया कि वह यहीं स्थिर हो जाएं।
यह ब्रह्महत्या विमोचक तथा पाप मुक्ति दाता तीर्थ है जिसके पूजन से इस लोक में कल्याण तथा परलोक में मुक्ति प्राप्त होती है। श्री चामुंडा तीर्थ शिव तथा शक्ति की एकरूपता का प्रतीक है। इनकी भक्ति व्यक्ति को मोक्ष की ओर ले जाती है। हिमाचल सरकार द्वारा अधिगृहित इस मंदिर में न्यास द्वारा श्रद्धालुओं को नि:शुल्क आवासीय तथा भोजन की सुविधाएं प्रदान की जाती हैं।