सच्चे और ईमानदार लोग भगवान को बहुत प्रिय होते हैं। उनके साथ वो कभी कुछ बुरा नहीं होने देते सदा उनके अंग-संग रहते हैं लेकिन क्या आप जानते हैं पाप करने पर भी पुण्य प्राप्त किया जा सकता है। आज हम आपको यात्रा करा रहे हैं एक ऐसे मंदिर की जहां पाप करने के उपरांत ही मिलती हैं मनचाही मुरादें।
माता सती और भगवान शंकर के विवाह उपरांत राजा दक्ष ने एक विराट यज्ञ का आयोजन किया लेकिन उन्होंने अपने दामाद और पुत्री को यज्ञ में निमंत्रण नहीं भेजा।
फिर भी सती अपने पिता के यज्ञ में पहुंच गई। लेकिन दक्ष ने पुत्री के आने पर उपेक्षा का भाव प्रकट किया और शिव के विषय में सती के सामने ही अपमानजनक बातें कही। सती के लिए अपने पति के विषय में अपमानजनक बातें सुनना हृदय विदारक और घोर अपमानजनक था। यह सब वह बर्दाश्त नहीं कर पाई और इस अपमान की कुंठावश उन्होंने वहीं यज्ञ कुंड में कूद कर अपने प्राण त्याग दिए।
जब भगवान शिव को माता सती के प्राण त्यागने का ज्ञात हुआ तो उन्होंने क्रोध में आकर वीरभद्र को दक्ष का यज्ञ ध्वंस करने को भेजा। उसने दक्ष का सिर काट दिया। इसके बाद दुखी होकर सती के शरीर को अपने सिर पर धारण कर तांडव नृत्य करने लगे। पृथ्वी समेत तीनों लोकों को व्याकुल देख कर भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र द्वारा माता सती के शरीर के टुकड़े टुकड़े करने शुरू कर दिए।
इस प्रकार सती के शरीर का जो हिस्सा और धारण किए आभूषण जहां-जहां गिरे वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आ गए। उत्तराखंड के रूड़की में स्थित चूड़ामणि शक्तिपीठ वह स्थान है जहां देवी सती का चूड़ा गिरा था।
इस मंदिर में अद्भूत मान्यता है की मां को लकड़ी का गुड्डा जिसे लोकड़ा कहा जाता है वह उपहार स्वरूप अर्पित किया जाता है। संतानहीन दंपत्ति मां के चरणों से इस गुड्डे को चुरा लेते हैं और अपने घर ले जाते हैं। जब उनकी गोद भर जाती है तो वह मां के मंदिर में चोरी किए हुए गुड्डे के साथ एक और गुड्डा बनाकर मां को उपहार स्वरूप देते हैं। इसके अतिरिक्त वह अपनी क्षमता के अनुसार मंदिर में भंडारा भी करवाते हैं।
एक अन्य लोक मान्यता के अनुसार जब इस स्थान पर जंगल होता था तो उस समय जंगल का राजा शेर प्रतिदिन मां के दर्शनों के लिए आता था।