देव सूर्य मंदिर, औरंगाबाद जिले, बिहार राज्य: देवार्क सूर्य मंदिर (देवार्क)

देव सूर्य मंदिर, औरंगाबाद ज़िला, बिहार राज्य: देवार्क सूर्य मंदिर (देवार्क)

देव सूर्य मंदिरदेवार्क सूर्य मंदिर या केवल देवार्क के नाम से प्रसिद्ध, यह भारतीय राज्य बिहार के औरंगाबाद जिले में देव नामक स्थान पर स्थित एक हिंदू मंदिर है जो देवता सूर्य को समर्पित है। यह सूर्य मंदिर अन्य सूर्य मंदिरों की तरह पूर्वाभिमुख न होकर पश्चिमाभिमुख है।

अनूठा है औरंगाबाद का प्राचीन देव सूर्य मंदिर, पूर्व से नहीं बल्कि पश्चिम से खुलता है इसका मुख्य द्वार

Name: देव सूर्य मंदिर (Deo Surya Mandir)
Location: Deo Town, Aurangabad District, Bihar, India
Festivals: Chhath
Affiliation: Hinduism
Type: Mix of Nagara architecture, Dravidian architecture & Vesara architecture
Architect(s): According to ASI, built in 8th century
Date established: 7th or 8th century AD

बिहार के औरंगाबाद को सूर्य नगरी के नाम से भी जाना जाता है जिसकी वजह  है अनूठा देव सूर्य मंदिर। भारत में हिंदुओं का यह पहला मंदिर है, जिसका मुख्य द्वार पश्चिम दिशा में है। पश्चिमाभिमुख देव सूर्य मंदिर को ‘दवार्क‘ माना जाता है।

मंदिर को पौराणिकता, शिल्पकला और महत्ता विरासत में मिली है जो अपनी भव्यता के लिए जहां प्रसिद्ध है, वहीं आस्था का बहुत बड़ा केंद्र भी है। इसी कारण प्रतिवर्ष यहां कार्तिक और चैत्र मास में होने वाले छठ में बहुत बड़ा मेला लगता है। मान्यताओं के अनुसार, इस सूर्य मंदिर का निर्माण स्वयं विश्वकर्मा ने किया है।

मंदिर के बाहर संस्कृत में लिखे श्लोक के अनुसार राजा इला के पुत्र पुरुरवा ऐल ने 12 लाख 16 हजार वर्ष त्रेता युग के गुजर जाने के बाद इस मंदिर का निर्माण प्रारंभ करवाया था। इस शिलालेख को मानें तो इस पौराणिक महत्ता वाले मंदिर का निर्माण काल 1 लाख 50 हजार 22 वर्ष पुराना है। वहीं भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ए.एस.आई.) ने पांचवीं से छठी सदी गुप्त काल को इसका निर्माण काल बताया है।

देव सूर्य मंदिर: अनूठी शिल्पकला

यह मंदिर अपनी अनूठी शिल्पकला के लिए विख्यात है। पत्थरों को तराश कर उत्कृष्ट नक्काशी द्वारा मंदिर का निर्माण किया गया है जो शिल्पकला की अनूठी मिसाल है। मंदिर का शिल्प उड़ीसा के विश्वप्रसिद्ध कोणार्क स्थित सूर्य मंदिर से मिलता है। यह मंदिर दो भागों में बना हुआ है। पहला गर्भ गृह, जिसके ऊपर कमल के आकार का शिखर है और इसके ऊपर सोने का कलश है। दूसरा भाग मुख मंडप है, जिसके ऊपर एक पिरामिडनुमा छत और छत को सहारा देने के लिए नक्काशीदार पत्थरों का स्तम्भ बना है। मंदिर के प्रांगण में सात रथों से सूर्य की उत्कीर्ण प्रस्तर मूर्तियां अपने तीनों स्वरूप उदयांचल, मध्यांचल और अस्तांचल के रूप में विद्यमान हैं। इन्हें कुछ लोग सृष्टि के तीनों रचनाकार ब्रह्मा, विष्णु और महेश भी कहते हैं।

औरंगजेब से जुड़ी किंवदंतियां

किंवदंतियों के अनुसार मूही अल-दीन मोहम्मद जिसे आलमगीर या औरंगजेब के नाम से जाना जाता था, के द्वारा पूरे भारत में मंदिर तोड़ते हुए औरंगाबाद के देव पहुंचने पर यहां के पुजारियों ने इस मंदिर को न तोड़ने की आरजू-विनती की लेकिन औरंगजेब यह कहते हुए वहां से चला गया कि अगर तुम्हारे भगवान में शक्ति है तो इसका दरवाजा पश्चिम को हो जाए। पुजारी रात्रि भर सूर्य भगवान से प्रार्थना करते रहे कि हे भगवान औरंगजेब की बात सही साबित हो जाए। कहा जाता है कि अहले सुबह जब पुजारी मंदिर पहुंचे तो मुख्य द्वार पूर्व न होकर पश्चिमाभिमुख हो चुका था, तब से देव सूर्य मंदिर का मुख्य द्वार पश्चिम की तरफ में ही है।

खारा है तालाब का पानी

यहां पर तालाब भी हैं। एक तालाब को लोग सूर्यकुंड कहते हैं। इस तालाब का संबंध समुद्र से बताया गया है। शायद इसीलिए इस देव नगरी के करीब तीन किलोमीटर की दूरी तक कुएं और तालाब का पानी खारा है। मंदिर के साथ लगते तालाब के बारे में बताया जाता है कि उत्तर प्रदेश के प्रयागराज के निर्वासित राजा ऐल को यहां स्नान करने से कुष्ठ जैसे असाध्य रोग से मक्ति मिली थी। तालाब में ही तीन मूर्तियां मिलीं, जिन्हें राजा ने मंदिर बनवा कर उसमें त्रिदेव स्वरूप आदित्य भगवान को स्थापित कर दिया। प्राचीन काल से इस मंदिर की परम्परा के अनुसार, प्रतिदिन सुबह चार बजे भगवान को जगा कर स्नान के उपरांत वस्त्र पहनाकर फूल-माला चढ़ाकर प्रसाद के भोग लगाए जाते हैं। उसके बाद ‘आदित्य हृदय स्तोत्र‘ का पाठ भगवान को सुनाने की प्रथा आदिकाल से चली आ रही है।

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