धर्मराजेश्वर मंदिर, मंदसौर जिला, मध्य प्रदेश: Dharmrajeshwara Temple

धर्मराजेश्वर मंदिर, मंदसौर जिला, मध्य प्रदेश: Dharmrajeshwara Temple

चट्टान काटकर बना धर्मराजेश्वर मंदिर, सूर्य की किरण करती हैं विष्णु-शिव का अभिषेक: महाशिवरात्रि की रात ठहरने से मिलती है मोक्ष, अज्ञातवास में पांडवों ने कराया था निर्माण

धर्मराजेश्वर मंदिर को लेकर कह जाता है कि महाभारत काल में पांडवों ने अपना अज्ञातवास का कुछ समय यहाँ बिताया था। उसी दौरान भीम ने इस मंदिर का निर्माण किया था। चूँकि, भीम के सबसे बड़े भाई युधिष्ठिर को धर्मराज भी कहा जाता था, इसलिए इस मंदिर को धर्मराजेश्वर मंदिर कहा जाने लगा। बताया जाता है कि यहाँ पर एक विशाल गुफा भी है, जो इस मंदिर से उज्जैन निकलती है। पुरातत्व विभाग ने उसे बंद कर दिया है।

श्री धर्मराजेश्वरा मंदिर:

Name: श्री धर्मराजेश्वरा मंदिर (Shree Dharmrajeshwara Temple)
Location: Chandwasa, Shamgarh tehsil, Mandsaur District, Madhya Pradesh 458883 India
Dedicated to: Lord Shiva, Lord Vishnu
Affiliation: Hinduism
Architecture: Indian rock-cut architecture
Date Established: 8th century

भारत सभ्यतागत विकास की पवित्र भूमि है। यहाँ एक से बढ़कर एक सभ्यता एवं संस्कृति पनपीं और विकसित हुईं। इसके साथ ही विकसित हुईं यहाँ शिल्प एवं कला। यहाँ के कुशल शिल्पकारों ने एक बढ़कर एक आश्चर्यचकित करने वाली संरचनाएँ बनाई हैं, जिनमें मंदिर, भवन और मठ आदि भी शामिल हैं। इन्हीं में से एक एलोरा का कैलाश मंदिर है, जिसे चट्टान को काटकर बनाया गया है। कैलाश मंदिर की तरह ही मध्य प्रदेश के मंदसौर में भी चट्टान काटकर एक मंदिर बनाई गई है। इसे धर्मराजेश्वर मंदिर कहा जाता है।

एलोरा के मंदिरों एवं गुफाओं को सोलंकी क्षत्रिय से संबंधित चालुक्यों ने बनवाया था। वहीं, धर्मराजेश्वर मंदिर और धमनार के आसपास के गुफाओं को प्रतिहार क्षत्रियों वंश के राजाओं ने बनवाया है। इतिहासकारों का मानना है कि इस मंदिर का निर्माण 8वीं शताब्दी ईस्वी में हुई है। मंदिर के प्रवेश द्वार पर रखी एक आदमकद प्रतिमा पर 8-9वीं शताब्दी की ब्राह्मी लिपि में एक अभिलेख उत्कीर्ण है।

धर्मराजेश्वर मंदिर को एक पहाड़ी को काटकर विशाल मंदिर एवं उसका परिसर के रूप में बनाया गया है, जो देखने में अजूबा लगता है। यह इंजीनियरिंग का उत्कृष्ट नमूना भी है। इसे मध्य प्रदेश का अजंता-एलोरा कहा जाता है। धर्मराजेश्वर को ही नहीं, बल्कि धमनार सहित आसपास की 200 गुफाओं को भी अजंता की बौद्ध एवं जैन गुफाओं की शैली में पहाड़ों को काट कर बनाया गया है।

Dharmrajeshwara Temple
Dharmrajeshwara Temple: Nestled in the heart of Madhya Pradesh, the Dharmarajeshwar cave temple is a hidden gem that radiates an ancient charm and spiritual aura. Located in the Garoth tehsil of Mandsaur district, this site offers a journey steeped in history and mythology.

मंदसौर जिला मुख्यालय से लगभग 78 किलोमीटर और शामगढ़ तहसील से 22 किलोमीटर दूर चंदवासा गाँव में यह मंदिर स्थिति है। इसके आसपास लगभग 3 किलोमीटर तक जंगल है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के अनुसार, धर्मराजेश्वर मंदिर को एलोरा के कैलाशनाथ मंदिर की तरह ही पत्थर के पहाड़ को ऊपर से नीचे की ओर खोदकर बनाया गया है। यह जमीन से 9 मीटर नीचे है।

विष्णु एवं शिव मंदिर: धर्मराजेश्वर मंदिर

धर्मराजेश्वर नाम के मुख्य मंदिर के चारों तरफ सात लघु मंदिर हैं। मंदिर में पहुँचने के लिए 250 फीट लम्बा रास्ता बनाया गया है। यह रास्ता भी पहाड़ी को काटकर बनाया गया है। मुख्य मंदिर में गर्भगृह में भगवान विष्णु की चार भुजाओं वाली मूर्ति और एक शिवलिंग है। इसमें नक्काशी वाले स्तंभों पर स्थित मंडप है। वहीं, दूसरे लघु मंदिरों में वराह, दशावतार, शेषशायी विष्णु तथा पंचमहादेवी की मूर्तियाँ हैं।

इसके अलावा, मंदिर प्रांगण पानी के लिए एक छोटा कुआँ भी खोदा हुआ है। इस कुएँ का पानी शीतल और मीठा है। मंदिर की ओर से पहली मंजिल पर जाने के लिए दायीं और बायीं ओर सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। पहली मंजिल पर पत्थरों को काटकर भिक्षुओं के ध्यान के लिए गुफाएँ बनाई गई हैं। इतिहासकारों का मानना है कि धमनार की गुफाएँ बौद्ध दर्शन पर है और उनका इस मंदिर से गहरा संबंध है।

Shivalinga in Dharmrajeshwar temple at Chandwasa in Mandsaur district in Madhya Pradesh
It is believed that the first rays of the sun reach the garbhagriha, illuminating the shivalinga, a phenomenon that has been occurring for centuries. This natural alignment is not just an architectural wonder but also a spiritual experience, as the light seems to symbolise divine blessings showered upon the temple.

कहा जाता है कि बौद्ध मठ को बाद में विष्णु मंदिर और फिर शिव मंदिर में बदल दिया गया। गर्भगृह में एक शिवलिंग भी स्थापित कर दिया गया। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि यह मंदिर मूलत: बौद्ध मंदिर या जैन मंदिर हो सकता है। अधिकतर इतिहासकार इसे बौद्ध मठ का प्रचार स्थल बताते हैं। इसमें मौजूद प्रतिमाएँ इसकी ओर इशारा करती हैं। बाद में इसे हिंदू मंदिर में बदल दिया गया।

लगभग 1415 मीटर में फैले इस मंदिर के बाई ओर ढेरों गुफाएँ हैं, जिनमें भगवान बुद्ध की विभिन्न मुद्राओं में प्रतिमाएँ आज भी मौजूद हैं। जगह-जगह दीवारों पर उनके चित्र उकेरे हुए हैं। वहीं, इन गुफाओं में भगवान बुद्ध के अलावा जैन धर्म के तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव, भगवान नेमिनाथ, भगवान पार्श्वनाथ, भगवान शांतिनाथ और भगवान महावीर की पाँच मूर्तियाँ भी पाई गई हैं।

बौद्धकाल के दौरान चंदवासा गाँव का नाम चंदन गिरि था। इसके साथ ही इस मंदिर एवं गुफा को चंदन गिरि महाविहार था। दरअसल, सन 1962 में डॉक्टर वाकणकर को यहाँ एक मिट्टी की सील मिली थी। उसका नाम चंदन गिरी महाविहार मिलता है। इसी आधार पर इतिहासकार चंदवासा का प्राचीन नाम चंदिन गिरि बताते हैं।

धार्मिक मान्यता:

कहा जाता है कि महाशिवरात्रि के अवसर पर यहाँ रात में रुकने से मोक्ष मिलता है। सूर्य के उदय के साथ ही उसकी किरण गर्भगृह में शिवलिंग पर पड़ती है। स्थानीय लोग मंदिर को पांडवों द्वारा निर्मित मानते हैं। वहीं, कई इतिहासकार इसे जैन और बौद्ध धर्मस्थल कहते हैं। राजेश्वर मंदिर के ठीक नीचे पहाड़ी के निचले छोर पर करीब 200 छोटी-बड़ी गुफाएँ हैं। इन्हें अंग्रेज लेखक कर्नल टॉड ने सबसे पहले खोजा था।

लोगों में मान्यता है कि महाभारत काल में पांडवों ने अपना अज्ञातवास का कुछ समय यहाँ बिताया था। उसी दौरान भीम ने इस मंदिर का निर्माण किया था। चूँकि, भीम के सबसे बड़े भाई युधिष्ठिर को धर्मराज भी कहा जाता था, इसलिए इस मंदिर को धर्मराजेश्वर मंदिर कहा जाने लगा। बताया जाता है कि यहाँ पर एक विशाल गुफा भी है, जो इस मंदिर से उज्जैन निकलती है। पुरातत्व विभाग ने उसे बंद कर दिया है।

मंदिर में बने छोटे से कुएँ को लेकर भी एक मान्यता है। स्थानीय लोगों में मान्यता है कि इस कुएँ का पानी पिलाने से साँप आदि जैसे जहरीले जीवों का जहर उतर जाता है। इतना ही नहीं, पागल कुत्ते को काटने पर यहाँ का पानी पिलाया जाता है। लोगों का कहना है कि इससे रेबीज की बीमारी नहीं होती है। जिन्हें रेबीज हो गया है, उन्हें भी इस कुएँ का पानी पिलाया जाता है।

Check Also

साप्ताहिक लव राशिफल

साप्ताहिक लव राशिफल मार्च 2025: ऐस्ट्रॉलजर नंदिता पांडेय

साप्ताहिक लव राशिफल 17 – 23 मार्च, 2025: आइए जानते हैं ऐस्‍ट्रॉलजर नंदिता पांडे से …