दुग्धेश्वर नाथ मंदिर, रुद्रपुर, देवरिया जिला, उत्तर प्रदेश

दुग्धेश्वर नाथ मंदिर, रुद्रपुर, देवरिया जिला, उत्तर प्रदेश

आज तक आपने बहुत से शिवलिंग देखे होंगे जिनका आकारा अलग-अलग प्रकार का होता है। कहते हैं हर शिवलिंग का अपना एक विभिन्न महत्व होता है। लेकिन आज हम आपको एक ऐसे शिवलिंग के बारे में बताने जा रहे हैं जिसके बारे में सुनकर आप शायद हैरान हो जाएंगे। तो आइए देर न करते हुए आपको बताएं इस अनोखे शिवलिंग के बारे में, जो अपने आप में ही बहुत विशेष है।


मैं बात कर रहे हैं कि उत्तर प्रदेश के अद्भुत शिवधाम की जो देवरिया जिले के रुद्रपुर में स्थित है। कहा जाता है कि 11वीं सदी के अष्टकोण में बना प्रसिद्ध दुग्धेश्वरनाथ मंदिर अपनी अनूठी विशेषता के लिए विश्व भर में काफी प्रसिद्ध है। मान्यता है कि इस शिवधाम में स्थित शिवलिंग की लंबाई पाताल लोक तक जाती है। इसका निर्माण किसी मनुष्य द्वारा नहीं बल्कि ये शिवलिंग धरती से प्रकट हुआ था। यही कारण है की दुग्धेश्वर नाथ महादेव मंदिर में आने वाले हर व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। बता दें कि भारत का यह अद्भुत मंदिर उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले में रुद्रपुर के पास स्थित है।

कहा जाता है कि मंदिर में भक्तों को शिवलिंग को स्पर्श करने के लिए 14 सीढ़ियां नीचे उतरना पड़ता है। यहां शिवलिंग हमेशा भक्तों के दूध और जल के चढ़ावे में डूबा रहता है। कहा जाता है कि दुग्धेश्वर नाथ महादेव मंदिर में प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेन सांग ने भारत दौरे के दौरान दर्शन किए थे। कहा जाता है कि उस समय चीनी यात्री ने दुग्धेश्वर नाथ महादेव मंदिर की विशालता और धार्मिक महत्व को देखते हुए चीनी भाषा में मंदिर परिसर में ही एक स्थान पर दीवार पर कुछ चीनी भाषा में टिप्पणी की थी, जो आज भी मंदिर की दिवार पर स्पष्ट रुप से दिखाई देती है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कई सैकड़ों वर्ष पहले ये स्थान घने जंगलों से घिरा था, जहां कुछ चरवाहे अपनी गायों को चराने के लिए आते थे। जिनमें से एक गाय एक टीले के पास खड़ी हो जाती थी। उसके स्तनों से स्वत:दूध की धारा बहने लगती थी। धीरे-धीरे यह बात आग की तरह हर जगह फैल गई।

जब इसके बारे में राजा हरी सिंह को पता चला तो उन्होंने इस संबंध में काशी के पंडितों से चर्चा की, जिसके बाद उस स्थान की खुदाई करवाई गई। परंतु जब खुदाई के बाद एक शिवलिंग दिखाई पड़ा तो ज्यों ज्यों शिवलिंग को निकालने के लिए खुदाई की गई, वह शिवलिंग और अदंर धंसता चला गया।

इसके बाद ही राजा हरी सिंह ने 11 वीं सदी में काशी के पंडितों को बुलाकर वहां एक मंदिर बनवाया। मंदिर के पुजारियों की मानें तो तो इस प्राचीन मंदिर का वर्णन शिवपुराण में मिलता है। कहा जाता है की दुग्धेश्वरनाथ मंदिर को महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग, उज्जैन की भांति महत्ता प्रदान है।

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