आइए जानते हैं इन मंदिरों के बारे में:
सबसे पहले बात करते हैं नंदगांव के आश्वेश्वर मंदिर की। इसके बारे कहा जाता है है कि जब वसुदेव अपने पुत्र श्रीकृष्ण को नंद के यहां छोड़ गए थे तो भगवान शिव उनके दर्शन करने के लिए यहां पधारे थे। लेकिन योगी के वेश में होने के कारण माता यशोदा भोलेनाथ को पहचान नहीं सकीं थी और उन्होंने उनको कृष्ण के दर्शन कराने से मना कर दिया। मान्यता है कि इसी बात से नाराज़ होकर भगवान शंकर उसी जगह धूनी रमाकर बैठ गए थे और अंतत: यशोदा को अपने लाल को उन्हें दिखाना ही पड़ा था।
रंगेश्वर मंदिर के बारे में कहा जाता है कि कंस का वध करने के बाद श्रीकृष्ण और उनके भाई बलराम में झगड़ा हो गया। पौराणिक कथाओं के अनुसार तब महादेव यहां पाताल से प्रकट हुए और ”रंग है, रंग है, रंग है” कहते हुए फैसला सुनाया कि कि श्रीकृष्ण ने कंस को छल और बलराम ने बल से मारा है। इसके बार में किंवदंती है कि जिस जगह भोलेनाथ प्रकट हुए थे आज के समय में वहीं रंगेश्वर महादेव मंदिर स्थापित है। बता दें कि यहां मुख्य विग्रह धरातल से 8 फुट नीचे है और इसके दर्शन और पूजन से सभी तरह के कष्ट दूर हो जाते हैं। इसके साथ ही रंगेश्वर महादेव मंदिर में खप्पर और जेहर पूजा का विशेष महत्व है। ये पूजा महाशिवरात्रि के बाद आने वाली अमावस्या को की जाती है, जो नवविवाहिता महिलायें पुत्र की प्राप्ति के लिए करती हैं।
अब बात करते हैं वृंदावन के गोपेश्वर मंदिर की जिसके बारे में मान्यता है एक बार यहां राधा और श्रीकृष्ण महारास कर रहे थे। उन्होंने गोपियों को आदेश दे रखा था कि कोई पुरुष यहां नहीं आना चाहिये। परंतु उसी वक्त भगवान शिव उनसे मिलने आ पहुंचे। लेकिन गोपियों ने श्री-कृष्ण-राधा के आदेश का पालन किया और उन्हें बाहर ही रोक और कहा कि आप केवल स्त्री वेश में ही वह अंदर जा सकते हैं। जिसके बाद महादेव ने गोपी का रूप धरकर वहां प्रवेश किया परंतु श्रीकृष्ण उन्हें पहचान गए। कहा जाता है कि इसके बाद ही इस मंदिर का नाम गोपेश्वर महादेव मंदिर है।