घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर, वेरूळ गांव, औरंगाबाद, महाराष्ट्र

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर, वेरूळ गांव, औरंगाबाद जिला, महाराष्ट्र

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में स्थित है। भगवान भोलेनाथ का यह सिद्ध मंदिर शहर से करीब 30 किलोमीटर दूर वेरूळ नामक गांव में है।

इस ज्योतिलिंग को घुष्मेश्वर भी कहा जाता है। शिव महापुराण में भगवान शिव के इस 12वें तथा अंतिम ज्योतिर्लिंग का उल्लेख है।

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर:

Name: Shri Grishneshwar Jyotirlinga Temple / Grushneshwar
Location: Verul village, Sambhajinagar District, Maharashtra 431102 India
Deity: Shri Grishneshwar (Lord Shiva)
Affiliation: Hinduism
Festivals: Mahashivratri
Architecture: Hemadpanthi
Rebuilt By: Ahilyabai Holkar of Indore

घृष्णेश्वर मंदिर 13 – 14वीं शताब्दी में मुगल-मराठा संघर्ष के दौरान कई बार नष्ट हुआ और अनेक बार इसका पुनर्तिमाण किया गया। 16वीं सदी में वेरूल के मालोजी भोसले (शिवाजी महाराज के दादा) ने फिर से मंदिर का निर्माण कराया था। मुगल साम्राज्य के पतन के बाद इंदौर की रानी अहल्याबाई होलकर ने 18वीं शताब्दी में वर्तमान मंदिर का चुनर्तिमांण कवाया।

पौराणिक कथा:

देवगिरि पर्वत के पास सुधर्म ब्राह्मण पत्नी सुदेहा के साथ रहता था। उनकी कोई संतान नहीं थी। सुदेहा ने अपने पति का विवाह छोटी बहन घुष्मा से करवा दिया, जो भगवान शिव की परम भक्त थी। वह रोज 100 पार्थिव शिवलिंग बनाकर पूजा करती और उन्हें तालाब में विसर्जित कर देती।

समय के साथ छोटी बहन की खुशी बड़ी बहन सुदेहा से देखी नहीं गई और एक दिन उसने छोटी बहन के पुत्र की हत्या कर के तालाब में फैंक दिया। पूरा परिवार दुख से घिर गया पर शिव भक्त घुष्मा को अपने आराध्य भोलेनाथ पर पूरा भरोसा था। वह प्रतिदिन पूजा में लीन रही। एक दिन उसे उसी तालाब से अपना पुत्र वापस आता दिखा। अपने म्रत पुत्र को फिर से जीवित देख घुष्मा काफी खुश थी।

कहा जाता है कि उसी समय वहां शिव जी प्रकट हुए और उसकी बहन सुदेहा को दंड देना चाहा लेकिन घुष्मा ने शिव जी से बहन को क्षमा कर देने की विनती की। इसज्योतिलिंग के करीब एक तालाब है, भक्त जिसके दर्शन करते हैं।

सबसे छोटा ज्योतिर्लिंग मंदिर:

घृष्णेश्वर तीर्थ औरंगाबाद जिले में एलागंगा नदी और एलोरा या एल्लोरा गुफाओं के करीब स्थित है। यहां की यात्रा शिवालय तीर्थ, ज्योतिरलिंग और लक्ष्य विनायक गणेश के दर्शन से पूर्ण होती है। ये सभी तीर्थस्थल 500 मीटर के दायरे में हैं।

बाहर से देखने पर घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग सामान्य मंदिरों की भांति दिखाई देता है लेकिन अंदरजाकर देखने से इसकी महत्ता और भव्यता स्पष्ट होती है। शिवालय तीर्थ में ऋषि-मुनि, महर्षि और सभी तीर्थों के अलग-अलग साधना स्थल आज भी मौजूद हैं।

इनकी सजावट देखते ही बनती है। यहां के पत्थरों को बहत ही सुंदर शैली में तराशा गया है। ऊपर से सरोवर को देखने से अलौकिक आनंद की अनुभूति होती है।

घृष्णेश्वर मंदिर दक्षिण भारतीय मंदिरों की वास्तुकल शैली और संरचना का एक उदाहरण है। मंदिर का निर्माण लाल पत्थरों से किया गया है। इसमें तीन द्वार हैं। गर्भगृह के ठीक सामने 24 स्तम्भों से निर्मित विस्तृत सभामंडप है। भक्तगण यहीं से दर्शन लाभ लेते हैं। इसके अंदर जाने के लिए पुरुषों को उघड़े बदन जाना होता है। यह भारत में सबसे छोटा ज्योतिर्लिंग मंदिर है।

यह पूरा क्षेत्र जागृत है, इसीलिए इस क्षेत्र में कई धर्मावलम्बियों के स्थान हैं। बौद्ध भिक्षुओं की एलोरा गुफाएं, जनार्दन महाराज कौ समाधि, कैलाश गुफा, सूर्य कुंड-शिव कुंड नामक दो सरोवर यहाँ स्थित हैं। दौलताबाद का किला पहाड़ी पर है, जिसमें धारेश्वर शिवलिंग है। इसी के पासएकनाथजी के गुरु श्रीजनादन महाराज की समाधि भी है। नाथ पंथ वाले तो कैलास मंदिर को ही घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मानते हैं।

भगवान सूर्य द्वारा पूज्य ज्योतिर्लिंग:

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग पूर्वमुखी है। कहा जाता है कि यह ज्योतिर्लिंग और देवगिरि दुर्ग के बीच एक सहस्रलिंग पातालेश्वर (सूर्येश्वर) महादेव हैं, जिनकी आराधना सूर्य भगवान करते हैं इसीलिए यह ज्योतिलिंग भी पूर्वमुखी है। सभी जगह 108 शिवलिंग का महत्व बताया जाता है, किंतु यहां पर 101 का महत्व है। 101 पार्थिव शिवलिंग बनाए जाते हैं और 101 ही परिक्रमा की जाती हैं।

शिव के 12 ज्योतिर्लिंग:

हिंदू धर्मग्रंथों में शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों का उल्लेख मिलता है। जहां-जहां ये शिव ज्योतिर्लिंग स्थापित हैं, आज वहां भव्य शिव मंदिर बने हुए हैं। चलिए जानते हैं उनके बारे में।

  • सोमेश्वर या सोमनाथ: यह प्रथम ज्योतिर्लिंग माना जाता है, जो गुजरात के सौराष्ट्र प्रदेश में स्थित है। इसे प्रभास तीर्थ भी कहते हैं।
  • श्रीशैलम मल्लिकार्जुन: यह आन्ध्र प्रदेश के कृष्णा जिले में श्रीशैल नामक पर्वत पर स्थित है। इसे दक्षिण का कैलाश भी माना गया है।
  • महाकालेश्वर: यह मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित है। इसे प्राचीनकाल में अवन्तिका या अवंती कहा जाता था।
  • ओंकारेश्वर: यह ज्योतिर्लिंग भी मध्य प्रदेश में है। राज्य के मालवा क्षेत्र में स्थित यह ज्योतिर्लिंग नर्मदा नदी के तट पर स्थित है।
  • केदारेश्वर: यह शिव ज्योतिर्लिंग उत्तराखंड में हिमालय की चोटी पर विराजमान श्री केदारनाथजी या केदारेश्वर के नाम से विख्यात है। श्री केदार पर्वत शिखर से पूर्व में अलकनन्दा नदी के किनारे भगवान बद्रीनाथ का मन्दिर है।
  • भीमाशंकर: महाराष्ट्र में स्थित है यह ज्योतिर्लिंग भीमा नदी के किनारे सहयाद्रि पर्वत पर हैं। भीमा नदी इसी पर्वत से निकलती है।
  • विश्वेश्वर: वाराणसी या काशी में विराजमान भूतभावन भगवान श्री विश्वनाथ या विश्वेश्वर महादेव को सातवां ज्योतिर्लिंग माना गया है।
  • त्र्यम्बकेश्वर: भगवान शिव का यह आठवां ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के नासिक जिले में ब्रह्मगिरि के पास गोदावरी नदी के किनारे स्थापित है।
  • वैद्यनाथ महादेव: इसे बैजनाथ भी कहते हैं। यं नौवां ज्योतिर्लिंग है, जो झारखण्ड राज्य देवघर में स्थापित है। इस स्थान को चिताभूमि भी कहा गया है।
  • नागेश्वर महादेव: भगवान शिव का यह दसवां ज्योतिर्लिंग बड़ौदा क्षेत्र में गोमती द्वारका के समीप है। इस स्थान को दारूकावन भी कहा जाता है। इस ज्योतिर्लिंग लेकर कुछ विवाद भी है। अनेक लोग दक्षिण हैदराबाद के औढ़ा ग्राम में स्थित शिवलिंग का नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मानते हैं।
  • रामेश्वरम: श्री रामेश्वर एकादशवें ज्योतिर्लिंग है. इस तीर्थ को सेतुबन्ध तीर्थ कहा गया है। यह तमिलनाडु में समुद्र के किनारे स्थपित है।
  • घुष्मेश्वर: इस द्वादशवें ज्योतिर्लिंग को घृष्णेश्वर या घुसृणेश्वर के नाम से भे जाना जाता है। यह महाराष्ट्र राज्य में दौलताबाद से लगभग 18 किलोमीटर दूर बेरूलठ गांव के पास स्थित है।

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