14 लाख किलो ग्रेनाइट से अमेरिका के हवाई द्वीप पर तैयार हुआ भव्य हिन्दू मंदिर: न बनाने में न अब बिजली का इस्तेमाल, जानिए कैसे शैव संतों ने कर दिखाया संभव
इन्हीं में से एक परमाचार्य सदाशिवानन्द पलानी स्वामी ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था, जो काउई के कापा में 1968 में अपने गुरु और परिसर के संस्थापक शिवाय सुब्रमुनियास्वामी के साथ आए थे।
इराइवन मंदिर, कपासा, हवाई: पश्चिमी जगत में एक ऐसा हिन्दू मंदिर बना है, जिसके लिए न तो बिजली और न ही किसी बिजली के उपकरण का इस्तेमाल किया गया था। ये अमेरिका के प्रसिद्ध हवाई द्वीप में स्थित है। हवाई के जिस काउई द्वीप पर इसका निर्माण किया गया है, वहाँ ये चारों तरफ से सुंदर जंगलों और पार्कों से घिरा हुआ है। ये एक इराइवान मंदिर है, यानी तमिल शैली का मंदिर। ये पूरा का पूरा भवन ग्रेनाइट से बनाया गया है। इसके शिखर पर सोने की परत चढ़ी हुई है, दक्षिण भारत के प्राचीन मंदिरों की तर्ज पर इसका निर्माण किया गया है।
इराइवन मंदिर, कपासा, हवाई: तमिल शैली का मंदिर
Name: | इराइवन मंदिर, हवाई (San Marga Iraivan Temple) |
Location: | Himalayan Academy – Kauai’s Hindu Monastery. 107 Kaholalele Road, Kapaa, HI 96746-9304 USA |
Deity: | Lord Shiva |
Affiliation: | Hinduism |
Type: | Chola-style Temple |
Creator: | Kauai Hindu Monastery and architect V. Ganapati Sthapati |
Date established: | 1990 construction started |
हवाई की जनसंख्या 14 लाख के करीब है, जिसमें से 1% से कम लोग ही हिन्दू हैं। कुछ आँकड़े तो कहते हैं कि हिन्दुओं की संख्या 50 से ज़्यादा नहीं होगी। लेकिन, काउई अधीनम परिसर में रहने वाले 2 दर्जन साधुओं के पास श्रद्धालुओं का आना-जाना लगा रहता है। ये हिन्दू धर्म की शैव विचारधारा का पालन करते हैं। इन्हीं में से एक परमाचार्य सदाशिवानन्द पलानी स्वामी ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था, जो काउई के कापा में 1968 में अपने गुरु और परिसर के संस्थापक शिवाय सुब्रमुनियास्वामी के साथ आए थे।
उन्होंने एक बार स्वप्न में भगवान शिव को वहाँ एक बड़े पत्थर पर विराजमान देखा था, जिसके बाद मंदिर का निर्माण शुरू करवाया गया। 1990 में इसका निर्माण शुरू हुआ और संस्थापक के निधन के बाद भी कार्य जारी रहा। गुरूजी का मानना था कि बिजली के साथ एक प्रकार का चुम्बकीय प्रभाव आता है और इसका मानसिक असर भी होता है। भारत के कई कलाकारों की सेवा इस मंदिर को बनाने में ली गई, जिसमें 33 वर्ष लगे। मंदिर में तेल के दीये जलाए जाते हैं, बल्ब नहीं।
चोल राजवंश की शैली पर आधारित इस मंदिर में पंखे या AC भी नहीं लगवाए गए हैं। यहाँ मुख्य देवता के रूप में 700 पाउंड (317.51 किलोग्राम) के शिवलिंग की स्थापना की गई है। इसमें एक कडवुल मंदिर भी है, जिसमें शिव को नृत्य करते हुए अर्थात नटराज के रूप में दिखाया गया है। इस साल मार्च में पुजारी प्रवीणकुमार यहाँ पहुँचे, जब 32 लाख पाउंड (14.51 लाख किलोग्राम) के ग्रेनाइट का इस्तेमाल कर के 3600 पत्थर, स्तम्भ और बीम को स्थापित किया गया।
पुजारी ने कहा कि यहाँ इस तरह की किसी संरचना का निर्माण असंभव था, लेकिन फिर भी इसे संभव बनाया गया। बता दें कि सुब्रमुनियास्वामी पहले सैन फ्रांसिस्को में बैलेट डांसर हुआ करते थे। उत्तरी श्रीलंका में गुरु योगस्वामी ने उन्हें दीक्षित किया। फिर उन्हें पूर्व-पश्चिम के बीच सेतु बनाने का आदेश गुरु ने दिया। 1969 में काउई द्वीप पर उन्हें विशेष अनुभव हुए। उन्होंने मंदिर बनाने में स्थानीय संस्कृति का भी ध्यान रखा। उससे पहले उन्होंने बौद्ध मठों का भी दौरा किया।