शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ:
कैला देवी मंदिर: श्री कृष्ण की जन्म कथा से कौन वाकिफ़ नहीं है, हिंदू धर्म से संबंध रखने वाले हर व्यक्ति को पता है श्री कृष्ण को जन्म देने वाली और उनका पालन पोषण करने वाली दो माएं थी। जिनमें से एक थी कंस की बहन देवकी जिन्होंने श्री हरि के अवतार कृष्ण को अपनी कोख से जन्मा था। दूसरी थी मां यशोदा जिन्होंने कान्हा का पालन पोषण किया था। अब आप में से लगभग लोग यही सोच रहे होंगे कि हम यकीनन आपको श्री कृष्ण से जुड़ी बातें बताने वाले होंगे। मगर बता दें आज हम श्री कृष्ण की बहन कहे जाने वाली देवी से जुड़ी बातें बताने वाले हैं। तो चलिए बढ़ते है इस किस्से की ओर जो भगवान श्री कृष्ण के बहन से जुड़ा हुआ है।
कैला देवी मंदिर, करौली, राजस्थान: भगवान श्रीकृष्ण की बहन कैला देवी
आप में से लगभग लोग जानते होंगे कि देवकी के भाई कंस को जब पता चला था कि उसकी बहन की संतान के हाथों उसकी मृत्यु होगी तब से उसने एक एक करके अपनी बुन की सभी संतानों का मारना शुरू कर दिया था। इसी प्रकार जब माता देवकी की आठवीं संतान के रूप में श्री कृष्ण का जन्म हुआ तो कंस उसको मारने के लिए आगे बढ़ा। मगर जैसे कि कंस ने संतान को खत्म करने के लिए उस शिला पर पटका तो वह देवी के रूप में प्रकट होकर आकाश में चली गई।
बहुत कम लोग होंगे जो जानते होंगे कि भगवान श्रीकृष्ण की बहन कहा जाने वाली इस देवी का राजस्थान में कैला देवी नामक मंदिर स्थापित है, जो न केवल देश में बल्कि विश्वभर में विख्यात है। बताया जाता है यहां नवरात्रि के दौरान भक्तों की अधिक भीड़ देखने को मिलती है। बता दें यह उत्तर भारत के प्रसिद्ध दुर्गाधाम में से एक है।
साल में एक बार लगता है यहां मेला:
बताया जाता है यहां साल में एक बार लक्खी मेले का आयोजन होता है। इसमें उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली, पंजाब और गुजरात समेत कई राज्यों से भारी मात्रा में भक्त पहुंचते हैं।
चमत्कारिक है काली सिल नदी:
मंदिर के समीप कालीसिल नदी के चमत्कार में पूरे विश्व में विख्यात हैं। प्रचलित मान्यताओं के अनुसार है यहां आने वालों के लिए कालीसिल नदी में स्नान करना आवश्यक माना जाता है। बता दें कालीसिल नदी में स्नान के बाद ही भक्त कैला देवी के दर्शन के लिए जाते हैं।
केश दान करते हैं लोग:
बताया जाता है मां कैला देवी के दरबार में लोग अपने बच्चे का पहली बार आकर मुंडन कराते हैं और मां को बाल समर्पित करते हैं। कहा जाता जिस किसी परिवार में विवाह होता है तो नवविवाहित जोड़ा जब तक आकर मां का आशीर्वाद नहीं ले लेता तब तक परिवार का कोई सदस्य यहां दर्शन करने नहीं आता।
कैला देवी के अवतरण की पौराणिक कथा:
प्रचलित कथा के अनुसार मां सती के अंग जहां-जहां गिरे थे वहां-वहां शक्तिपीठ का निर्माण हुआ और उन्हीं स्थानों में से एक यह भी है। यह भी माना जाता है कि बाबा केदारगिरी ने कठोर तपस्या कर माता के श्रीमुख की यहां स्थापना की थी।
कैसे पहुंचे कैला देवी मंदिर:
कैलादेवी कस्बा सडक मार्ग से सीधा जुडा हुआ है। जयपुर-आगरा राष्ट्रीय राजमार्ग पर महुवा से कैलादेवी की दूरी 95 किमी है। महुवा से हिण्डौन, करौली तक राज्यमार्ग 22 जाता है, उससे कैलादेवी सीधा सडक मार्ग से जुडा हुआ है इसके अलावा पश्चिमी मध्य रेलवे के दिल्ली- मुंबई रेलमार्ग पर हिण्डौन सिटी स्टेशन से 55 किमी एवं गंगापुर सिटी स्टेशन से 48 किमी की दूरी है जहां से राज्य पथ परिवहन की बस सेवा एवं निजी टैक्सी गाडियां हमेशा तैयार मिलती है। हवाई यात्रा से आने वाले तीर्थ यात्रियों के लिए नजदीकी हवाई अड्डा जयपुर है जहां से सडक मार्ग द्वारा महवा हिण्डौन होकर करौली (Karauli District) से कैलादेवी पहुंच सकते है। कैलादेवी की जयपुर से दूरी 195 किमी है।