कैलाश मन्दिर एलोरा: संभाजीनगर, महाराष्ट्र

कैलाश मन्दिर एलोरा: संभाजीनगर, महाराष्ट्र

कैलाश मन्दिर एलोरा – महाराष्ट्र के औरंगाबाद ज़िले में प्रसिद्ध ‘एलोरा की गुफ़ाओं’ में स्थित है। यह मंदिर दुनिया भर में एक ही पत्‍थर की शिला से बनी हुई सबसे बड़ी मूर्ति के लिए प्रसिद्ध है। इस मंदिर को तैयार करने में क़रीब 150 वर्ष लगे और लगभग 7000 मज़दूरों ने लगातार इस पर काम किया। पच्‍चीकारी की दृष्टि से कैलाश मन्दिर अद्भुत है। मंदिर एलोरा की गुफ़ा संख्या 16 में स्थित है। इस मन्दिर में कैलास पर्वत की अनुकृति निर्मित की गई है।

Name: कैलाश मन्दिर एलोरा (Kailasa Temple, Ellora)
Location: Ellora Caves, Shambhaji Nagar, Maharashtra, India
Deity: Lord Shiva
Affiliation: Hinduism
Creator: Krishna I (756–773 CE), Rashtrakuta Empire
Completed In: 8th century C.E

दुनिया की कई जगहों में ऐसे मंदिर हैं, जो अपने इतिहास और अपनी प्राचीन परम्पराओं के साथ अपनी वास्तुकला के लिए भी प्रसिद्ध हैं। इन मंदिरों की वास्तुकला कुछ ऐसी कि आज नवीन तकनीकी और विज्ञान कौ सुविधाओं के बाद भी इस प्रकार की वास्तुकला को हकीकत में उतार पाना बहुत ही मुश्किल है।

आज हम आपको एक ऐसे ही मंदिर के विषय में बता रहे हैं, जो महाराष्ट्र के संभाजीनगर की एलोरा की गुफाओं में स्थित है। इस मंदिर का निर्माण एक ही विशाल चट्टान को काटकर और तराश कर किया गया है।

ऐतिहासिक प्रमाण के आधार पर इस मंदिर का निर्माण राष्ट्रकूट वंश के राजा कृष्ण प्रथम द्वारा सन्‌ 756 से सन्‌ 773 के दौरान कराया गया।

“कैलाश मन्दिर एलोरा” जिस पर औरंगजेब के हमलों का नहीं हुआ असर

मंदिर के निर्माण को लेकर यह मान्यता है कि एक बार राजा कौ तबीयत बहुत बिगड़ गई थी, उसी दौरान रानी ने उनके स्वस्थ होने के लिए भगवान शिव से प्रार्थना की और यह प्रण लिया कि राजा के स्वस्थ होने पर वह मंदिर बनवाएंगी और मंदिर के शिखर को देखने तक ब्रत रखेंगी। राजा जब स्वस्थ हुए तो मंदिर के निर्माण के प्रारंभ होने कौ बारी आईं लेकिन कारीगरों द्वारा बताया गया कि मंदिर के निर्माण में बहुत समय लगेगा। इतने लंबे समय तक ब्रत रख पाना बेहद कठिन था। तब रानी ने भगवान शिव से सहायता मांगी।

कहा जाता है कि इसके बाद उन्हें भूमि अस्त्र प्राप्त इुआ, जो पत्थर को भी भाष बना सकता है और इसी अस्त्र से मंदिर का निर्माण इतने कम समय में संभव हो पाया।

कैलाश मन्दिर एलोरा संसार में अपने ढंग का अनूठा वास्तु जिसे मालखेड स्थित राष्ट्रकूट वंश के नरेश कृष्ण (प्रथम) (757-783 ई0) में निर्मित कराया था। यह एलोरा (जिला छत्रपती संभाजी नगर) स्थित लयण-श्रृंखला में है।

अन्य लयणों की तरह भीतर से कोरा तो गया ही है, बाहर से मूर्ति की तरह समूचे पर्वत को तराश कर इसे द्रविड़ शैली के मंदिर का रूप दिया गया है। अपनी समग्रता में २७६ फीट लम्बा , १५४ फीट चौड़ा यह मंदिर केवल एक चट्टान को काटकर बनाया गया है। इसका निर्माण ऊपर से नीचे की ओर किया गया है। इसके निर्माण के क्रम में अनुमानत: ४० हज़ार टन भार के पत्थारों को चट्टान से हटाया गया। इसके निर्माण के लिये पहले खंड अलग किया गया और फिर इस पर्वत खंड को भीतर बाहर से काट-काट कर 90 फुट ऊँचा मंदिर गढ़ा गया है। मंदिर के भीतर और बाहर चारों ओर मूर्ति-अलंकरणों से भरा हुआ है। इस मंदिर के आँगन के तीन ओर कोठरियों की पाँत थी जो एक सेतु द्वारा मंदिर के ऊपरी खंड से संयुक्त थी। अब यह सेतु गिर गया है। सामने खुले मंडप में नन्दी है और उसके दोनों ओर विशालकाय हाथी तथा स्तंभ बने हैं। यह कृति भारतीय वास्तु-शिल्पियों के कौशल का अद्भुत नमूना है।

बाद में इस अस्त्र को भूमि के नीचे छुपा दिया गया। 276 फुट लंबे और 54 फुट चौड़े इस मंदिर को एक ही चट्टान को तराश कर बनाया गया है।

इस चट्टान का वजन लगभग 40 टन है। मंदिर जिस चट्टान से बनाया गया है, उसके चारों ओर सबसे पहले चट्टानों को काटा गया। अगल-बगल के लगभग 2 लाख टन पत्थरों को हटाया गया।

आमतौर पर पत्थर से बनने वाले मंदिरों को सामने की ओर से तराशा जाता है, लेकिन 90 फुट ऊंचे कैलाश मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता है कि इसे ऊपर से नीचे की तरफ तराशा गया है। कैलाश मंदिर एक ही पत्थर से निर्मित विश्व की सबसे बड़ी संरचना है।

इतिहास बताता है कि औरंगजेब ने कई मंदिरों को नष्ट किया था। इस मंदिर को भी कई बार क्षतिग्रस्त करने का प्रयास किया गया लेकिन उसकी लाख कोशिशों के बावजूद वह मंदिर को बाल के बराबर भी क्षति नहीं पहुंचा पाया था।

~ थोगेश कुमार सोनी

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