प्राचीन कालीनाथ महादेव देहरा उपमंडल के कालेश्वर में ब्यास नदी के तट पर स्थित है। शक्तिपीठ ज्वालामुखी से यह बारह किलोमीटर दूर है। मंदिर के साथ बहती ब्यास नदी में पूर्णिमा, अमावस्या एवं ग्रहण पर श्रद्धालु स्नान के लिए आते हैं लेकिन बैसाख महीने की सक्रांति पर यहां दान, पूजा और स्नान का अत्यधिक महत्व है।
कालीनाथ मंदिर उस समय का है जब पांडवों को अज्ञात वास हुआ था। ब्यास नदी के तट पर उनके द्वारा बनाई गई पौडिय़ां इस बात का प्रमाण हैं। जिस समय पांडव इस स्थान पर आए तो वह अपने साथ भारत के पांच प्रसिद्ध तीर्थ हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन, नासिक व रामेश्वरम का जल लेकर आए। उस जल को उन्होंने यहां अवस्थित तालाब में डाल दिया। तालाब में पंचतीर्थी का जल मिलने से इसे पंचतीर्थी कहा जाने लगा।
माना जाता है की पंचतीर्थी अथवा ब्यास नदी में स्नान करने से वो ही पुण्य प्राप्त होता है जो हरिद्वार में स्नान करने से मिलता है। एक तीर्थ पर ही प्राप्त होता है पंचतीर्थों का फल। इस स्थल पर अस्थियों का विसर्जन भी किया जाता है।
यहां पर कालीनाथ मंदिर के अतिरिक्त नौ मंदिर स्थापित हैं। लोक मान्यता है की महर्षि व्यास ने यहां प्रचण्ड तप किया था। यहां बहुत से ऋषि मुनियों की समाधियां भी हैं।
यहां पर बैसाखी मेले की धूम रहती है। मेले को राज्य स्तरीय मेले का स्वरूप दिया गया है जिस वजह से यह 13 अप्रैल से 15 अप्रैल तक पारंपरिक एवं धार्मिक ढंग से मनाया जाता है। मेले के प्रति लोगों का बहुत रूझान होता है। मेले के अवसर पर यहां बड़ी तादाद में दुकानें लगती हैं।