Kamakhya Temple, Nilachal Hill, Guwahati, Assam कामाख्या मंदिर

कामाख्या मंदिर शक्तिपीठ, गुवाहाटी, असम

कामाख्या मंदिर अपनी अनूठी मान्यताओं के बारे में मशहूर है। यह मंदिर असम की राजधानी दिसपुर से 7 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह शक्ति की देवी सती का मंदिर है। इस मंदिर का तांत्रिक महत्व है। यहां पर लोग पूजा करने तो जाते हैं लेकिन ऐसी बहुत सारी बातें हैं जिनके बारे में लोगों को अभी तक पता नहीं है।

Name: कामाख्या मंदिर शक्तिपीठ (Kamakhya Temple)
Location: Kamakhya, Guwahati, Assam 781010 India
Deity: Kamakhya
Affiliation: Hinduism
Festivals: Ambubachi Mela
Founder: Mlechchha dynasty. Rebuilt by Koch King Nara Narayan and Ahom kings
Completed In: 8th – 17th century

कामाख्या शक्तिपीठ 51 शक्तिपीठों में से एक है। हिन्दू धर्म के पुराणों के अनुसार जहां-जहां सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आये। ये अत्यंत पावन तीर्थस्थान कहलाये। ये तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर फैले हुए हैं। देवीपुराण में 51 शक्तिपीठों का वर्णन है।

स्थिति:

कामाख्या पीठ भारत का प्रसिद्ध शक्तिपीठ है, जो असम प्रदेश में है। कामाख्या देवी का मंदिर गुवाहाटी रेलवे स्टेशन से 10 किलोमीटर दूर नीलाचल पर्वत पर स्थित है। कामाख्या देवी का मन्दिर पहाड़ी पर है, अनुमानत: एक मील ऊँची इस पहाड़ी को नील पर्वत भी कहते हैं। कामरूप का प्राचीन नाम धर्मराज्य था। वैसे कामरूप भी पुरातन नाम ही है। प्राचीन काल से सतयुगीन तीर्थ कामाख्या वर्तमान में तंत्र-सिद्धि का सर्वोच्च स्थल है। पूर्वोत्तर के मुख्य द्वार कहे जाने वाले असम की नयी राजधानी दिसपुर से 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित नीलाचल पर्वतमालाओं पर स्थित माँ भगवती कामाख्या का सिद्ध शक्तिपीठ सती के इक्यावन शक्तिपीठों में सर्वोच्च स्थान रखता है।

यह भारत के ईशान कोण तथा योगिनी तंत्र में इसकी सीमा है- पश्चिम में करतोया से दिक्करवासिनी तक, उत्तर में कंजगिरि, पूर्व में तीर्थश्रेष्ठ दिक्षु नदी, दक्षिण में ब्रह्मपुत्र और लाक्षानदी के संगम स्थल तक, त्रिकोणाकार कामरूप की सीमा-लंबाई 100 योजना, विस्तार 30 योजन है। नीलाचल पर्वत के दक्षिण में वर्तमान पाण्डु गौहाटी मार्ग पर जो पहाड़ियाँ हैं, उन्हें नरकासुर पर्वत कहते है। नरकासुर कामरूप के प्राग्जोतिषपुर का राजा था, जिसने त्रेता से द्वापर तक राज्य किया तथा वह कामाख्या का प्रमुख भक्त था।

कामाख्या मंदिर शक्तिपीठ, नीलाचल पहाड़ी, गुवाहाटी, असम

जानिए, इस अनूठे मंदिर के बारे मेंः

  • असम के शहर गुवाहाटी के पास सती का ये मंदिर 52 शक्तिपीठों में से एक है लेकिन हैरानी की बात तो यह है कि इस मंदिर में देवी सती या दुर्गा की एक भी मूर्ति देखने को नहीं मिलेगी।
  • देवी सती ने अपने पिता के खिलाफ जाकर भगवान शिव से शादी की थी, जिसके कारण सती के पिता दक्ष उनसे नाराज थे। एक बार राजा दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन करवाया लेकिन अपनी बेटी और दामाद को निमत्रंण नहीं भेजा। सती इस बात से नाराज तो हुईं, लेकिन फ़िर भी वह बिना बुलाए अपने पिता के घर जा पहुंची, जहां उनके पिता ने उनका और उनके पति का अपमान किया। इस बात से नाराज़ हो कर वो हवन कुंड में कूद गईं और आत्महत्या कर ली। जब इस बात का पता भगवान शिव को चला तो वो सती के जले शरीर को अपने हाथों में लेकर तांडव करने लगे, जिससे इस ब्रह्मांड का विनाश होना तय हो गया लेकिन विष्णु भगवान ने सुदर्शन चक्र से सती के जले शरीर को काट कर शिव से अलग कर दिया। कटे शरीर के हिस्से जहां-जहां गिरे वो आज शक्ति पीठ के रूप में जाने जाते हैं।
  • कामाख्या मंदिर में देवी सती की योनि गिरी थी। इसी कारण इस मंदिर को कामाख्या कहा जाता है।
  • इस मंदिर से जुड़ी एक और कहानी है। कहा जाता है कि नराका नाम के एक दानव को कामाख्या देवी से प्यार हो गया था और उसने शादी का प्रस्ताव दे डाला लेकिन देवी ने एक शर्त रखी कि अगर वो निलांचल पर्वत पर सीढ़ियां बना देगा तो वो उससे शादी कर लेंगी।

  • नराका ने इस शर्त को मान लिया और अपने काम में लग गया। आधी रात तक उसने काफी ज्यादा काम खत्म कर दिया जब देवी ने उस राक्षस को जीतते देखा तो एक चाल चली। देवी ने एक मुर्गे का रूप लिया और बोलने लगी। राक्षस को लगा कि सुबह हो गई और वो हार गया लेकिन जब उसे इस चाल का पता चला तो उसने मुर्गे को मार दिया, जिस जगह उस मुर्गे को मारा गया उसे कुरकुराता कहते हैं, साथ ही उस आधी बनी सीढ़ियों को Mekhelauja Path कहते हैं।
  • 16वीं शताब्दी में इस मंदिर को तोड़ा गया था लेकिन 17वीं शताब्दी में इसे बिहार के राजा नारा नारायणा ने दोबारा बनवाया।
  • इस मंदिर के बाहरी परिसर में आपको कई देवी-देवताओं की आकृति देखने को मिल जाएगी।
  • तीन हिस्सों में बने इस मंदिर का पहला हिस्सा सबसे बड़ा है। यहां पर हर शख्स को जाने नहीं दिया जाता, वहीं दूसरे हिस्से में माता के दर्शन होते हैं, जहां एक पत्थर से हर समय पानी निकलता है। वैसे कहा जाता है कि महीने में एक बार इस पत्थर से खून भी निकलता है।
  • इस मंदिर में वैसे तो हर वक़्त भक्तों की भीड़ लगी होती है, लेकिन दुर्गा पूजा, पोहान बिया, दुर्गादेऊल, वसंती पूजा, मदानदेऊल, अम्बुवासी और मनासा पूजा पर इस मंदिर का महत्व और बढ़ जाता है।
  • मंदिर में निवास करने वाली देवी को मासिक धर्म भी होता है। जो 3 दिन तक रहता है और भक्तों का मंदिर में जाना मना होता है। मंदिर से लाल रक्त के समान तरल द्रव्य निकलता है। इस दौरान अम्बुवासी मेला चलता है। मंदिर में अवस्थित देवी की अनुमानित योनि के समीप पंडित जी नया साफ-स्वच्छ कपड़ा रखते हैं। जो मासिक धर्म के दौरान ‘खून’ से भीग जाता है। फिर यह कपड़ा भक्तों को प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है। मां के रज से भीगा कपड़ा प्रसाद में मिलना किस्मत वालों को नसीब होता है।

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