खिलजी और दिलावर ने भोजशाला को रौंदा, लेकिन नहीं मिटा सके निशान: जानिए धार का वाग्देवी मंदिर कैसे बना कमाल मौलाना मस्जिद
‘भोजशाला’ ज्ञान और बुद्धि की देवी माता सरस्वती को समर्पित एक अनूठा और ऐतिहासिक मंदिर है। इसकी स्थापना राजा भोज ने की थी। राजा भोज (1000 – 1055 ई.) परमार राजवंश के सबसे बड़े शासक और शिक्षा एवं साहित्य के अनन्य उपासक थे।
कमाल मौलाना मस्जिद या वाग्देवी मंदिर: मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय (Madhya Pradesh High Court) ने राज्य के धार जिले में स्थित भोजशाला (Bhojshala) स्मारक परिसर में मुस्लिमों द्वारा नमाज अदा करने पर रोक लगाने की माँग वाली याचिका को 11 मई को स्वीकार कर लिया। इसके साथ ही कोर्ट ने मध्य प्रदेश सरकार, केंद्र सरकार और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) को भी समन जारी किया।
Name: | Bhojshala (Bhoj Shala) |
Location: | Kalika Marg, Bohra Bakhal, Pochaupati, Dhar, Madhya Pradesh 454001 India |
Deity: | Goddess Saraswati |
Affiliation: | Hinduism |
Architecture: | – |
Founder: | Parawara King Bhoja |
Completed In: | 11th century |
यह याचिका ‘हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस‘ की तरफ से दायर की गई थी। इसमें ASI के महानिदेशक द्वारा 7 अप्रैल 2003 को जारी एक आदेश को चुनौती दी गई। ASI ने अपने आदेश में भोजशाला परिसर में नमाज पढ़ने की अनुमति दे दी।
मुस्लिम इसे 11वीं शताब्दी में बना ‘कमाल मौलाना मस्जिद‘ बताते हैं। हिंदू संगठन ने इसका विरोध करते हुए कहा है कि यह स्मारक एक धार्मिक एवं सांस्कृतिक विरासत है, जो सनातन धर्म के अनुयायियों के लिए पूजनीय है। इसके लिए प्रमाण भी प्रस्तुत किए गए हैं।
हिंदू संगठन ने माँग की कि भोजशाला परिसर में देवी सरस्वती (वाग्देवी) की मूर्ति स्थापित की जाए। इसके साथ ही परिसर की वीडियोग्राफी और उसकी जाँच की माँग की। इसी के साथ केंद्र सरकार से भोजशाला में बनी कलाकृतियों और मूर्तियों की रेडियो कार्बन डेटिंग करवाने का आग्रह किया गया है।
क्या है भोजशाला (कमाल मौलाना मस्जिद या वाग्देवी मंदिर)?
‘भोजशाला‘ ज्ञान और बुद्धि की देवी माता सरस्वती को समर्पित एक अनूठा और ऐतिहासिक मंदिर है। इसकी स्थापना राजा भोज ने की थी। राजा भोज (1000 – 1055 ई.) परमार राजवंश के सबसे बड़े शासक थे। वे शिक्षा एवं साहित्य के अनन्य उपासक भी थे। उन्होंने ही धार में इस महाविद्यालय की स्थापना की थी, जिसे बाद में भोजशाला के रूप में जाना जाने लगा। यहाँ दूर-दूर से छात्र पढ़ाई करने के लिए आते थे।
देवी सरस्वती का यह मंदिर मध्य प्रदेश के धार जिले में स्थित है, जो उस समय राजा भोज की राजधानी थी। संगीत, संस्कृत, खगोल विज्ञान, योग, आयुर्वेद और दर्शनशास्त्र सीखने के लिए यहाँ काफी छात्र आया करते थे। भोजशाला एक विशाल शैक्षिक प्रतिष्ठान था।
मुस्लिम जिसे ‘कमाल मौलाना मस्जिद‘ कहते हैं, उसे मुस्लिम आक्रांताओं ने तोड़कर बनवाया है। अभी भी इसमें भोजशाला के अवशेष स्पष्ट दिखते हैं। मस्जिद में उपयोग किए गए नक्काशीदार खंभे वही हैं, जो भोजशाला में उपयोग किए गए थे।
मस्जिद की दीवारों से चिपके उत्कीर्ण पत्थर के स्लैब में अभी भी मूल्यवान नक्काशी किए हुए हैं। इसमें प्राकृत भाषा में भगवान विष्णु के कूर्मावतार के बारे में दो श्लोक लिखे हुए हैं। एक अन्य अभिलेख में संस्कृति व्याकरण के बारे में जानकारी दी गई है।
इसके अलावा, कुछ अभिलेख राजा भोज के उत्तराधिकारी उदयादित्य और नरवर्मन की प्रशंसा की गई है। शास्त्रीय संस्कृत में एक नाटकीय रचना है। यह अर्जुनवर्मा देव [King Arjunavarman] (1299-10 से 1215-18 ईस्वी) के शासनकाल के दौरान अंकित किया गया था। यह नाटक प्रसिद्ध जैन विद्वान आषाधार के शिष्य और राजकीय शिक्षक मदन द्वारा रचा गया था। नाटक को कर्पुरमंजरी कहा जाता है और यह धार में वसंत उत्सव के लिए था।
मंदिर, महलों, मंदिरों, महाविद्यालयों, नाट्यशालाओं और उद्यानों के नगर – धारानगरी के 84 चौराहों का आकर्षण का केंद्र माना जाता था। देवी सरस्वती की प्रतिमा वर्तमान में लंदन के संग्रहालय में है। प्रसिद्ध कवि मदन ने अपनी कविताओं में भी माता सरस्वती मंदिर का उल्लेख किया है।
इस्लामी आक्रमण और भोजशाला परिसर का विनाश
साल 1305, 1401 और 1514 ई. में मुस्लिम आक्रांताओं ने भोजशाला के इस मंदिर और शिक्षा केंद्र को बार-बार तबाह किया। 1305 ई. में क्रूर और बर्बर मुस्लिम अत्याचारी अलाउद्दीन खिलजी ने पहली बार भोजशाला को नष्ट किया। हालाँकि, इस्लामी आक्रमण की प्रक्रिया 36 साल पहले 1269 ई. में ही शुरू हो गई थी, जब कमाल मौलाना नाम का एक मुस्लिम फकीर मालवा पहुँचा।
कमाल मौलाना ने कई हिंदुओं को इस्लाम में धर्मांतरित करने के लिए छल-कपट का सहारा लिया। उसने 36 सालों तक मालवा क्षेत्र के बारे में विस्तृत जानकारी इकट्ठा की और उसे अलाउद्दीन खिलजी को दे दी। युद्ध में मालवा के राजा महाकाल देव के वीरगति प्राप्त करने के बाद खिलजी ने कहर शुरू हो गया।
खिलजी ने भोजशला के छात्रों और शिक्षकों को बंदी बना लिया और इस्लाम में धर्मांतरित होने से इनकार करने पर 1200 हिंदू छात्रों और शिक्षकों की हत्या कर दी। उसने मंदिर परिसर को भी ध्वस्त कर दिया। मौजूदा मस्जिद उसी कमाल मौलाना के नाम पर है।
खिलजी के बाद एक अन्य मुस्लिम आक्रमणकारी दिलावर खान ने 1401 ई. में यहाँ के विजय मंदिर (सूर्य मार्तंड मंदिर) को ध्वस्त कर दिया और सरस्वती मंदिर भोजशाला के एक हिस्से को दरगाह में बदलने का प्रयास किया। मुस्लिम आज उसी विजय मंदिर में नमाज अदा करते हैं।
फिर 1514 ई. में महमूद शाह ने भोजशाला को घेर लिया और इसे एक दरगाह में बदलने का प्रयास किया। उन्होंने सरस्वती मंदिर के बाहर के क्षेत्र पर कब्जा कर लिया और ‘कमाल मौलाना मकबरा’ की स्थापना की। इसी आधार पर भोजशाला को दरगाह होने का दावा किया जा रहा है।
1552 ई. में मेदनी राय नाम के एक क्षत्रिय राजा ने हिंदू सैनिकों को इकट्ठा महमूद खिलजी को मार भगाया। इस लड़ाई में मेदनी राय ने हजारों मुस्लिम सैनिकों को मारे और 900 मुस्लिम सैनिकों को गिरफ्तार कर धार किले में बंद कर दिया।
25 मार्च 1552 को धार किले में काम करने वाले सैयद मसूद अब्दाल समरकंदी ने विश्वासघात करते हुए उन सैनिकों को रिहा कर दिया। बाद में राजा मेदनी राय ने समरकंदी को विश्वासघात के लिए मृत्युदंड दिया। उसी सैयद मसूद अब्दाल समरकंदी को धार किले में ‘बंदीछोड़ दाता’ कहा जाता है।
अंग्रेजों का प्रवेश
1703 ई. में मालवा पर मराठों का अधिकार हो गया, जिससे मुस्लिम शासन समाप्त हो गया। ईस्ट इंडिया कंपनी ने 1826 ई. में मालवा पर अधिकार कर लिया। उन्होंने भी भोजशाला पर आक्रमण किया, कई स्मारकों और मंदिरों को नष्ट कर दिया। लॉर्ड कर्जन ने भोजशाला से देवी की मूर्ति को लेकर 1902 में इंग्लैंड में भेज दिया। यह मूर्ति वर्तमान में लंदन के एक संग्रहालय में है।
मुस्लिम शासन के बाद पहली बार मुस्लिमों ने 1930 में ब्रिटिश शासन के दौरान भोजशाला में प्रवेश करके नमाज अदा करने का प्रयास किया था। हालाँकि, इस प्रयास को आर्य समाज और हिंदू महासभा के हिंदू कार्यकर्ताओं ने विफल कर दिया।
साल 1952 में केंद्र सरकार ने भोजशाला को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) को सौंप दिया। उसी वर्ष राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और हिंदू महासभा के प्रचारकों ने हिंदुओं को भोजशाला के बारे में जानकारी देना शुरू किया। इसी समय के आसपास हिंदुओं ने श्री महाराजा भोज स्मृति वसंतोत्सव समिति की स्थापना की।
उसके बाद 1961 में प्रसिद्ध पुरातत्वविद्, कलाकार, लेखक और इतिहासकार पद्मश्री डॉ विष्णु श्रीधर वाकणकर ने लंदन का दौरा किया और बताया कि लंदन में रखी वाग्देवी की मूर्ति असल में भोजशाला में राजा भोज द्वारा स्थापित की गई थी।
हिंदुओं को पूजा की अनुमति नहीं थी
12 मार्च 1997 से पहले हिंदुओं को दर्शन करने की अनुमति थी, लेकिन वे पूजा नहीं कर सकते थे। इसकी अनुमति नहीं थी। साल 1997 में मध्य प्रदेश की कॉन्ग्रेस सरकार ने एक आदेश जारी मुस्लिमों को हर शुक्रवार को भोजशाला में नमाज अदा करने की दे दी और हिंदुओं को भोजशाला में प्रवेश पर रोक लगा दिया।
हिंदुओं को केवल वसंत पंचमी के दौरान भोजशाला में प्रवेश करने और पूजा करने की अनुमति थी। भोजशाला को अप्रैल 2003 में हिंदुओं के लिए खोल दिया गया था। हिंदू भक्तों मंदिर में हर दिन आ सकते थे, लेकिन सिर्फ मंगलवार को पूजा कर सकते थे, वो सिर्फ फूल से।
ज्ञानवापी ढाँचे में वीडियोग्राफिक सर्वे के बाद सामने आए तथ्यों के बाद भोजशाला का मुद्दा एक बार फिर गरमा गया है। हालिया याचिका में भोजशाला पूर्णत: हिंदुओं के अधिकार में देने की माँग की गई है। इसमें आगे कहा गया कि मंदिर तोड़े जाने के बाद अब तक उसी रूप में बने रहना श्रद्धालुओं की आस्थाओं पर आघात है। ऐसा होने से हिंदू समाज अपने पूजा स्थल से आध्यात्मिक शक्ति नहीं हासिल कर पा रहा है।
याचिका में कहा गया है कि भोजशाला का वर्तमान स्वरूप हर दिन श्रद्धालुओं को चिढ़ाने के समान है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 और 25 के साथ 13 (1) धार्मिक अधिकारों की रक्षा के लिए हैं। आक्रमणकरियों के समय से चली आ रही गलती को अब सुधारा जाना चाहिए।