कन्याकुमारी मंदिर: जहां देवी पार्वती के कन्या रूप की होती है पूजा

कन्याकुमारी मंदिर: जहां देवी पार्वती के कन्या रूप की होती है पूजा

कन्याकुमारी मंदिर: कन्याकुमारी दक्षिण भारत का प्रमुख तीर्थस्थल है। यहां समुद्र तट पर कुमारी देवी का मंदिर है, जहां देवी पार्वती के कन्या रूप को पूजा जाता है। मंदिर में प्रवेश के लिए पुरुषों को कमर से ऊपर के वस्त्र उतारने पड़ते हैं। प्रचलित कथा के अनुसार देवी का विवाह संपन्न न हो पाने के कारण बच गए दाल-चावल बाद में कंकर बन गए। आश्चर्यजनक रूप से कन्याकुमारी के समुद्र तट की रेत में दाल और चावल आकार और रंग-रूप के कंकर बड़ी मात्रा में देखे जा सकते हैं।

देवी के एक हाथ में माला है एवं नाक और मुख के ऊपर बड़े-बड़े हीरे हैं। प्रातः काल चार बजे देवी को स्नान कराकर चंदन का लेप चढ़ाया जाता है। रात्रि की आरती बड़ी मनोहारी होती है। विशेष अवसरों पर देवी का श्रृंगार हीरे-जवाहरात से किया जाता है।

Name: कन्याकुमारी मंदिर (Kanyakumari Temple)
Location: 3HH2+Q8G, Located in Kanyakumari Bhagavathy Temple, Kanyakumari, Tamil Nadu, India
Deity: Goddess Parvati
Affiliation: Hinduism
Architecture: Hindu Temple Style
Creator:
Festivals:
Timing: 4:30 AM – 12:30 PM, 4:30 – 8:30 PM

कन्याकुमारी मंदिर का इतिहास

51 शक्तिपीठों में से एक, कन्याकुमारी के बारे में पौराणिक ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि एक बार बाणासुर ने घोर तपस्या की। शिव को उसने अपनी तपस्या के बल पर प्रसन्न कर लिया। शिवजी से उसने कहा कि आप मुझे अमरत्व का वरदान दीजिए | शिवजी ने कहा कि कन्याकुमारी के अतिरिक्त तुम सर्वत्र अजेय रहोगे। वरदान पाकर बाणासुर ने त्रैलोक्य में घोर उत्पात मचाना प्रारम्भ कर दिया। नर-देवता सभी उसके आतंक से त्रस्त हो गए। देवता भगवान श्री विष्णु जी की शरण गए। विष्णुजी ने उन्हें यज्ञ करने का आदेश दिया। यज्ञकुण्ड की ज्ञानमय अग्नि से भगवती दुर्गा अपने एक अंश कन्या के रूप में पकट हुईं देवी ने शिव जी को अपने पति के रूप में प्राप्त करने के लिए समुद्र के तट पर तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी ने उनसे विवाह करना स्वीकार कर लिया। देवताओं को चिंता हुई कि यदि विवाह हुआ तो बाणासुर मरेगा नहीं।

देवताओं की प्रार्थना पर देवार्धि नारद ने विवाह के लिए आते हुए भगवान शंकर को शुचीन्द्रम स्थान पर इतनी देर रोक लिया कि विवाह का मुहूर्त ही टल गया। शिव वहीं स्थाणु रूप में स्थित हो गए। विवाह की समस्त सामग्री समुद्र में बहा दी गई। कहते हैं कि वे ही रेत के रूप में मिलते हैं।

देवी ने विवाह के लिए फिर तपस्या प्रारम्भ कर दी। बाणासुर ने देवी के सौन्दर्य की प्रशंसा सुनी। वह देवी के पास जाकर उनसे विवाह का हठ करने लगा। वहां देवी से उसका भयंकर युद्ध हुआ। बाणासुर मारा गया। कन्याकुमारी वही तोर्थ है।

मंदिर की संरचना

मंदिर के दक्षिणी परम्परा के अनुसार चार द्वार थे। वर्तमान समय में तीन दरवाजे हैं। एक दरवाजा समुद्र की ओर खुलता था। उसे बंद कर दिया गया है।

कहा जाता है कि कन्याकुमारी की नाक में होरे की जो सींक है उसको रोशनी इतनी तेज थी कि दूर से आने वाले नाविक यह समझ कर कि यह कोई दीपक जल रहा है, तट के लिए इधर आते थे। किंतु रास्ते में शिलाओं से टकराकर नावें टूट जाती थीं। मंदिर के कई द्वारों के भीतर देवी कन्याकुमारी कौ बड़ी भव्य मूर्ति प्रतिष्ठित है।

निज द्वार के उत्तर और अग्र द्वार के बीच भद्रकाली का मंदिर है। यह कुमारी की सखी मानी जाती हैं। यह 51 शक्तिपीठों में से एक हैं। सती का पृष्ठ भाग यहां गिरा था।

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