हैरानीजनक बात यह है कि मंदिर में इतने सारे चूहे होने पर भी वहां बदबू नहीं है अौर न ही कोई रोग फैलता है। मंदिर में आने वाले भक्तों को भी चूहों का झूठा प्रसाद दिया जाता है लेकिन उन्हें भी किसी प्रकार का कोई रोग नहीं होता। कुछ दशक पहले पूरे भारत में प्लेग नामक रोग फैलने पर भी यहां भक्तों की भीड़ लगी रहती थी। यह मंदिर राजस्थान के बीकानेर से लगभग 30 किलोमीटर दूर करणी माता मंदिर नाम से जाना जाता है। इसे चूहों वाली माता, चूहों वाला मंदिर अौर मूषक मंदिर के नाम से भी ख्याती प्राप्त है।
भक्त करणी माता को मां जगदम्बा का अवतार मानते हैं। एक चारण परिवार में उनका जन्म 1387 में हुआ था। उन्हें बचपन में रिघुबाई के नाम से पुकारते थे। उनका विवाह साठिका गांव के किपोजी चारण से हुआ था। उनका मन विवाह के कुछ समय उपरांत सांसारिक जीवन से ऊब गया जिसके कारण उन्होंने अपने पति से अपनी छोटी बहन गुलाब का विवाह करवा दिया अौर स्वयं को माता की भक्ति एवं लोक सेवा में समर्पित कर दिया। स्थानीय लोगों ने जनकल्याण, अलौकिक कार्य और चमत्कारिक शक्तियों के कारण उन्हें करणी माता के नाम से पूजना शुरु कर दिया।
आज जहां ये मंदिर है वहां की एक गुफा में करणी माता अपनी इष्ट देवी का पूजन करती थी। ये गुफा आज भी वहां पर स्थित है। कहा जाता है कि करणी माता 151 वर्ष जीवित रही। वह 23 मार्च 1538 को ज्योतिर्लिं हुई थी। उनके ज्योतिर्लिं के बाद भक्तों ने उनकी प्रतिमा की स्थापना की अौर उनका पूजन आरंभ कर दिया। जो उस समय से आज तक जारी है।
बीकानेर राजघराने के लोग करणी माता को अपनी कुलदेवी मानते हैं। कहा जाता है कि उनके आशीर्वाद स्वरुप ही बीकानेर और जोधपुर रियासत की स्थापना हुई थी। बीकानेर रियासत के महाराजा गंगा सिंह ने 20 वी शताब्दी के शुरु में करणी माता के मंदिर का निर्माण करवाया था। यहां चूहों के अतिरिक्त संगमरमर के मुख्य द्वार पर शानदार कारीगरी की गई है। मुख्यद्वार पर चांदी के बड़े-बड़े कपाट, माता के सोने के छत्र अौर चूहों के प्रसाद के लिए रखी चांदी की बहुत बड़ी परात आकर्षण का केंद्र है।
मंदिर में चूहों का छत्र राज है। मंदिर के अंदर प्रत्येक स्थान पर चूहे ही नजर आते हैं। चूहों की इतनी संख्यां है कि मुख्य प्रतिमा तक पैर घसीटते हुए पहुंचा जाता है। पैर उठाने पर चूहे नीचे आने से जख्मी हो सकते हैं। ऐसा होना अशुभ माना जाता है। मंदिर में काले रंग के चूहों की संख्या लगभग 20 हजार है। वहां कुछ सफेद रंग के चूहे भी हैं। इन्हें अधिक पवित्र माना जाता है। माना जाता है कि किसी को मंदिर में सफेद रंग का चूहा दिखाई दे तो मनोकामना जरुर पूरी होती है।
यहां के चूहों की एक विशेष बात यह है कि मंदिर में सुबह 5 बजे मंगला आरती और शाम को 7 बजे संध्या आरती के समय बहुत भारी संख्या में चूहे अपने बिलों से बाहर आ जाते हैं। मंदिर में जो चूहे हैं उन्हें काबा कहते हैं। यहां प्रसाद को पहले चूहे खाते हैं फिर उसे भक्तों में बांटा जाता है। मंदिर में खुली जगहों पर बारीक जाली लगाई गई है ताकि चील, गिद्ध और दूसरे जानवरों से चूहों की रक्षा हो सके।
मंदिर में रहने वाले चूहों को मां की संतान माना जाता है। करनी माता की कथा के अनुसार करणी माता का सौतेला बेटा लक्ष्मण कोलायत में स्थित कपिल सरोवर में पानी पीने का प्रयास कर रहा था। तभी पानी में डूबने के कारण उसकी मौत हो गई। करणी माता ने मृत्यु के देवता यम से प्रार्थना की वह उसे जीवित कर दे। पहले मना करने के पश्चात यमदेव ने उसे चूहे के रुप में पुन:जीवित कर दिया।
इन चूहों से संबंधित बीकानेर के लोक गीतों में अलग कहानी कही गई है। जिसके अनुसार देशनोक पर 20,000 सैनिकों की सेना ने आक्रमण कर दिया था उस समय माता करणी ने अपने तेज ने उन्हें चूहे बनाकर अपनी सेवा में रख लिया था।