काशी विश्वनाथ मंदिर, काशी, उत्तर प्रदेश

काशी विश्वनाथ मंदिर, काशी, उत्तर प्रदेश

परमेश्वर शिव का एक नाम महादेव भी है और वो इसलिए है क्योंकि वह देव, दानव, यक्ष, किन्नर, नाग, मनुष्य, सभी के द्वारा पूजे जाते हैं। श्रावण मास में सबसे अधिक वर्षा होती है जो महारुद्र के अंगारक रुपी देह को शीतलता प्रदान करती है। जल ही तो जीवन है जो जल नहीं तो जीवन का कल भी नहीं है।

शास्त्रों के अनुसार जल में भगवान विष्णु का वास है। जल का एक नाम “नीर” और दूसरा नाम “नार” है इसीलिए भगवान विष्णु को नारायण कहते हैं। पानी से ही धरती का ताप भी दूर होता है। जो भक्त, श्रद्धालु शिवलिंग पर जल चढ़ाते हैं उनके रोग-शोक, दुःख दरिद्र सभी नष्ट हो जाते हैं।

विश्वनाथ स्वरुप में शिव विश्व के नाथ बनकर और जगतगुरु संपूर्ण जगत का कल्याण करते हैं। शिव का काशी विश्वनाथ स्वरुप ज्योतिर्लिंगों की सारणी में सातवें क्रमांक पर हैं। काशी सभी धर्म स्थलों में सबसे अधिक महत्व रखती है इसलिए सभी धर्म स्थलों में काशी का अत्यधिक महत्व कहा गया है। इस स्थान की मान्यता है कि प्रलय आने पर भी यह स्थान बना रहेगा। इसकी रक्षा के लिए भगवान शिव इस स्थान को अपने त्रिशूल पर धारण कर लेंगे और प्रलय के टल जाने पर काशी को उसके स्थान पर पुन: रख देंगे।

काशी का मूल विश्वनाथ मंदिर बहुत छोटा था। 18वीं शताब्‍दी में इंदौर की रानी अहिल्‍याबाई होल्‍कर ने इसे सुंदर स्वरूप प्रदान किया। सिख राजा रंजीत सिंह ने 1835 ई. में मंदिर का शिखर सोने से मढ़वा दिया। तभी से इस मंदिर को गोल्‍डेन टेम्‍पल नाम से भी पुकारा जाता है। यह मंदिर बहुत बार ध्वस्त हुआ। आज जो मंदिर स्थित है उसका निर्माण चौथी बार हुआ है।

1585 ई. में बनारस से आए मशहूर व्‍यापारी टोडरमल ने इस मंदिर का निर्माण करवाया। 1669 ई. में जब औरंगजेब का शासन काल चल रहा था तो उसने इस मंदिर को तोड़वा दिया और मंदिर के ध्वंसावशेष पर मस्जिद का निर्माण करवाया  जिसका नाम ज्ञान वापी मस्जिद रखा। आज भी यह मस्जिद विश्वनाथ मंदिर से एकदम सटी हुई है।

मूल मंदिर में अवस्थित नंदी बैल की मूर्त्ति का एक टुकड़ा आज भी ज्ञान वापी मस्जिद में देखा जा सकता है। मस्जिद के पास में ही एक ज्ञान वापी कुंआ भी है। मान्यता है कि प्राचीन काल में इस कुएं से अभिमुक्‍तेश्‍वर मंदिर में जल की आपूर्ति होती थी। 1669 ई. में काशी विश्‍वनाथ मंदिर को औरंगजेब द्वारा ध्वस्त किया जा रहा था तो उस समय मंदिर में स्थापित विश्‍वनाथ जी के श्री रूप को इसी कुएं में छिपा दिया गया था। जब वर्तमान में काशी विश्‍वनाथ का निर्माण हुआ तब इसे कुंए में से निकाल कर पुन: मंदिर में स्थापित कर दिया गया। इस मंदिर के किवाड़ कभी बंद नहीं होते। यह भक्तों के लिए सदा खुला रहता है।

Check Also

National Philosophy Day: Date, History, Wishes, Messages, Quotes

National Philosophy Day: Date, History, Wishes, Messages, Quotes

National Philosophy Day: This day encourages critical thinking, dialogue, and intellectual curiosity, addressing global challenges …