मां शैलपुत्री का प्राचीन मंदिर, अलईपुर, वाराणसी

मां शैलपुत्री का प्राचीन मंदिर, अलईपुर, वाराणसी

शारदीय नवरात्रि में नौ दिनों तक मां दुर्गा के नवस्वरूपों का पूजन किया जाता है। नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। काशी नगरी वाराणसी के अलईपुर में मां शैलपुत्री का प्राचीन मंदिर स्थित है। माना जाता है कि माता के दर्शन मात्र से ही भक्त की हर मुराद पूरी हो जाती है। इतना ही नहीं नवरात्रि के पहले दिन माता शैलपुत्री दर्शन से वैवाहिक कष्ट भी दूर होते हैं। नवरात्रि के पहले दिन यहां भक्तों का तांता लगा रहता है।

इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि मां पार्वती ने हिमवान की पुत्री के रुप में जन्म लिया था अौर शैलपुत्री कहलाई। एक बार माता भोलेनाथ से रुष्ट होकर कैलाश से काशी आ गई। भोलेनाथ उन्हें मनाने हेतु आए तो माता ने उन्हें कहा कि उन्हें ये स्थान बहुत प्रिय लग रहा है। वह वहां से जाना नहीं चाहती। उसके बाद से माता वहीं पर विराजमान हो गई। यहां माता के दर्शनों के लिए आने वाला भक्त मां के दिव्य स्वरूप के रंग में रंग जाता है।

मंदिर में माता की दिन में तीन बार आरती होती है। माता को चढ़ावे में नारियल के साथ सुहाग का समान चढ़ाया जाता है। माता शैलपुत्री का वाहन वृषभ है। इसलिए यह देवी वृषारूढ़ा के नाम से भी जानी जाती हैं। उनके दाएं हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल सुशोभित है। माता शैलपुत्री को मां पार्वती का स्वरूप माना जाता है। माना जाता है कि माता के इस स्वरूप ने भोलेनाथ की कठोर तपस्या की थी।

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