इतना तो सभी जानते हैं कि देवी दुर्गा के कुल नौ रूप है। इसी कारण इन्हें नवदुर्गा भी कहा जाता है। लेकिन ये बात बहुत कम लोग जानते होंगे कि इनके नौ रूपों के मंदिर भी भारत देश में किसी न किसी कोने में स्थित है। कहते हैं जहां-जहां मां के ये रूप विराजित हैं, वहां-वहां मां के चमत्कारों की कोई न कोई कहानी प्रचलित हैं। आज हम भी आप को एक ऐसे ही मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जहां मां का शाकंभरी रूप विराजमान हैं। तो चलिए जानें इस चमत्कारिक मंदिर के बारे में:
मां शाकंभरी मंदिर, सांभर, सीकर जिला, राजस्थान
राजस्थान के सांभर कस्बे जयपुर से करीब 70 किलोमीटर की दूरी पर शाकंभरी मंदिर स्थित है। यहां मां दुर्गा का शाकंभरी रुप स्थापित हैं। बता दें कि मां के इस रूप के दुनिया में अनेकों मंदिर हैं लेकिन इस मंदिर की बात सबसे खास है। कहा जाता है मंदिर की नमक झील और इससे जुड़ी कई ऐसे बातें हैं जो इसे अपने आप में बहुत ही खास और प्रसिद्ध बनाती हैं। बता दे कि राजस्थान के सांभर कस्बे का नाम मां शाकंभरी के यहां तप के कारण ही पड़ा था।
यहां जानें कैसे बड़ा शाकंभरी:
देवीभाग्वत पुराण की मानें राक्षसों के दुष्प्रभाव के कारण एक बार पृथ्वी पर अकाल पड़ गया था। जिसके बाद सभी देवताओं और मनुष्यों नें आदिशक्ति की आराधना की। तब मां ने सभी की प्रार्थना को स्वीकार किया और मां आदिशक्ति ने नवरूप धारण करके पृथ्वी पर दृष्टि डाली और उनकी दिव्य ज्योति से बंजर धरती में भी शाक उत्पन्न हो गई। इन्हीं शाक को खाकर सभी ने अपनी भूख मिटाई। यही कारण है की मां का नाम शाकंभरी पड़ा।
किसने की मंदिर की स्थापना:
कहा जाता है कि इस मंदिर की स्थापना सातवीं सदी में झील और सांभर नगर में की गई थी। मंदिर में मौज़ूद प्रतिमा के बारे में कहा जाता है कि ये मां शक्ति की कृपा से प्रकट हुई स्वयंभू प्रतिमा है। मां शाकंभरी चौहान वंश की कुलदेवी भी मानी जाती हैं। लोक मान्यता है कि सांभर में होने वाली कोई भी धार्मिक पूजा देवी शाकंभरी के आशीर्वाद के बिना नहीं पूरी नहीं होती। यहां के लोग किसी भी प्रकार के काम को करने से पहले देवी का आशीर्वाद ज़रूर लेते हैं।
कैसे हुई थी सांभर झील की उत्पत्ति:
यहां रहने वाले लोगों की मानें तो माता शाकंभरी के तप से ही यहां अपार संपदा उत्पन्न हुई थी। जिससे मनुष्य लालच के कारण आपस में लड़ने-झगड़ने लगे थे। धीरे-धीरे ये समस्या बढ़ने लगी तब मां ने अपनी शक्ति से उस सारी संपदा को नमक में परिवर्तित कर दिया। जिसके बाद यहां सांभर झील की उत्पत्ति हुई थी।