उत्तर प्रदेश के देवीपाटन मण्डल में गोण्डा जिले की कर्नलगंज क्षेत्र के मुकुन्दपुर गांव में बने ऐतिहासिक मन्दिर में मां वाराही देवी के मंदिर में चल रहे नवरात्र मेले में प्रतीकात्मक नेत्र चढ़ाने के लिए दूर दराज से आए श्रद्धालुओं की दर्शनार्थ भीड़ जुटी है। यहां दर्शन कर भक्तजन मां वाराही की कृपा पाते हैं।
वाराह पुराण के मतानुसार जब हिरण्य कश्यप के भ्राता हिरण्याक्ष का वध करने के लिए भगवान विष्णु ने वाराह अवतार लिया तो पाताल लोक जाने के लिए आदिशक्ति की उपासना की तो मुकुन्दपुर में सुखनोई नदी के तट पर मां वाराही देवी अवतरित हुई। इस मन्दिर में एक सुरंग स्थित है जिसके विषय में माना जाता है कि भगवान वाराह ने पाताल लोक तक का मार्ग इसी सुरंग के राही तय किया था और हिरण्याक्ष का वध किया था।
इस घटना के पश्चात से ही यह मन्दिर होंद में आया। मंदिर चारों ओर से वट वृक्ष की शाखाओं से घिरा हुआ है। जिससे ज्ञात होता है कि यह मंदिर पुरातन काल से ही स्थित है। वर्तमान समय में भी सुरंग मौजूद है। सुरंग के गर्भगृह में अखण्ड ज्योति प्रज्जवलित होती रहती है। इस सुरंग की गहराई आज तक नापी नहीं जा सकी। मां वाराही का दर्शन पूजन करने वाले को आयु और यश की प्राप्ति होती है एवं मांगी गई मन्नत निश्चित ही पूरी होती है।
लोक मान्यताओं के अनुसार यहां प्रतीकात्मक नेत्र चढ़ाने से आंखों की विभिन्न जटिल बीमारियों का निवारण होता है। वाराह भगवान की इच्छा से पसका सूकर खेत के निकट मुकुन्दपुर गांव में वाराही देवी प्रकट हुई थी। तभी भगवान विष्णु के नाभि कमल पर विराजमान ब्रह्मा और मां सतरुपा ने देवी के अवरित होने पर भवानी अवतरी का उद्घोष किया।
तब से इस पवित्र मन्दिर को उत्तरी भवानी के नाम से भी जाना जाने लगा। श्रीमद्भागवत के तृतीय खण्ड में भगवान वाराह और दुर्गा सप्तसती में वाराही देवी का उल्लेख किया गया है। मन्दिर के गर्भ गृह में एक बड़ी सुरंग बनाई गई है। जिससे होकर भगवान वाराह ने हिरण्याक्ष नामक राक्षस का वध किया था। अपनी समस्याओं के निवारण के लिए हर सोमवार और शुक्रवार श्रद्धालु यहां आते हैं। भक्त मां वाराही देवी का अलौकिक ढंग से श्रृंगार करते हैं।