यहां है विष्णु भगवान का मत्स्य अवतार। सदियों पुरानी आस्था का प्रतीक है मच्छयाल का तीर्थ। यह आस्था आज भी दृढ़ विश्वास का प्रतीक है और दूर-दूर से श्रद्धालु यहां आकर शीश नवाते हैं। मत्स्य अवतार मानकर यहां विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। बैशाखी पर यहां तीन दिन मेला भी लगता है। मान्यता के तौर पर लोग पूजनीय मछली को लोग नथनी भी पहनाते रहे हैं।
जोगेंद्रनगर – सरकाघाट – घुमारवीं सड़क पर करीब आठ किलोमीटर की दूरी पर स्थित मच्छयाल प्राचीन किवंदति के अनुसार लोगों की कई आवश्यकताएं पूरी करता रहा है। 300 साल पहले यहां स्थित शिवलिंग की पूजा करके ही लोग शादी या दूसरे कार्यक्रमों के लिए बर्तन आदि प्राप्त करते थे। जिस परिवार में शादी-विवाह होता था वह परिवार उस शिवलिंग के समक्ष अपनी मन्नत रखकर शादी में काम आने वाले बर्तन की प्रार्थना करता था। ऐसा काफी अरसे चलता रहा, मगर किसी परिवार के मन में बेईमानी आई और अमानत में खयानत कर दी गई। कहते हैं कि तब से ही मच्छयाल में बर्तन आदि मिलने की प्रथा खत्म हो गई। लोगों की श्रद्धा में किसी किस्म की कमी नहीं आई और मच्छयाल में स्थित तालाब में लोग स्नान करके अपनी मन्नतें मानते हैं।
लोगों की मन्नतें पूरी होती हैं। मच्छयाल में बहुत बड़ी-बड़ी मछलियां हुआ करती थी, जिनकी तादाद अब कम होती जा रही है। मान्यता के तौर पर लोग पूजनीय मछली को लोग नथनी भी पहनाते रहे हैं।
मच्छयाल में विष्णु भगवान के मत्स्य अवतार का मंदिर भी है, जिसकी लोग पूजा करते हैं। शनिवार के दिन लोग विशेष तौर पर मछलियों को आटा व मीठा आदि खिलाते हैं। ग्रहों आदि के उपायों के लिए भी लोग मच्छयाल में पूजा करते हैं।
तालाब को प्रदूषण से बचाने की जरूरत-अगर इस मंदिर का पर्यटन के लिहाज से विस्तार हो तो मच्छयाल अच्छा व आकर्षक पर्यटक स्थल बन सकता है। इसके सुंदरीकरण व प्रदूषण से बचाने की जरूरत है, क्योंकि इसके समीप ही ऊहल चरण तीन परियोजना का रेजरवायर भी बनाया गया है। सुरंग से निकलने वाली पानी की पाइप भी इस तालाब के पास से होकर गुजरती है। लीकेज से तालाब का पानी दूषित होने का खतरा बराबर बना रहता है। कई बार तालाब की मछलियां मर भी चुकी हैं, मगर किसी तरह की सख्ती यहां कभी देखी नहीं गई। लोग करंट से भी मछलियां मारने से गुरेज नहीं करते।