दरगाह के मुख्यद्वार से मन में एक अजीब सी उलझन थी, जिसका उत्तर मजार पर मत्था टेककर निकलने के बाद मिल भी गया। बाबा की मजार पर पहुंचते ही मानो नजरें ठहर सी गईं। मजार पर सिंदूरी रंग की चादर को एकटक निहारता रह गया। मजार के पास खड़े मुहम्मद सुल्तान गुलाम अहमद ने शरीर पर मोरचर फिराया, तो तंद्रा टूटी। दो कदम आगे बढ़कर जब मजार पर मत्था टेका और मजार की चादर को पलकों पर लगाया, तब शरीर में एक अजीब प्रकार की ऊर्जा महसूस की। दिल की धड़कनें सुनाई दे रही थीं, ऐसा लग रहा था कि बाबा का प्यार स्नेह बरस रहा हो।
मजार पर आने से पहले मन में जो भी मन्नतें मांगने की इच्छा थी, सब भूल गया। कहते हैं खुदा सबका ख्याल रखता है, वह किसी के साथ नाइंसाफी नहीं करता है। ऐसे में सूफी बाबा से क्या मांगना, वे तो अपने दरबार में आने वाले लोगों के दिन की बात जान लेते है। बिना मांगें वह मन की मुराद को पूरी कर देते हैं। इस दरगाह पर हर कौम के लोग आते हैं। यहां पर आने वाला कोई भी खाली हाथ नहीं लौटता है। यहां कोई भी भेदभाव नहीं होता है। यह दरगाह कौमी एकता का प्रतीक है। दरगाह पर सभी धर्म के लोगों का समान आस्था है।
हजरत मखदूम फकीह अली माहिमी का जन्म अरब से आकर माहिम द्वीप पर बसे एक परिवार में हुआ था। उनके पिता इराक व कुवैत की सीमा से पहले गुजरात आए, इसके बाद वे कल्याण होते हुए माहिम में आकर बस गए। मखदूम फकीह अली माहिमी बचपन से ही सूफी विचार रखते थे। उनकी विद्वता व उदारता उनके ग्रंथों में सहज ही झलकती है। वे गुजरात के अहमद शाह के शासनकाल में शहर के काजी बने। उनकी शोहरत तेजी से दुनियाभर में बढ़ती गई।
उर्दू व फारसी में पाक कुरान
मखदूम अली माहिमी को देश का पहला टिप्पणीकार माना जाता है। उन्होंने पाक कुरान को उर्दू और फारसी भाषा में सरल शब्दों में लिखा। बाबा के हाथों के लिखे कुरान-ए-पाक की स्याही व कागज तकरीबन साल बाद भी जस का तस चमकदार है। यह किसी चमत्कार से कम नहीं है। इसे मजार के पास ही एक संदूक में रखा गया है। साल में एक बार रमजान महीने के 28 वें रोजा और 29 वें शब को लोगों इसे निकाला जाता है, जिससे लोग जियारत (आम आदमी के दर्शन के लिए) कर सकें।
मां की दुआओं से फैली कीर्ति
हजरत मखदूम अली माहिमी मेमोरियल ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीयूट के लाइब्रेरियन नूर परकार बाबा के कई चमत्कार बताते हैं। उनके अनुसार मां की दुआओं में बहुत ताकत होती है। एक बार माहिमी की माता जी रात में पानी मांगी, जब वे पानी लेकर गए, तब उनकी आंख लग गई थी। जब वे सुबह उठी, तो माहिमी को गिलास का पानी लेकर खड़े देखा, तब उनसे पूछा कि कब से पानी लेकर खड़े हो। माहिमी ने बताया कि जब उन्होंने पानी मांगी थी, तब से पानी लेकर खड़ा हूं। इसके बाद उनकी माता ने माहिमी को बहुत दुआएं दी, जिसके चलते आज दुनियाभर में माहिमी का कीर्ति हुआ। परकार के अनुसार ऐसे तमाम किस्से है, जो किसी अजूबे से कम नहीं है। यह किस्सा भी प्रचलित है कि अगर किसी को ऊपरी हवाओं ने घेर रखा है, तो मजार पर मत्था टेकने और पीछे के रास्ते बाहर निकले से बुरी आत्माओं से पीछा छूट जाता है।
दरगाह पर पुलिस वालों की विशेष श्रद्धा
माहिम दरगाह पर हर साल 10 दिन का मेला लगता है। इसमें देशभर से श्रद्धालु आते हैं। माहिम दरगाह पर पुलिस वालों की असीम श्रद्धा है। यही वजह है कि मेले में सबसे पहले मुंबई पुलिस दरगाह पर चादर चढ़ाती है। परकार इसके पीछे कई वजह बताते हैं। उनके अनुसार जब पहले समुद्री रास्ते से कोई जहाज आती थी, उसे कहकर बाबा पुलिस को बता देते थे कि कौन से जहाज में मॉल है और किसमें नहीं है। बाद में अंग्रेजी शासनकाल में पुलिसकर्मी किसी मुजरिम को नहीं पकड़ पकड़ पाए, तो वे बाबा से उसे पकड़वाने की मन्नत मांग बैठे और वह पूरी हो गई। तबसे पुलिस वाले माहिम के बाबा को अपना मददगार मानते हैं। दरगाह की देखभाल के लिए पीर मखदूम साहेब चेरिटेबल ट्रस्ट बना हुआ है, जिसके चेयरपर्सन मोहम्मद फारुख सुलेमान दरवेश और मोहम्मद सुहैल याकूब खांडवानी मैनेजिंग ट्रस्टी है। यह ट्रस्ट शिक्षा, चिकित्सा आदि में कार्य कर रही है।