शिव की तपोस्थली मणिकर्ण – कुल्लू (हिमाचल प्रदेश) में श्री गुरु नानक देव जी का भी आना हुआ था। वह दुखियों के दर्द मोह माया में फंसे माया प्राप्ति के चक्र में फंसे संसारियों को प्रभु सिमरण का संदेश देते हुए इस देवभूमि में आए, उन्हीं की इस यात्रा को समर्पित यहां ऐतिहासिक गुरुद्वारा का निर्माण सच्चखंड वासी संत बाबा नारायण हरि जी के प्रयत्नों से हुआ।
आज यहां सात मंजिलों वाला सुंदर गुरुद्वारा पार्वती नदी के तट पर शोभायमान है। यहां 28 अप्रैल से 4 मई तक वार्षिक समारोह श्रद्धापूर्वक हो रहा है। 28 अप्रैल से 4 मई तक दीवान सजेंगे। श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के साप्ताहिक पाठों की चल रही लड़ी के अनुसार 28 अप्रैल को इसका आरंभ होगा तथा समाप्ति 4 मई को होगी। इसी प्रकार अंगीठा साहिब पर 1 मई को पाठ आरंभ होगा तथा 3 मई को समाप्ति होगी। 4 मई को रैण सबाई कीर्तन 5 मई को प्रात: सम्पन्न होगा।
यह तीर्थ प्राकृतिक वातावरण में शोभायमान है यहां गुरु द्वारा साहिब के साथ शिव जी का विशाल मंदिर सुशोभित है जहां उबलते पानी का चश्मा है जिसमें गुरुद्वारा का लंगर आदि तैयार होता है। यात्री उबलते पानी की चाय, कॉफी बना कर आनंद लेते हैं। बहुत से श्रद्धालु चावल, चने, पोटलियों में उबाल कर भोले शंकर के चमत्कार की सराहना करते हैं। यहां साथ ही हरिहर घाट सरोवर है जिसमें श्रद्धालु स्नान कर अपने जीवन को सफल बनाते हैं। यहां लंगर, चाय, बिस्तरों, कमरों की पूरी व्यवस्था है, कुछ ही दूरी पर भगवान श्रीराम जी का रघुनाथ मंदिर है। यहां भी हर प्रकार की सुख-सुविधा उपलब्ध है।