मध्यप्रदेश के छतरपुर ज़िले में मतंगेश्वर महादेव मंदिर है, जहां शिवलिंग 9 फीट जमीन के अंदर और फीट ही ज़मीन के बाहर भी है। कहा जाता है कि इस भव्य मंदिर को 920 ई. में चंदेला राजा हर्षवर्मन ने बनवाया था। यहां के लोगों के मानें तो खजुराहो के पुरातत्व मंदिरों में यह एकलौता ऐसा मंदिर है, जिसमें अब भी पूजा-पाठ होता है। मंदिर के पुजारियों का कहना है कि हर साल कार्तिक माह की शरद पूर्णिमा के दिन यहां स्थापित शिवलिंग का आकार एक तिल के बराबर बढ़ जाती है।
इस मंदिर से जुड़ी एक पौराणिक कथा के अनुसार भगवान शंकर ने एक मरकत नामक मणि युधिष्ठिर को दी थी। युधिष्ठिर के बाद ये मणि मतंग ऋषि को मिली, जिसे उन्होंने राजा हर्षवर्मन को सौंप दिया। कहा जाता है कि ये मणि इस शिवलिंग में इस मणि को गाड़ दिया गया था। जिस कारण इस मंदिर का नाम मंतगेश्वर महादेव रखा गया। बता दें कि खजुराहो में मंतगेश्वर की बहुत महत्ता है, यहां लोग इनकी पूजा किए बिना किसी भी प्रकार का कोई शुभ कार्य नहीं करते।
खजुराहो के मंदिरों में पवित्रतम माना जाने वाले, इस मंदिर की वर्तमान में भी पूजा- अर्चना की जाती है। यह अलग बात है कि यह मंदिर इतिहास का भाग है, लेकिन यह आज भी हमारे जीवन से जुड़ा हुआ है। लक्ष्मण मंदिर के पास ही, निर्मित यह मंदिर ३५’ का वर्गाकार है। गर्भगृह भी चौरस है। इसका प्रवेश द्वार पूर्वी ओर है। यह मंदिर अधिक अलंकृत नहीं है। सादा- सा दिखाई देने वाले इस मंदिर का शिखर बहुमंजिला है। इसका निर्माणकाल ९५०- १००२ ई. सन् के बीच का है। इसके गर्भगृह में वृहदाकार का शिवलिंग है, जो ८’ ४ ऊँचा है और ३’८ घेरे वाला है। इस शिवलिंग को मृत्युंजय महादेव के नाम से जाना जाता है।
त्रिरथ प्रकृति का यह मंदिर भद्र छज्जों वाला है। इसकी छत बहुमंजिली तथा पिरामिड आकार की है। इसकी कुर्सी इतनी ऊँची है कि अधिष्ठान तक आने के लिए अनेक सीढियां चढ़नी पड़ती है। मंदिर खार- पत्थर से बनाया गया है। भद्रों पर सुंदर रथिकाएँ हैं और उनके ऊपरी भाग पर उद्गम है। इसका कक्षासन्न भी बड़ा है। इसके अंदर देव प्रतिमाएँ भी कम संख्या में है।
गर्भगृह सभाकक्ष में वतायन छज्जों से युक्त है। इसका कक्ष वर्गाकार है। मध्य बंध अत्यंत सादा, मगर विशेष है। इसकी ऊँचाई को सादी पट्टियों से तीन भागों में बांटा गया है। स्तंभों का ऊपरी भाग कहीं- कहीं बेलबूटों से सजाया गया है। वितान भीतर से गोलाकार है। यह एक मात्र मंदिर है, जिसका आकार लगातार पूजा- अर्चना सदियों से चली आ रही है। अतः इस मंदिर का धार्मिक महत्व अक्षुण्ण है।