जयपुर से लगभग 80 किलोमीटर दूर मेंहदीपुर कस्बे में बालाजी का एक अतिप्रसिद्ध तथा प्रख्यात मन्दिर है जिसे श्री मेंहदीपुर बालाजी मन्दिर के नाम से जाना जाता है। जहां बालाजी उत्तरमुखी होकर विराजमान हैं। भूत-प्रेतादि ऊपरी बाधाओं के निवारणार्थ यहां आने वालों का वर्षभर तांता लगा रहता है। लोगों में ऐसा विश्वास है कि तंत्र-मंत्र, ऊपरी शक्तियों से ग्रसित व्यक्ति भी यहां पर बिना दवा और तंत्र-मंत्र के स्वस्थ होकर लौटता है।
मेंहदीपुर बालाजी की भौगोलिक स्थिती की वास्तुनुकूलताओं के कारण ही यह पवित्र स्थान भूत-प्रेत बाधाओं के निवारण के लिए प्रसिद्ध हो गया है, जो इस प्रकार है –
मेंहदीपुर बाला जी को घाटे वाले बाबा जी भी कहा जाता है। इस मन्दिर में स्थित बजरंगबली की बालरूप मूर्ति किसी कलाकार ने नहीं बनाई, बल्कि यह स्वयंभू है। यह मूर्ति पहाड़ के अखण्ड भाग के रुप में मन्दिर की पिछली दीवार का कार्य भी करती है। इस मूर्ति को प्रधान मानते हुए बाकी मन्दिर का निर्माण कराया गया है। इस मूर्ति के सीने के बांईं तरफ एक अत्यन्त सूक्ष्म छिद्र है, जिससे पवित्र जल की धारा निरन्तर बह रही है। यह जल बालाजी के चरणों तले स्थित एक कुण्ड में एकत्रित होता रहता है, जिसे भक्तजन चरणामृत के रुप में अपने साथ ले जाते हैं।
बालाजी में मुख्य रुप से तीन दरबार है। मन्दिर में प्रवेश करते ही पहला बालाजी (हनुमान जी) का दरबार है, फिर दांईं तरफ दूसरा भैरव जी का दरबार और फिर सीढि़यों से ऊपर जाकर बालाजी के मूर्ति के ठीक पीछे तीसरा प्रेतराज सरकार का दरबार है। प्रेतराज सरकार का दरबार पहाड़ी के कारण लगभग 15 फीट ऊंचाई पर है। इस प्रकार मन्दिर में दक्षिण से उत्तर दिशा की ओर पहाड़ी के ढ़लान पर यह तीनों दरबार बने हैं और बालाजी के चरणों तले स्थित कुण्ड भी उत्तर दिशा में स्थित है। उत्तर दिशा की नीचाई की यह सभी वास्तुनुकूलताएं मन्दिर को प्रसिद्धि दिलाने में सहायक हो रही हैं।
मन्दिर परिसर के उत्तर ईशान में जहां पीपल का पेड़ है। इस पेड़ के कारण परिसर का उत्तर ईशान थोड़ा आगे बढ़ गया है इसी प्रकार दर्शन करने के लिए मन्दिर के आगे रैलिंग इस प्रकार लगी है, जिससे मन्दिर की उत्तर दिशा भी बढ़ गई है। परिसर को उत्तर ईशान का मार्ग प्रहार भी है। यह सभी उत्तर दिशा की वास्तुनुकूलता से मिलने वाली प्रसिद्धि को और अधिक बढ़ाने में बूस्टर की तरह काम कर रहे हैं।
प्रेतराज दरबार में जाने का रास्ता उत्तर ईशान से और बाहर निकलने का रास्ता दक्षिण नैऋत्य से है जहां से भक्तगण पूर्व से चलकर प्रसादीगृह के पीछे से होते हुए पश्चिम दिशा की ओर चलकर सड़क पर बाहर निकल जाते हैं। बाहर निकलने का यह रास्ता भी पूर्व दिशा से पश्चिम दिशा की ओर ढलान लिए हुए है और प्रसादी गृह इस रास्ते से नीचा बना है। मन्दिर की यह वास्तुनुकूल भौगोलिक स्थिति भक्तों की आस्था बढ़ाने में सहायक हो रही है।
इस पहाड़ी की भौगोलिक स्थिति के कारण बालाजी की मूर्ति की पूर्व दिशा एवं ईशान कोण में पुजारी जी का निवास स्थान है, जिसके फर्श का लेवल मन्दिर के फर्श से नीचा है और निवास के बाद पूर्व दिशा स्थित गली भी पश्चिम दिशा की तुलना में बहुत नीची है। वास्तुशास्त्र के अनुसार इस तरह की भौगोलिक स्थिती सिद्धि एवं विजय दिलाने वाली होती है। इसी कारण भारत के कोने-कोने से भूत-प्रेतादि ऊपरी बाधाओं से परेशान भक्तगण मेंहदीपुर बालाजी मन्दिर में अपने कष्टों के निवारण हेतु आते हैं।