कहा जाता है कि मंदिर का निर्माम लगभग 11 सौ वर्ष पूर्व हुआ था। मंदिर के अंदरूनी भाग में श्री यंत्र की अनोखी संरचना है। यहां की विशेष बात यह है कि आज भी सूर्य की पहली किरण मां लक्ष्मी के चरणों में पड़ती है। कहा जाता है कि प्रतिदिन प्रतिमा का रंग तीन बार परिवर्तित होता है। प्रात: काल में प्रतिमा का रंग सफेद, दोपहर में पीला और शाम को नीला हो जाता है। मंदिर में प्रत्येक शुक्रवार को भक्तों की भीड़ रकती है। दीवाली के दिन तो भक्तों का तांता लगा रहता है। कहा जाता है कि सात शुक्रवार यहां मां लक्ष्मी के दर्शन करने से प्रत्येक मनोकामना पूर्ण हो जाती है।
दीवाली पर मां लक्ष्मी का विशेष पूजन होता है। उनका विशेष अभिषेक होता है। दीवाली की रात मंदिर के कपाट पूरी रात खुले रहते हैं। लोग दूर-दूर से यहां दीपक प्रज्वलित करने आते हैं।