विगत दिनों नेपाल में आए भूकम्प में उतनी ही तबाही मची थी जितनी जून 2013 में उत्तराखंड में बाढ़ से मची थी। जैसे केदारनाथ मंदिर अपने आसपास के सब भवन ध्वस्त होने के बाद भी खड़ा रहा था उसी तरह पशुपतिनाथ मंदिर भी उन ध्वस्त भवनों के बीचों-बीच मामूली क्षति के खड़ा है। केदारनाथ तथा पशुपतिनाथ दोनों भगवान शिव से संबंधित प्रमुख मंदिर हैं जो पर्वतीय क्षेत्रों में स्थित हैं। भगवान शिव इस ब्रह्मांड के रचयिता भी हैं और संहारक भी। धार्मिक विशेषज्ञ इस चमत्कारिक संयोग पर आश्चर्यचकित हैं।
बोरीवली के आध्यात्मिक गुरु मुकेश त्रिवेदी का कहना है कि केदारनाथ तथा पशुपतिनाथ इतनी सदियों बाद तक भी इसलिए खड़े हैं क्योंकि उनकी संरचना वैज्ञानिक आधार पर की गई है। वह कहते हैं, “हमारे पूर्वजों ने मंदिरों का खाका बड़ी-बड़ी चारदीवारियों के साथ तैयार किया था ताकि मुख्य मंदिर के आसपास कुछ गज का क्षेत्र बाधा रहित रह सके। आज यहां पर अतिक्रमण करके नए भवन बनाए गए हैं जिसमें वातावरण के संतुलन का बिल्कुल भी ख्याल नहीं रखा गया।”
बिरला मंदिर – नई दिल्ली के आचार्य अवधेश कुमार पांडे कहते हैं, “प्राकृतिक आपदाएं लंबे समय से मनुष्य को सोचने पर मजबूर कर रही हैं। यह काफी आश्चर्य की बात है कि केदारनाथ तथा पशुपतिनाथ दोनों मंदिर प्राकृतिक आपदाओं के बावजूद बिना किसी क्षति के खड़े हैं। इसके पीछे इनका निर्माण एक बहुत बड़ा कारण है। इन दिनों बड़े-बड़े ट्रस्ट वृहदाकार मंदिरों का निर्माण करते हैं और उनमें दान-पात्र रख देते हैं ताकि धन इकट्ठा किया जा सके। यह देखकर काफी धक्का लगता है कि कई बार देव प्रतिमा को बिना प्राण-प्रतिष्ठा के स्थापित किया जाता है। कई लोग तो मंदिरों में प्रवेश के लिए टिकटें भी बेचते हैं और वहां रहने इत्यादि के लिए पैसे लेते हैं। प्राचीन काल में ऐसे न्यास हुआ करते थे जो बड़ी श्रद्धा के साथ धार्मिक गुरुओं का स्वागत किया करते थे। उनके लिए लंगर का प्रबंध करते थे और उन मंदिरों में आने वाले श्रद्धालुओं के लिए धर्मशालाएं बनाया करते थे। अब लोग मंदिर से एकत्रित किए गए धन से फैक्टरियां बनाते हैं।”
मुंंबई के बाबुल नाथ मंदिर के प्रवक्ता रमेश गांधी कहते हैं, “केदारनाथ तथा पशुपतिनाथ अखंड हैं क्योंकि ये दोनों भगवान शिव के पवित्र तीर्थस्थल तथा पीठ हैं।”
मुकेश भाई कहते हैं, “धार्मिक स्थलों को पिकनिक स्पॉट्स के तौर पर नहीं देखा जा सकता। अत्यधिक पर्यटन तथा व्यापारीकरण के कारण मंदिरों वाले इन नगरों की शांति को खतरा है। चट्टानी भूमि पर सड़कें तथा धर्मशालाएं बनाई गई हैं। प्राकृतिक आपदा के कुछ ही महीनों के भीतर इन मंदिरों को पुन: खोलने की बजाय सरकार को चाहिए कि वह पर्यटकों को नियंत्रित करे और ऑनलाइन दर्शन करने की व्यवस्था करे।”