पीतलखोड़ा में अजंता के समय की गुफाएं हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि 5वीं ईस्वी में वकाटका शासन के काफी समय बाद ये दिखाई दी होंगी। हीनयान बौद्ध धर्म के समय इनके पूजा स्थलों पर बौद्ध और बोधिसत्व की कोई मूर्त नहीं थी और न ही पीतलखोड़ा की गुफा नंबर 3 में चित्रकारी के अलावा और कुछ भी नहीं दिखाई देता था। कई सारी गुफाओं की चित्रकला खराब हो चुकी है और कुछ चित्रकारी को लोगों ने तोड़ दिया है। अधिकतर गुफाएं और पेंटिंग्स या तो मौसम की मार से खराब हो गई हैं या फिर लोगों ने इन्हें तोड़ दिया है। बौद्ध धर्म के हीनयान के समय में ये गुफाएं देखने को मिलीं जोकि पश्चिमी भारत के बौद्ध मंदिरों में आज भी देखने को मिलती हैं।
इन गुफाओं को दो भागों में बांटा गया है। 1 से 9 गुफाएं उत्तर-पूर्व दिशा की ओर हैं जो एक-दूसरे से सटी हुई हैं। इन्हें पहले समूह में रखा गया है। पहाड़ी के दूसरी तरफ 10 से 14 गुफाएं हैं। इन गुफाओं का मुख दक्षिण की ओर है और इन्हें दूसरे समूह में रखा गया है। कई गुफाएं या तो जीर्ण-शीर्ण हो गई हैं या फिर क्षतिग्रस्त कर दी गई हैं। गुफा 1 बहुत बड़ा विहार नजर आता है। गुफा 2, 3 और 4 में इसी तरह के प्रांगण हैं जिसे ऐसा माना जाता है कि ये भी इसी काल के समय में रहे होंगे। गुफा 2 और 3 के बीच स्थित दीवार अब नष्ट हो गई है। गुफा 2 एक विहार है जिसमें पहाड़ी को काटकर नालियां बनाई गई हैं जो पानी के बहाव को गुफा 3 में जाने से रोकती हैं। गुफा 3 में पूजा होती थी। गुफा 3 में बेहतरीन चित्रकारी है जो कि दीवारों और पिलरों पर बनी हुई हैं। हॉल के अलावा गलियारा बनाने के लिए 37 पिलरों की सहायता ली गई है। प्रत्येक गलियारे के 10वें और 11वें पिलर को अभिलेख के लिए समर्पित किया गया है। जिन्होंने इन दोनों पिलरों को भेंट किया वे पैठाण के ही रहने वाले थे। नीचे बेसमैंट में चलें तो यहां नक्काशी की कई कलाएं देखने को मिल जाती हैं।
गुफा 4 में कई सारी छोटी गुफाएं हैं जिनमें हाथी और घोड़ों की नक्काशी है। साथ ही दान-दाताओं के अभिलेख भी यहां देखने को मिल जाते हैं। इनके अलावा एक अन्य पहाड़ी पर राज कुमार के तौर पर बुद्ध को दर्शाया गया है जो अपना राजमहल त्याग रहे हैं। बुद्ध के जीवन का यह एकमात्र दृश्य है जो पीतलखोड़ा में पाया गया है।
क्षतिग्रस्त गुफा संख्या 5 एक विहार है जिसकी चट्टानों पर व्यापारियों की दान दी हुई चीजों के नाम उकेरित हैं। गुफा 6, 7 और 8 भी विहार हैं। गुफा 6 में दीवारों पर पेंटिंग के कुछ निशान देखे जा सकते हैं। 7 और 8 में पत्थरों को काट कर बनाया जा रहा एक अधूरा हौज है। गुफा 9 विहार का विस्तार है और इसमें पेंटिंग तथा प्लास्टर के अवशेष हैं। पहाड़ी के दूसरी ओर गुफा संख्या 10 से 14 मौजूद हैं जिनमें पूजास्थल बनाए गए हैं और इनमें स्तूप रखे गए हैं। गुफा 11 में कई स्तूप हैं जो अलग-अलग समय पर खुदाई के दौरान मिली थीं। गुफा 13 और 14 का प्रांगण एक ही है और यहां बेहद खूबसूरत नक्काशीयुक्त मूर्तियां हैं लेकिन ये टूट चुके हैं। शहर से बहुत दूर होने के कारण पीतलखोड़ा में बहुत कम लोग इन गुफाओं को देखने आते हैं।
कैसे पहुंचे पीतलखोरा की गुफाओं तक?
अजंता से 78 किलोमीटर दूर पीतलखोड़ा बसा है। यहां टैक्सी के जरिए पहुंचा जा सकता है। पहाड़ी पर पैदल ही चढ़ा जा सकता है। ट्रेन से यहां पहुंचने के लिए मुम्बई-चालीसगांव के लिए रात को चलने वाली ट्रेन है। इसके बाद बस से प्राचीन पाटन देवी मंदिर पहुंचा जा सकता है। थोड़ी दूर जाने के बाद पहाड़ी रास्ता शुरू हो जाता है। इसके अलावा आप चालीसगांव से भामरवादी के लिए बस ले सकते हैं। इसके बाद गुफा सिर्फ नौ किलोमीटर दूर रह जाती है।
क्या देखें पीतलखोरा की गुफाओं में?
अजंता-एलोरा, घृष्णेश्वर ज्योर्तिलिंग, बीवी का मकबरा और औरंगाबाद। पीतलखोड़ा में अजंता के समय की गुफाएं हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि 5वीं ईस्वी में वकाटका शासन के काफी समय बाद ये दिखाई दी होंगी। हीनयान बौद्ध धर्म के समय इनके पूजा स्थलों पर बौद्ध और बोधिसत्व की कोई मूर्ति नहीं थी और न ही पीतलखोड़ा की गुफा नंबर 3 में चित्रकारी के अलावा और कुछ भी नहीं दिखाई देता था।