पोरुवाझी पेरूविरुथी मलानादा: दुर्योधन मंदिर, पोरुवाझी गांव, कोल्लम, केरल

पोरुवाझी पेरूविरुथी मलानादा: दुर्योधन मंदिर, पोरुवाझी गांव, कोल्लम, केरल

महाभारत का दुर्योधन सरकार को देता है जमीन का टैक्स, उसके नाम पर है इलाके की भूमि: केरल में है भव्य मंदिर, ‘सौम्य’ देवता के लिए चढ़ता है ताड़ी

कोल्लम और आसपास के लोग दुर्योधन को सौम्य एवं दयालु देवता मानते हैं। उनका मानना है कि दुर्योधन आज भी उनकी रक्षा करता है। इसलिए गाँव के लोग उसे ‘अप्पूपा’ (दादा) कहकर बुलाते हैं। प्राचीन मान्यताओं के अनुसार, मंदिर और उसके आसपास की जमीन दुर्योधन की है। वहीं, दुर्योधन हर साल भारत सरकार को टैक्स चुकाता है।

पोरुवाझी पेरूविरुथी मलानादा

केरल के कोल्लम जिले के एक गाँव में महाभारत के खलनायक दुर्योधन का अनोखा मंदिर है। स्थानीय लोग दुर्योधन को अपना रक्षक मानकर पूजा करते हैं और उसे प्यार से ‘दादा’ कहकर बुलाते हैं। इतना ही नहीं, इस मंदिर द्वारा दुर्योधन के नाम से भारत सरकार को टैक्स भी दिया जाता है। माना जाता है कि दुर्योधन को समर्पित यह भारत का एकमात्र मंदिर है।

Name: पोरुवाझी पेरुविरुथी मलानाडा मंदिर [Poruvazhy Peruviruthy Malanada Temple]
Location: Peruviruthi Malanada Temple, Poruvazhy, Kollam, Kerala, India
Affiliation: Hinduism
Diety: Duryodhana
Celebration: Malakkuda Maholsvam, Pallipana
Type: Kerala Traditional
The creator: Poruvazhi Peruviruthi Malanada Devaswom

यह मंदिर कोल्लम जिले के पोरुवाझी गाँव में स्थित है। सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार, इस मंदिर की जमीन के लिए दुर्योधन के नाम से टैक्स भी भरा जाता है। यह टैक्स मंदिर की आय पर नहीं लगाया जाता है, क्योंकि देश में मंदिर की आय पर कर नहीं लगता है। यह कर मंदिर के नाम पर गाँव और उसके आसपास स्थित 15 एकड़ जमीन पर लगाया जाता है।

एक स्थानीय अधिकारी के मुताबिक, “जब मंदिर के लिए पट्टयम जारी किया गया तो यह जमीन मंदिर के देवता के नाम पर पंजीकृत थी। सर्वे में जमीन का स्वामित्व दुर्योधन के नाम पर है। जब से केरल में करों की शुरुआत हुई, तब से इस मंदिर की जमीनों का कर दुर्योधन के नाम पर चुकाया जाता है।” मंदिर समिति के सचिव के अनुसार, 15 एकड़ जमीन में 8 एकड़ धान का खेत है, बाकी वन भूमि है।

स्थानीय लोगों की मान्यता है कि अपनी यात्रा के दौरान दुर्योधन इस गाँव में रूका था। उसे प्यास लगी थी, लेकिन पानी नहीं मिल रहा था। उसी दौरान एक दलित महिला ने उन्हें ताड़ी (देशी मद्य) पिलाई। दुर्योधन ने खुशी-खुशी ताड़ी पी ली। इसके बाद दुर्योधन ने महिला और उसके गाँव को आशीर्वाद दिया। साथ ही दुर्योधन ने गाँव वालों को जमीनें भी दान में दीं।

दुर्योधन के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए ग्रामीणों ने उनका मंदिर बनवा दिया। दुर्योधन के इस मंदिर का नाम ‘पेरिविरुथी मलानाडा’ है। इस मंदिर की खास बात ये है कि यहाँ दुर्योधन की मूर्ति नहीं है, बल्कि उसके शस्त्र गदा की पूजा की जाती है। साथ यहाँ ताड़ी एवं अन्य नशीले पदार्थों का भोग लगता है। प्रसाद के रूप में ताड़ी बाँटा जाता है। लोगों का कहना है कि इससे देवता प्रसन्न रहते हैं।

कोल्लम और आसपास के लोग दुर्योधन को सौम्य एवं दयालु देवता मानते हैं। उनका मानना है कि दुर्योधन आज भी उनकी रक्षा करता है। इसलिए गाँव के लोग उसे ‘अप्पूपा’ (दादा) कहकर बुलाते हैं। प्राचीन मान्यताओं के अनुसार, मंदिर और उसके आसपास की जमीन दुर्योधन की है। वहीं, दुर्योधन हर साल भारत सरकार को टैक्स चुकाता है।

कोल्लम: केरल के कोल्लम जिले के एक गांव में दुर्योधन का एक अनोखा मंदिर है। महाभारत के खलनायक को समर्पित यह मंदिर अपनी तरह का एकमात्र मंदिर है। हैरानी की बात यह है कि सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार, इस मंदिर की जमीन के लिए दुर्योधन के नाम पर टैक्स भी भरा जाता है। स्थानीय मान्यता के अनुसार, अपनी यात्रा के दौरान दुर्योधन इस गांव में रुके थे। उन्हें प्यास लगी थी, लेकिन पानी नहीं मिल रहा था। तभी एक दलित महिला ने उन्हें ताड़ी पिलाई। दुर्योधन ने खुशी-खुशी ताड़ी पी और उस महिला और उसके गांव को आशीर्वाद दिया। उन्होंने गांव वालों को जमीन भी दान में दी। दुर्योधन के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए ग्रामीणों ने उनका मंदिर बनवाया।

दुर्योधन के ङतिया की होती है पूजा

इस मंदिर की सबसे खास बात ये हैं कि यहां दुर्योधन की कोई मूर्ति नहीं है, बल्कि उनके हथियार गदा की पूजा की जाती है। मंदिर में रोजाना दुर्योधन को ताड़ी का भोग लगाया जाता है। महाभारत में दुर्योधन को एक खलनायक के रूप में चित्रित किया गया है, लेकिन इस गांव में उन्हें एक दयालु और रक्षक देवता के रूप में पूजा जाता है। ग्रामीण उन्हें प्यार से ‘अपूपा’ (दादाजी) कहकर बुलाते हैं।

क्यों लगाया जाता है ताड़ी का भोग

मंदिर के पुजारी का कहना है कि जब मंदिर के लिए पट्टायम जारी किया गया था, तो जमीन देवता के नाम पर पंजीकृत की गई थी। थंडापर (भूमि विलेख) संख्या और सर्वेक्षण विवरण से पता चलता है कि जमीन दुर्योधन के स्वामित्व में है। जब से केरल में कर लागू हुआ है, तब से यह भू-कर दुर्योधन के नाम पर अदा किया जा रहा है। मंदिर समिति के सचिव राजनीश आर. ने बताया कि मंदिर की 15 एकड़ जमीन में से आठ एकड़ में धान की खेती होती है और बाकी जंगल है। दुर्योधन को ताड़ी का भोग लगाने के पीछे ग्रामीणों का अपना तर्क है। उनका कहना है कि ताड़ी पीने से देवता प्रसन्न रहते हैं। यह मंदिर अपनी तरह का एक अनोखा उदाहरण है कि कैसे अलग-अलग संस्कृतियां एक ही देवता की अलग-अलग व्याख्या कर सकती हैं।

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