पुष्कर सरोवर का फैलाव उत्तर दिशा में उत्तर ईशान तक बढ़ाव लिए हुए है, साथ ही सरोवर गहराई भी उत्तर एवं उत्तर ईशान में अन्य दिशाओं की तुलना में ज्यादा है। पुष्कर सरोवर की उत्तर दिशा स्थित यह बढ़ाव और गहराई हिमालय स्थित मानसरोवर झील की तरह ही है। इसी वास्तुनुकूलता के कारण पुष्कर सरोवर मानसरोवर झील की तरह ही प्रसिद्ध है। जहां हर हिन्दू जीवन में एक बार स्नान करने की कामना रखता है।
पुष्कर सरोवर की उत्तर दिशा में ही घाट समाप्त होने के बाद सड़क के दूसरी तरफ कई नर्सरी हैं जो 8 से 10 फीट गहराई लिए हुए हैं। कई वर्षों पूर्व तक इन नर्सरी में आस-पास की पहाड़ियों का पानी इकट्ठा होता था परन्तु पिछले कुछ वर्षों में नर्सरियों में मिट्टी डालकर भराव कर दिया गया है और उन पर पक्के घर बना दिए गए हैं, किन्तु अभी भी कुछ स्थानों पर यह गहराई देखने को मिलती है। उत्तर दिशा की नर्सरियां भी पुष्कर की प्रसिद्धि बढ़ाने में विशेष सहायक रही हैं।
वास्तुशास्त्र के सिद्धांत अनुसार उत्तर दिशा की नीचाई प्रसिद्धि दिलवाती है और यदि यहां बढ़ाव भी हो तो वह जगह और अधिक प्रसिद्ध हो जाता है। दुनिया में सातों आश्चर्य सहित जितने भी प्रसिद्ध स्थान हैं, उन सभी की उत्तर दिशा में किसी न किसी तरह की नीचाई अवश्य देखने को मिलती है।
धार्मिक मान्यता के अनुसार पुष्कर की स्थापना ब्रह्माजी द्वारा हुई है। अतः यहां ब्रह्मा जी के मंदिर का विशेष महत्त्व है। ब्रह्मा जी का मंदिर पुष्कर सरोवर से थोड़ी दूरी पर पश्चिम दिशा में स्थित है। इसमें प्रवेश करने के लिए संगमरमर निर्मित लगभग 50-60 सीढि़यां चढ़नी पड़ती हैं। मंदिर के प्रांगण में दाहिनी ओर तथा बांई ओर संगमरमर के दो सुन्दर गजराजों पर इंद्र और कुबेर की प्रतिमाएं हैं।
आगे पढ़िए …
प्राचीन एवं प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थ पुष्कर का पवित्र सरोवर अजमेर से 11 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम की ओर 1539 फीट ऊंचाई पर स्थित है। अजमेर और पुष्कर के बीच नाग पहाड़ हैं जो दोनों के बीच सीमा रेखा का काम करता है। यहां पहाड़ी चट्टानों की संकीर्ण घाटी में पुष्कर की पवित्र झील स्थित है जहां अनन्तकाल से प्रतिवर्ष लाखों हिन्दू यात्रा के लिए आते हैं।
इस स्थान का नाम पुष्करराज है, जिसका अर्थ यह हुआ कि यह तीर्थ समस्त तीर्थों का राजा है। भारत के प्रसिद्ध चारों धाम बद्रीनाथ, जगन्नाथपुरी, रामेश्वरम् एवं द्वारिकापुरी के दर्शन का फल तब तक अपूर्ण रहता है जब तक पुष्कर में स्नान न कर लिया जाए। जगत् पिता ब्रह्माजी का एकमात्र मंदिर पुष्कर में ही है। कहते हैं कि, ब्रह्माजी ने यहां हजारों साल तपस्या की थी।
पुष्कर में 52 घाट हैं हालांकि इनमें उल्लेखनीय घाटों की संख्या 15 ही है। हिन्दू मान्यता है कि पुष्कर में स्नान करने से सारे पाप धुल जाते हैं। यहां वर्ष भर आने वाले तीर्थयात्रियों के साथ-साथ भारी तादाद में देशी-विदेशी सैलानी भी घूमने एवं दर्शनों के लिए आते हैं। प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा (अक्टूबर-नवम्बर) में यहां 10 दिनों तक मेला भी लगता है।