भारत के प्रसिद्ध चारधामों में से एक धाम रामेश्वरम् है, जिसकी गिनती प्रसिद्धि 12 ज्योतिर्लिंगों में भी होती है। जिस प्रकार उत्तर भारत में हिन्दुओं का पवित्र तीर्थ काशी है, उसी प्रकार दक्षिण भारत में रामेश्वरम् है। यहां भगवान् श्रीराम ने लंका पर आक्रमण करने से पहले शिवलिंग की स्थापना कर उसकी पूजा की थी। इस स्थान की महिमा का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब तक भक्त रामेश्वरम की पूजा और धनुष्कोटीया सेतु में स्नान न करें तब तक काशी की यात्रा पूरी नहीं होती है, ऐसा माना जाता है। इस स्थान को रामेश्वर, रामलिंग, रामनाथ जी जैसे कई नामों से पुकारा जाता है। मंदिर की इस ख्याति में मंदिर परिसर की भौगोलिक स्थिति एवं बनावट की अहम् भूमिका है।
51.8 वर्ग किमी क्षेत्रफल वाला शंखरूपी रामेश्वरम् एक छोटा द्वीप है, जो कि भारत की भूमि से कुछ अलग होकर समुद्र के बीच है। ज्योतिर्लिंग रामेश्वरम् इसी द्वीप पर स्थित है। इस मंदिर का गलियारा विश्व का दीर्घतम गलियारा है, जिसकी लम्बाई 1220 मीटर है। छत, स्तम्भों की नक्काशी अत्यन्त सुन्दर है। यहां बनी मूर्तिंयों को बड़े-बड़े ग्रेनाइट पत्थरों को तराश कर बनाया गया है, जिन पर नक्काशी के मनोहर काम किए गये हैं। मंदिर की चारों दिशाओं में सड़क है और साथ ही तीन दिशाओं पूर्व, पश्चिम और उत्तर दिशा से शुभ मार्ग प्रहार भी है।
मंदिर परिसर में 22 पवित्र-कुण्ड हैं और सभी कुण्डों के पानी का स्वाद अलग-अलग है। किसी कुण्ड का पानी गर्म, किसी का ठण्डा तो किसी का सामान्य है। इन कुण्डों में स्नान से पुण्यार्जन होता है। ज्यादातर कुंए उत्तर दिशा और कुछ ईशान कोण में बने हैं और सबसे बड़े आकार एक सरोवर पश्चिम दिशा में बना हैं, किन्तु दक्षिण दिशा में एक भी कुंआ नहीं है। उत्तर, पूर्व दिशा एवं ईशान कोण में स्थित कुंए इसकी प्रसिद्धि बढ़ा रहे हैं तो पश्चिम दिशा स्थित 7 नम्बर का टैंक माधव तीर्थ भक्तों में धार्मिकता बढ़ाने में सहायक हो रहा है।
भारतीय वास्तुशास्त्र के अनुसार पूर्व दिशा में ऊंचाई होना और पश्चिम दिशा में ढलान व पानी का स्रोत होना अच्छा नहीं माना जाता है परन्तु देखने में आया है कि ज्यादातर वो स्थान जो धार्मिक कारणों से प्रसिद्ध हैं, चाहे वह किसी भी धर्म से संबन्धित हो, उन स्थानों की भौगोलिक स्थिति में काफी समानताएं देखने को मिलती हैं। ऐसे स्थानों पर पूर्व की तुलना में पश्चिम में ढलान होती है और दक्षिण दिशा हमेशा उत्तर दिशा की तुलना में ऊंची रहती है। उदाहरण के लिए वैष्णोदेवी मंदिर जम्मू, पशुपतिनाथ मंदिर मंदसौर इत्यादि। वह घर जहां पश्चिम दिशा में भूमिगत पानी का स्रोत जैसे भूमिगत पानी की टंकी, कुंआ, बोरवेल, इत्यादि होता है। उस भवन में निवास करने वालों में धार्मिकता दूसरों की तुलना में ज्यादा ही होती है।
मंदिर के मध्य भाग में छत से प्राकृतिक रोशनी की अच्छी व्यवस्था है। जहां ज्यादातर मूर्तियां पूर्वमुखी हैं। मुख्य शिवलिंग मंदिर के मध्य में स्थापित है और पार्वती जी का मंदिर पास ही नैऋत्य कोण में है, जिससे नैऋत्य कोण भारी हो रहा है। परिसर के अन्दर ईशान कोण में दक्षिणमुखी हनुमान मंदिर है।
इस मंदिर का फर्श मंदिर के बाकी फर्श से डेढ़ फीट नीचा है। ईशान कोण की इस नीचाई से रामेश्वरम् मंदिर की वास्तुनुकूलता बहुत बढ़ गई है। मंदिर के ईशान कोण के ईशान कोण में भी एक गड्डा है जो इसकी वास्तुनुकूलता को बढ़ाते हुए धनागमन में सहायक रहा है।
मंदिर के पूर्व दिशा के मुख्य प्रवेशद्वार पर सबसे बड़ा 54 मीटर ऊंचा एवं भव्य गोपुरम् है, जिसके सामने पूर्व दिशा में लगभग 100 मीटर की दूरी पर ही समुद्र है। यह वास्तुनुकूलता मंदिर की ओर भक्तों को आकर्षित करने के साथ-साथ मंदिर की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ कर रही है।
उपरोक्त वास्तुनुकूलताओं के कारण भारतीय हिन्दू तीर्थों में रामेश्वरम् का स्थान अन्यतम व अद्वितीय है।