सैकड़ों सालों से गांव में यह परम्परा चली आ रही है। इन लोगों का मानना है कि रावण की कुछ नकारात्मक प्रवृतियों को यदि निकाल दिया जाए तो शेष मानव कल्याण के लिए लाभकारी हैं। रावण की नीतियों को वर्तमान राज्य संचालन के लिए बेहतर बताया जाता है।
क्या हैं धार्मिक मान्यताएं: अष्ठभुजी शिवलिंग एवं रावण अनुसंधान समिति के अध्यक्ष अशोकानन्द महाराज का कहना है कि बिसरख रावण के पिता विश्रवा ऋषि का गांव था। उन्हीं के नाम पर गांव का नाम बिसख पड़ा। वह यहां पर पूजा अर्चना करते थे। रावण का भी जन्म यहीं हुआ था। उन्होंने बताया कि हिन्दुस्तान में केवल बिसरख में ही अष्ठभुजीय शिवलिंग है। रावण ने यहीं पर अपनी शिक्षा दिक्षा प्राप्त की थी। हिन्डऩ (प्रचीन नाम हरनन्दी) नदी के मुहाने पर बने गाजियाबाद के पुरा महादेव शिवलिंग, दुधेश्वरनाथ शिवलिंग, तथा बिसरख स्थित शिवलिंग की स्थापना रावण ने ही की थी।
दहन पर अनिष्ट का भय: सदियों से बिसरख में विजयदशमी के अवसर पर रामलीला मंचन तथा रावण दहन नहीं किया गया है। रावण दहा को यहां पर अनिष्ट का प्रतीक माना जाता है। अशोकानन्द महाराज बताते हैं कि गांव में लगभग 60 साल पूर्व रामलीला मंचन का प्रयास किया गया। इस दौरान गांव में एक व्यक्ति की मौत हो गई।
कुछ साल बाद घटना को महज संयोग समझकर दोबारा रामलीला मंचन कराया गया। इस बार रामलीला के एक पात्र की मौत हो गई तथा गांव में कई स्थानों पर आग की घटनाएं घट गई। ग्रामीण बताते हैं कि जब भी प्राचीन मान्यताओं के खिलाफ रामलीला मंचन तथा रावण दहन का प्रयास किया गया, गांव में कोई न कोई अनिष्ट अवश्य हुआ।