चारधाम यात्रा का रोडमैप

चारधाम यात्रा का रोडमैप

हिमालय स्थित 11वें ज्योतिर्लिंग भगवान केदार और बैकुण्ठ धाम बद्रीनाथ सहित गंगोत्री और यमुनोत्री के कपाट भी श्रद्धालुओं के लिए खुल गए हैं। अक्षय तृतीया के मौके पर शुरू हुई चार धाम यात्रा इस बार पूरे देश में जिज्ञासा की वजह बनी हुई है। दरअसल 2013 में केदारनाथ में आए जलप्रलय के बाद इस यात्रा पर ब्रेक लग गया था। अब राज्य सरकार इस तबाह क्षेत्र में यात्रा को फिर से चलने लायक बना पई है।

कैसे पहुंचे केदारनाथ

उत्तराखण्ड के रूद्रप्रयाग जिले में पड़ने वाले केदारनाथधाम के लिए हरिद्वार से 165 किलोमीटर तक पहले रुद्रप्रयाग या ऋषिकेश आना पड़ता है जो कि चारधाम यात्रा का बेसकैम्प है। इसके बाद ऋषिकेश से गौरीकुण्ड की दूरी 76 किलोमीटर है। यहां से 18 किलोमीटर की दूरी तय करके केदारनाथ के धाम पहुंच सकते हैं। गौरीकुण्ड से जंगलचट्टी 4 किलोमीटर है। उसके बाद रामबाड़ा नामक जगह पड़ती है और फिर अगला पड़ाव पड़ता है लिनचैली। गौरीकुण्ड से यह जगह 11 किलोमीटर दूर है। लिंचैली से लगभग 7 किलोमीटर की पैदल दूरी तय करके केदारनाधाम पहुंचा जाता है। केदारनाथ धाम और लिंचैली के बीच नेहरू पर्वतारोहण संस्थान ने 4 मीटर चौड़ा सीमेंटेड रास्ता बना दिया है, ऐसे में श्रद्धालु अब आसानी से केदारनाथ धाम पहुंच सकते हैं।

कैसे पहुंचे बद्रीनाथ

बद्रीनाथ हाईवे पर कई स्लाइडिंग जोन बाधा बनते रहे हैं। इसमें से जहां सिरोहबगड़ नामक स्लाइडिंग जोन का ट्रीटमेंट सरकार करा रही है और इसके बाधित होने पर इसका बाईपास तैयार किया जा रहा है। वहीं लामबगड़ में टनल के जरिए यात्रा का बाईपास बनाने की बात सरकार कर रही है। इस बार सरकार ने इस स्लाइडिंग जोन के दोनों तरफ सप्लाई के लिए मशीनें तैनात करी हैं। पूरे चारधाम यात्रा में 271 संवेदनशील क्षेत्रों पर भी प्रशासन सावधानी बरतने की बात कह रहा है। बद्रीनाथ तक गाड़ियां जाती हैं, इसलिए यहां मौसम अनुकूल होने पर पैदल नहीं जाना पड़ता। बद्रीनाथधाम को बैकुण्ठ धाम भी कहा जाता है। बैकुण्ठधाम जाने के लिए ऋषिकेश से देवप्रयाग, श्रीनगर, रूद्रप्रयाग, कर्णप्रयाग, चमोली, गोविन्दघाट होते हुए पहुंचा जाता है।

बीच के मंदिर भी खूबसूरत

इन दो धामों की यात्रा के बीच कई अन्य मंदिर भी तीर्थयात्रियों को सुकून देते हैं। इनमें योगबद्री पांडकेश्वर, भविष्यबद्री मंदिर, नृसिंह मंदिर, बासुदेव मंदिर, जोशीमठ, ध्यानबद्री, उरगम जैसे मंदिर बद्रीनाथ यात्रा मार्ग के आसपास पड़ते है। जबकि केदारनाथ यात्रा मार्ग पर विश्वनाथ मंदिर गुप्तकाशी, मदमहेश्वर मंदिर, महाकाली मंदिर कालीमठ, नारायण मंदिर, त्रिगुणी नारायण, तुंगनाथ मंदिर, काली शिला पड़ते हैं। इसके अलावा पांच प्रयागों में से रूद्रप्रयाग, देवप्रयाग केदार मार्ग पर और तीन प्रयाग बद्रीनाथ मार्ग पर क्रमशः कर्णप्रयाग, नंदप्रयाग और विष्णुप्रयाग पड़ते हैं। इसके अलावा धारी देवी सिद्धपीठ बद्रीनाथ-केदारनाथ जाने वाले मार्ग के आसपास पड़ता है। जबकि अनुसूइया मंदिर बद्रीनाथ मार्ग से कुछ दूरी पर गोपेश्वर में तो रघुनाथ मंदिर देवप्रयाग दोनों धामों के मार्ग पर पड़ जाता है। इसलिए चारधाम के श्रद्धालु यहां भी आते हैं।

गंगोत्री और यमुनोत्री की यात्रा

गंगोत्री

गौमुख ग्लेशियर को गंगा का उद्गम स्थल माना जाता है जो यहां से 18 किलोमीटर की पैदल दूरी पर है। गंगोत्री के कपाट अक्षय तृतीया के मंगलयोग में इस बार खुले तो चारधाम यात्रा शुरू मान ली गई। समुद्र तल से 3140 मीटर की ऊंचाई पर स्थिति गंगोत्री का मंदिर उत्तरकाशी जिले में पड़ता है। गंगोत्री का मुख्य पड़ाव चिन्याली सौड़ से शुरू होता है। गंगोत्री तक जाने के लिए पैदल नहीं जाना होता। गंगोत्री मंदिर का निर्माण 1807 में नेपाली सेना प्रमुख अमर सिंह थापा ने करवाया था। इसके बाद गंगोत्री का मौजूदा मंदिर जयपुर नरेश माधौ सिंह ने बनवाया। इस गंगा तीर्थ के लिए ऋषिकेश से टिहरी जिले के चम्बा होते हुए टिहरी धरासू, उत्तरकाशी भटबाड़ी और हर्षिल होते हुए गंगोत्री तक अपने वाहन या गाड़ी से पहुंचा जा सकता है।

यमुनोत्री

यमुनोत्री मंदिर भी उत्तरकाशी जिले के अंतर्गत यमुनाघाटी में पड़ता है। यमुना का उद्गम समुद्र तल से 4421 मीटर ऊंचाई पर कालिंदी पर्वत से माना जाता है। यमुनोत्री मंदिर समुद्र तल से 3323 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहां जाने के लिए 6 किलोमीटर की यात्रा पैदल करनी होती है। यमुनोत्री मंदिर में मां यमुना की पूजा अर्चना होती है। यमुनोत्री मंदिर का निर्माण गढ़वाल नरेश सुदर्शन शाह ने 1855 के आसपास करवाया था और इसके बाद यहां मूर्ति स्थापित की। यमुनोत्री पहुंचने के लिए धरासू तक का मार्ग वही है जो गंगोत्री का है। इसके बाद धरासू से यमूनोत्री की तरफ बड़कोट फिर जानकी चट्टी तक बस द्वारा यात्रा होती है। जानकी चट्टी से 6 किलोमीटर चलकर यमुनोत्री पहुंचा जाता है।

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